अपनों के दरश की बूढ़ी आंखों में तरस, 34 वृद्ध वृद्धाश्रम में ही अपनों के बिना बिता रहे जिंदगी
वृद्धाश्रम में भी रह रहे वृद्धों को भी अपने परिवार का साथ मिलता है। लेकिन इस कारोना काल में पूर्णिया के वृद्धाश्रम में रह रहे लोगों को देखने उनके कोई स्वजन नहीं आए।
पूर्णिया [शैलेश]। कोरोना महामारी के दौर में भी वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों को अपनों का साथ नहीं मिला। एक ओर जहां संक्रमण से सुरक्षा के लिए जारी लॉकडाउन में लोगों को परिवार के सदस्यों के बीच लंबा समय व्यतीत करने का मौका मिला, वहीं जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके इन वृद्धों को परिवार के सदस्यों के बिना ही वृद्धाश्रम में रहना पड़ा।
परिवार के किस्से-संस्मरणों के बीच बिता रमय
पूर्णिया के सिटी नाका चौक स्थित वृद्धाश्रम में लॉकडाउन से लेकर आज तक 34 वृद्ध मौजूद हैं। स्वजनों ने तो इन्हें भुला दिया, लेकिन ये स्वजनों की चिंता में बराबर घुलते रहते हैं। कोरोना को लेकर इनकी यह चिंता और भी बढ़ गई है। ये आपस में ही एक-दूसरे से परिवार के किस्से-संस्मरणों के बीच दिन बिता रहे हैं। वृद्धाश्रम में रह रहे रानीपतरा निवासी शंभू दास बताते हैं कि उनकी बेटे से नहीं बनी। इस कारण वृद्धाश्रम में वह दिन काट रहे हैं। घर से कोई हाल तक नहीं पूछता, मिलने पहुंचना तो बड़ी बात है। इतना कुछ होने के बाद भी वे अपने परिवार के सदस्यों के सुरक्षित रहने की कामना करते रहते हैं। नेवालाल चौक, शिवनगर की वृद्धाश्रम में रह रही जमुनी देवी ने बताया कि घर में उनकी बहू से बराबर अनबन होती रहती थी। इस कारण उन्हें वृद्धाश्रम आना पड़ा। कोरोना संक्रमण काल में भी उनसे मिलने घर से कोई नहीं आया। आस थी कि कोरोना काल में कोई ना कोई उन्हें घर ले जाने के लिए आएगा। यह आस तो मरते दम तक बनी रहेगी।
कोरोना संक्रमण के दौर में भी वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। संक्रमण काल में भी किसी के स्वजन इन्हें ले जाने या इनसे मिलने नहीं पहुंचे। यहां संक्रमण से सुरक्षा का ख्याल रखकर वृद्धों की सेवा की जा रही है। - ममता सिंह, वृद्धाश्रम अधीक्षक