1971 में ही सेना में हुआ था भर्ती और मिल गया पाक को धूल चटाने का मौका, फिर तो
रिटायर्ड जवान पशुपति नाथ तिवारी ने कहा कि उस समय की बात अलग थी। अब सब कुछ बदल चुका है। अब हमारे पास अत्याधुनिक हथियार हैं। बस अब तो आदेश चाहिए भारतीय सेना को।
भागलपुर [उदयचंद्र झा]। 1971 में ही सेना में भर्ती हुआ था। ट्रेनिंग के तुरंत बाद देश की सीमा पर माहौल खराब हो गया। भारत-पाक युद्ध छिड़ गया। ट्रेनिंग के बाद ही मुझे अपने देश की सच्ची सेवा करने का मौका मिला। 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में मैंने भी पाकिस्तान को धूल चटाने में कड़ी मेहनत की है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि इस युद्ध में भारत की जीत हुई और भारत ने एक अलग राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण कराया। यह कहते हुए 1971 में सेना में भर्ती हुए कमरगंज के पशुपति नाथ तिवारी की आंखें खुशी से नम हो गईं। उन्होंने बताया कि 1971 युद्ध जीतने के बाद उन्हें डाक द्वारा भारत सरकार ने एक मेडल भी भेजा था, जो अभी तक सहेज कर रखे हैं।
अब सेना में भरपूर जवान और अत्याधुनिक हथियार भी हैं
रिटायर्ड जवान पशुपति नाथ तिवारी ने कहा कि उस समय की बात अलग थी। अब सब कुछ बदल चुका है। अब हमारे पास अत्याधुनिक हथियार हैं। हमारे साहसी वीर जवान अब पाकिस्तान को धूल चटाने के लिए तनिक भी देरी नहीं करेंगे। उन्हें तो बस आदेश चाहिए। पहले हम आंकड़ा बल के हिसाब से जंग जीता करते थे। लेकिन अब हमारे पास सेना में भरपूर जवान भी हैं और हम अत्याधुनिक उपकरणों से लैस भी हैं।
परबाबा किशन तिवारी प्रथम और चाचा परमेश्वर तिवारी द्वितीय विश्वयुद्ध लड़े थे
रिटायर्ड जवान पशुपति नाथ तिवारी ने बताया कि उनका परिवार तीन पीढिय़ों से देश की सेवा में लगा हुआ है। उनके परबाबा किशन तिवारी प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए थे। इस युद्ध में जीतने के बाद अंग्रेज सरकार ने रिटायरमेंट के समय परबाबा किशन तिवारी को डेढ़ सौ बीघा जमीन दी थी, जो अभी भी हमारी पुश्तैनी जमीन है। उनके चाचा परमेश्वर तिवारी द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी और जापान के बीच चले युद्ध में डटकर लड़े थे।
कारगिल युद्ध में दुश्मनों को धूल चटा चुका है तिवारी का पुत्र पंकज
पशुपति नाथ तिवारी के दो पुत्र हैं। दोनों ही देश की सेवा में लगे हुए हैं। बड़ा बेटा पंकज कारगिल युद्ध में दुश्मनों को धूल चटा चुका है। वह अभी देश की सेवा में इलाहाबाद में तैनात है। दूसरा पुत्र राजीव कुमार अभी अरुणाचल प्रदेश में बतौर सैनिक कार्यरत है। पशुपति नाथ तिवारी ने अपनी बेटी की शादी भी एक जवान से ही की है। उनके दामाद आलोक कुमार आजाद अभी पठानकोट में पोस्टेड हैं।
युद्ध का समय हमारे लिए त्योहार की तरह
पूर्व सैनिक पशुपति नाथ तिवारी ने अपने घर का नाम ही सैनिक भवन रखा है। वह कहते हैं कि सच पूछिए तो युद्ध का समय हमारे लिए किसी त्योहार की तरह होता है। मैं फौज में रहा हूं मेरी नौकरी रहते मेरे दोनों बच्चे फौज में गए हैं। यह मेरी तीसरी पीढ़ी है जो फौज में अपनी सेवा दे रही है।
कमरगंज के हर घर का एक जवान देश की सेवा में लगा है
पशुपति नाथ तिवारी ने बताया कि कमरगंज के लगभग हर घर से एक एक सैनिक देश की सेवा में लगा हुआ है। यहां दोपहर होते ही स्थानीय महावीर मंदिर प्रांगण में युवाओं का जमावड़ा लग जाता है, जो सेना भर्ती परीक्षा की तैयारी करते हैं। उन्होंने बताया कि कमरगंज के युवाओं में खासा उत्साह है जब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादी हमला हुआ और देश के 44 जवान शहीद हुए तो इनका आक्रोश देखते ही बन रहा था। इन युवाओं का कहना है कि अगर इनकी जरूरत हो तो सरकार इन्हें बुला सकती है यह देश की सेवा में कभी पीछे नहीं हटेंगे।