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श्रावणी मेला: यहां भगवान राम ने शुरू की थी कांवड़ यात्रा, इस साल 'भगवा रंग' में दिखेंगे पुलिसकर्मी

बिहार-झारखंड के विश्‍व प्रसिद्ध श्रावणी मेला में इस बार पुलिस के जवान भगवा रंग में कांवड़िया वेश में दिखेंगे। वे कांवड़ियाें में घुल-मिलकर श्रद्धालुओं की निगरानी करेंगे।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 04 Jul 2019 10:46 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jul 2019 10:56 PM (IST)
श्रावणी मेला: यहां भगवान राम ने शुरू की थी कांवड़ यात्रा, इस साल 'भगवा रंग' में दिखेंगे पुलिसकर्मी
श्रावणी मेला: यहां भगवान राम ने शुरू की थी कांवड़ यात्रा, इस साल 'भगवा रंग' में दिखेंगे पुलिसकर्मी

भागलपुर [बलराम मिश्र]। बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में 17 जुलाई से शुरू हो रहे विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला में इस बार सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था रहेगी। सुल्तानगंज घाट और कांवड़ मार्ग में भगवा रंग के वस्त्र (कांवड़िया वेश) में महिला व पुरुष पुलिसकर्मियों की तैनाती होगी। वे पुलिसकर्मी नक्सलियों, लुटेरों, मनचलों, उचक्कों, चोरों सहित संदिग्धों पर नजर रखेंगे और कांवड़ियाें की सुरक्षा करेंगे। कांवड़िया क्षेत्र में लॉ एंड आर्डर व्यवस्थित रखने के उद्देश्य से यह विशेष रणनीति बनाई गई है। पुलिस कांवड़िया वेश में ही मेला क्षेत्रों में गश्ती करेगी।
मान्‍यता है कि श्रागवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से पत्नी सीता और तीनों भाइयों के साथ सुल्तानगंज से जल भरकर भगवान शिव को अर्पित किया था। तभी से शिवभक्त यहां जलाभिषेक करते हैं। पुराणों के अनुसार इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। शिवभक्त रावण को पहला कांवड़िया माना जाता है।
कांवड़िया मार्ग में होती रही है वारदात
हर वर्ष भागलपुर-सुल्तानगंज-तारापुर मार्ग, भागलपुर-बांका मार्ग व  अकबरनगर-शाहकुंड-असरगंज मार्ग पर कांवड़ियाें के साथ लूटपाट, छिनतई, छेड़खानी की घटनाएं होती रहतीं हैं। कई बार कांवड़ियाें के वेश में होने के कारण अपराधियों को पकडऩा मुश्किल होता है। लेकिन इस बार सभी कांवड़िया पथों पर खासी संख्या में पुलिस के जवान तैनात रहेंगे। वे देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा की निगरानी करेंगे।

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मोबाइल गश्ती भी रहेगी मुस्तैद
कांवड़ियाें की सुरक्षा के लिए मोबाइल गश्ती में भी सैकड़ों जवानों को लगाया जाना है। सुरक्षा के लिए मुख्यालय से भी अतिरिक्त फोर्स की मांग की गई है। बाइक गश्ती करने वाले जवानों को 24 घंटे तीन पालियों में ड्यूटी लगाई जाएगी। रात में पुलिस जवान विशेष रूप से चौकस रहेंगे। भागलपुर-सुल्तानगंज-तारापुर मार्ग, भागलपुर-जगदीशपुर-बांका मार्ग, भागलपुर-अकबरनगर-शाहकुंड-असरगंज मार्ग में इनकी तैनाती होगी।

कांवड़िया की सुरक्षा पुलिस का दायित्व
भागलपुर के एसएसपी आशीष भारती का कहना है कि एक माह तक चलने वाले श्रावणी मेला में देश के कोने-कोने सहित विदेशों से आने वाले लाखों कांवड़िया श्रद्धालु सुल्तानगंज से जल भरकर बाबाधाम जाते हैं।  उनकी सुरक्षा पुलिस का दायित्व है।  इस कारण कांवड़ियाें के वेश में भी महिला व पुरुष पुलिसकर्मियों की तैनाती की जाएगी। वे पुलिसकर्मी गश्ती के दौरान संदिग्ध गतिविधियों पर निगरानी रखेंगे। पुलिस की टीम 24 घंटे अलग अलग पालियों में गश्त करेगी।
यात्रा के दौरान संतों का जीवन जीते हैं कांवड़िया
श्रावणी मेला के दौरान कांवड़िये अपने कंधे पर कांवड़ रखकर सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर जाते हैं और बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं। कांवड़ को लेकर चलने में कई नियमों का पालन करना पड़ता है। पवित्रता का काफी ध्यान रखना पड़ता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम और रावण ने भी कांवड़ यात्रा की थी। श्रवण कुमार ने भी कांवड़ में अपने माता-पिता को बिठाकर यात्रा कराई थी।

यहां भगवान राम ने किया था जलाभिषेक
कांवड़ यात्रा की महिमा बहुत पुरानी है। कथाओं के मुताबिक, रावण पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भगवान राम ने राज्याभिषेक के बाद पत्नी सीता और तीनों भाई सहित सुल्तानगंज से जल भरकर शिव को अर्पित किया था। तभी से शिवभक्त यहां जलाभिषेक करते हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार कांवड़ यात्रा से अश्वमेघ यज्ञ करवाने जितनी फल की प्रप्ति होती है। सावन महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है।

तीन तरह की होती है कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा तीन तरह की होती है। एक वो जो रुक-रुक कर चलते हैं। दूसरे वो जो डांडी कांवड़ लेकर आते हैं यानी दंड-प्रणाम देते हुए पहुंचते हैं। तीसरा और सबसे कठिन डाक कांवड़। ये बिना रुके बिना, खाए पिए दौड़कर या तेज चाल में चलकर जाते हैं।

रावण था पहला कांवड़िया
पुराणों के अनुसार इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। मंथन से निकले विष को पीने की वजह से शिव जी का कंठ नीला पड़ गया था और तब से वह नीलकंठ कहलाए। इसी के साथ विष का बुरा असर भी शिव पर पड़ा। विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावण ने तप किया। इसके बाद दशानन कांवड़ में जल भरकर लाया और शिवजी का जलाभिषेक किया। इसके बाद शिव जी विष के प्रभाव से मुक्त हुए। कहते हैं तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हुई।


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