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योजनाएं बनीं पर हुनरंमद बुनकरों के हाथ खाली, बाजार और कार्यशील पूंजी ने तोड़ी कमर

बुनकरों के बीच बाजार कार्यशील पूंजी राव मेटेरियल और संसाधन का घोर अभाव है। पिछडऩे का मुख्य कारण बताया जाता है। मुद्रा लोन और कोकुन बैंक का फायदा नहीं मिला। अधिकांश योजना में बुनकरों को पहले अपनी राशि लगानी पड़ती है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2020 01:50 PM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2020 01:50 PM (IST)
बुनकरों की कई योजनाएं बनाई गई है।

भागलपुर, जेएनएन। भागलपुर के रेशमी वस्त्रों की चमक फीकी पडऩे लगी है। विदेशी मुद्रा दिलाने वाले रेशम उद्योग अब अपनी पहचान भी खो रहा है। वर्तमान दौर में भी जापान, जर्मन और अमेरिका जैसे विदेशी बाजार में भागलपुरी सिल्क की मांग है। इसका फायदा बुनकरों को नहीं पहुंचकर बड़े व्यवसायी और बिचौलिया को होता है। बुनकर अब भी पहले हैंडलूम पर मजदूरी करने को विवश है। प्रतिदिन औसत एक सौ से डेढ़ सौ रुपये ही अर्जित कर पाते हैं। बुनकरों के हुनर की कीमत दिलाने में सरकार की योजना फिसड्डी हो गई। बुनकरों के उत्थान को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की भरमार है। इसके बाद भी 50 हजार बुनकर मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके। जबकि 15 हजार पावरलूम बुनकर और 2372 हैंडलूम बुनकर ही निबंधित हो सके।

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बाजार व पूंजी के अभाव में दम तोडऩे लगा व्यवसाय

बुनकरों के बीच बाजार, कार्यशील पूंजी, राव मेटेरियल और संसाधन का घोर अभाव है। पिछडऩे का मुख्य कारण बताया जाता है। मुद्रा लोन और कोकुन बैंक का फायदा नहीं मिला। अधिकांश योजना में बुनकरों को पहले अपनी राशि लगानी पड़ती है। खरीदारी रसीद जमा करने के बाद बुनकरों को योजना की राशि सरकार उपलब्ध कराती है। ऐसे में आर्थिक रुप से कमजोर बुनकर योजना का लाभ नहीं ले पाते हैं। ढाई हजार बुनकरों को धागा कार्ड देकर अब तक यार्न बैंक की स्थापना नहीं हुई। जहां से सरकारी दर पर धागा खरीद सके। व्यवसायी महंगे दाम पर बुनकरों को रेशम धागा और कोकुन बेचते हैं जिससे बाजार में सस्ते कीमत की मांग पर खरा नहीं उतर पाते हैं। अभी भी महिलाएं जांघ पर धागा कताई करते हैं। सभी को बुनियादी चरखा उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। कोकुन की कमी के कारण सिल्क की चमक फीकी पडऩे लगी है। कोकुन नहीं मिलने से बुनकर अब लिलेन का कपड़ा तैयार कर रहे हैं।  

धागे का कण बना रहा बीमार

कपड़ा तैयार करने के दौरान उडऩे वाले धागे के कण बुनकरों के सांस की नली और फेफड़ा में जमा होता है। अधिकांश बुनकर गंभीर बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। इनके लिए मुकम्मल स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था नहीं है।

यूआइडी कोड का किया विरोध :

हैंडलूम के तर्ज पर सरकार पावरलूम पर यूआइडी नंबर टैग करने का प्रयास किया। ताकि बुनकर और पावरलूम का निबंधन किया जा सके। इसी आधार पर बुनकरों को योजना का लाभ मिलता। 15 हजार पावरलूम का निबंधन करने के बाद कुछ बिचौलिया ने विरोध कर दिया। इसके कारण बुनकर सरकार की योजना से वंचित रह गए।

धागा कार्ड रह गया खाली  

बुनकरों को एनएचडीसी द्वारा धागा कार्ड पर उपलब्ध कराया जाता है। ताकि 10 फीसद सब्सिडी पर बुनकर धागा की खरीदारी कर सके। इसके लिए पंखा टोली में बुनकरों को कार्ड मिला पर धागा की आपूर्ति नहीं हुई।

सिल्क हाट की योजना लौटी

बुनकरों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार ने नौ करोड़ रुपये उपलब्ध कराए थे। स्थानीय प्रशासन द्वारा भूखंड उपलब्ध नहीं कराने पर सिल्क हाट की योजना वापस लौट गई। इससे बुनकरों के बाजार की समस्या का निदान होता और बिचौलिए के मुक्त हो जाते।

मिला है अधूरा मेगा कलस्टर योजना  

बुनकरों के उत्थान के लिए केंद्र सरकार ने मेगा कलस्टर दिया है। इसमें बांका के तीन और भागलपुर के सात कलस्टर को शामिल किया गया है। यहां प्रशिक्षण की व्यवस्था है। लेकिन, हबीबपुर संघ कार्यालय में संचालित किया जा रहा है। इसमें डिजाइन स्टूडियो का निर्माण आयडा को करना था। अब तक शुरू नहीं हुआ।  

यह है बुनकरों की योजना

- इन सीटू अपग्रेडेशन इन प्लेन पावरलूम

- सार्वभौमिक बीमा योजना

- संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना

- संशोधित समूह वर्क शेड योजना

- सोलर उर्जा स्कीम

- मुद्रा लोन

- बुनकर धागा कार्ड

केंद्र सरकार के कार्यालय  

- पावरलूम सर्विस सेंटर

- बुनकर सेवा केंद्र

- केंद्रीय रेशम बोर्ड

- बुनियादी बीज प्रगुणन केंद्र

- मेगा कलस्टर  

बिहार सरकार के कार्यालय

- डीडीओ टेक्सटाइल

- सहायक उद्योग निदेशक रेशम

- रेशम संस्थान

- बुनकर प्रशिक्षण केंद्र


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