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राज्य के पहले स्मार्ट सिटी के गली-मोहल्ले में तबेला, गंगा में बहाया जाता है पशुओं का मलमूत्र

शहर के कई गली और मोहल्लों अवैध रूप से खटाल दिख जाएंगे। गोबर का ढेर मोहल्लों में लगा है। मल मूत्र सड़क पर पर बिखरे हैं। नालियों और गंगा नदी में इसे बहाया जाता है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 21 Jul 2020 09:47 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jul 2020 05:39 PM (IST)
राज्य के पहले स्मार्ट सिटी के गली-मोहल्ले में तबेला, गंगा में बहाया जाता है पशुओं का मलमूत्र

भागलपुर, जेएनएन। सूबे का पहला स्मार्ट सिटी का दर्जा लिए शहर के गली-मोहल्लों में पशुओं का तबेला (खटाल) चल रहा है। शहर के कुछ हिस्से को छोड़ दें तो कई गली और मोहल्लों अवैध रूप से खटाल दिख जाएंगे। गोबर का ढेर मोहल्लों में लगा है। मल मूत्र सड़क पर पर बिखरे हैं। नालियों और गंगा नदी में इसे बहाया जाता है। अवैध खटाल संचालकों को केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की गाइड लाइन के बारे में जानकारी तक की नहीं है। नियमों का सीधा उल्लंघन हो रहा है। मुख्य सड़कों पर भटकतीं या बैठी गायें, कूड़े के ढेर पर पॉलीथिन चबातीं गायें दिखती है। शहरी क्षेत्र से खटाल हटाने के लिए हाईकोर्ट कई बार निर्देश भी दिए। अतिक्रमण के नाम पर खटाल हटें भी, लेकिन कुछ दिन बाद हालत जस की तस होती चली गई। हाल के वर्षों में शहर में न सिर्फ खटाल बढ़ें, बल्कि पशुओं की संख्या भी बढ़ती रही। ऐसे में बड़ा सवाल है कि  प्रशासन वाकई में हाईकोर्ट के निर्देश का पालन करना चाहती या फिर सब दिखावा है। इन खटालों को अवैध घोषित किया गया है, बावजूद इसके शहर के आवासीय इलाके और गलियों में खटाल पूरी निडरता से चलाए जा रहे हैं।

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लोकहित याचिका हो चुकी है दायर, निर्देश के बाद हटे भी

शहरी इलाकों में खटाल और अतिक्रमण को लेकर कोर्ट और जन शिकायत कोषांग में लोकहित याचिका दायर की गई है। इसके बाद कोर्ट के निर्देश पर तीन से चार बार अतिक्रमण के नाम पर खटालों को हटाया गया, समय के साथ सुस्ती छा गई और खटाल सजने लगे। बीते डेढ़ वर्ष में एक भी अभियान ऐसे नहीं चला, जिसमें कोई पशु को पकड़ा गया हो। अभियान बस कागज पर चलता है। कभी चला भी तो जिस क्षेत्र में टीम निकलती है, वहां पहले ही खटाल कुछ घंटों के लिए हटा लिए जाते हैं।

कई मोहल्लों में चल रहे खटाल

प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही कहें या कानून से लोगों का बेखौफ होना, यहां तमाम मोहल्लों में खटाल आराम से चल रहे हैं। सभी इलाकों में आवारा पशुओं व खटाल से लोग परेशान हैं। शहर के कोयला घाट, खंजरपुर, छोटी खंजरपुर, बरारी, साहिबगंज, आदमपुर, डिक्शन रोड, अलीगंज, सबौर, नाथनगर, विवि रोड, भीखनपुर के मोहल्लों में खटाल हैं।

बदबू व गंदगी से परेशान हैं लोग

आवासीय कॉलोनियों में बने खटाल के कारण गोबर की बदबू से आसपास के घरों में रहने वाले लोग परेशान हैं। जहां-तहां पसरे गोबर से लोगों को आने-जाने में मुश्किल होता है। लोग हर दिन इससे जूझ रहे हैं। खटालों के कारण जहां आम लोग परेशान होते हैं, वहीं कूड़े के ढेर में फेंके गए पॉलीथिन के खाने से गायें मौत का शिकार हो रही हैं।

शहर और भीड़ इलाकों से दूर हो खटाल

गोशाला समिति के वरीय सदस्य रामगोपाल पोद्दार का कहना है कि खटाल संचालकों को हर हाल में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के नियमों का पालन करना है। लेकिन संचालक नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि खटाल मुख्य सड़क से दूर और भीड़भाड़ वाले मोहल्ले में न हो। गाय के गोबर और मल मूत्र का सदुपयोग हो, जिससे प्रदूषण नियंत्रण में बाधा नहीं आ सके। उन्होंने कहा कि शहर का गोशाला सड़क से दूर पर है और भीड़ भाड़ वाले इलाके में नहीं है। गाय के गोबर से गोकाष्ठ और खाद बनाए जाते हैं। हर दूसरे दिन यहां से गोबर उठकर अमरपुर रोड स्थित गोशाला में भेज दिया जाता है। प्रदूषण नियंत्रण का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। - पशु पालकों की सुने

गाय पालने का पुश्तैनी काम है। कई वर्षों से खटाल चला रहे हैं। गोबर और मल मूत्र को पानी से धोकर ने नालियों में पाया जाता है। पर्याप्त साधन नहीं होने के कारण गोबर को गंगा या नालियों में फेंक दिया जाता है। सरकार संसाधन उपलब्ध कराए तो गोबर से खाद तैयार कर करेंगे। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड का नियम नहीं मालूम है। -ईश्वर प्रसाद, पशुपालक।

खटाल चलाकर घरवालों का भरण पोषण करते हैं। हमारी जीविका का मुख्य साधन है। वर्षों से खटाल का संचालन कर रहे हैं। सरकार और प्रदूषण बोर्ड सिर्फ गाइडलाइन निकालती है। लेकिन पशु पालकों को किसी का ध्यान नहीं है। गोबर से उपला बनाकर जलावन में इस्तेमाल करते हैं। मल मूत्र को पानी से धोकर नालियों और गंगा में बहाते हैं। -रामकिशुन प्रसाद, पशुपालक

विज्ञानी ने भी कहा, गोबर फैलता है प्रदूषण

हमारे सनातन धर्म में गोबर और गोमूत्र को भले ही पाक माना गया है। लोग पूजा पाठ में भी इसका इस्तेमाल करते हैं। लेकिन, गोबर प्रदूषण फैलने की बड़ी वजह है। कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक डॉ.  जेड होदा कहतें हैं कि उन्होंने गोपालन का मुख्य उद्देश्य दूध प्राप्त करना है। हमारे देश में बेहतर नस्ल की गाय नहीं पाली जाती हैं। कम दूध की वजह से ज्यादा गायों को पालना पड़ता है। गाय जब गाली (मुंह चलाना) करती है तो सबसे ज्यादा मीथेन गैस निकलता है। गोमूत्र और गोबर से प्रदूषण फैलता है। ज्यादा दिन गोबर जमा करने से उससे सड़ांध निकलता है। जो प्रदूषण फैलने की एक बड़ी वजह है।

मुख्‍य बातें

-सड़क किनारे और इलाकों में चल रहे खटाल, प्रशासन जानकर भी बना है अनजान

-नाला और गंगा में बहाया जाता है पशुओं का मलमूत्र

-केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की गाइड लाइन की नहीं है खटाल संचालकों की जानकारी

-शहर के कई इलाकों में गंगा घाट किनारे चल रहे खटाल


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