नहीं दे रहे ध्यान, मिट रही महेशखुटिया पान की पहचान
सरकार की ओर से ध्यान नहीं देने के कारण इसकी पहचान मिटती जा रही है।
जेएनएन (खगड़िया)। कभी कोसी और सीमांचल के पान मार्केट पर महेशखुटिया पान का कब्जा था। परंतु, सरकार की ओर से ध्यान नहीं देने के कारण इसकी पहचान मिटती जा रही है। सरकार अन्य फसलों के प्राकृतिक आपदा पर नष्ट होने पर फसल क्षतिपूर्ति मुआवाजा देती है। फसल को लेकर अनुदान भी देती है। परंतु, यहां के किसानों को यह लाभ नहीं मिल पा रहा है। उसके कारण किसान इसकी खेती से तेजी से विमुख हो रहे हैं। 2017-18 की ठंड-पाला के कारण जिले में 90 प्रतिशत पान की फसल बर्बाद हो गई। जिला उद्यान विभाग की ओर से आपदा प्रबंधन विभाग पटना को रिपोर्ट भेजी गई। साल बीत गया, परंतु पान किसानों को फसल क्षतिपूर्ति राशि नहीं मिली। जिला उद्यान विभाग रिपोर्ट भेजे जाने की बात कह पल्ला झाड़ लेती है। दो सौ से सौ एकड़ में सिमटी खेती ठंड-पाला और समय-समय पर आने वाली बाढ़ के कारण धीरे-धीरे किसान पान की खेती से विमुख होने लगे। पहले जिले के महेशखूंट, मदारपुर, मालपा, गौछारी, गढ़मोहनी में दौ सौ एकड़ में पान की खेती होती थी। जिसका रकबा सिमट कर सौ एकड़ के आसपास रह गया है। मालपा के रोहिन चौरसिया कहते हैं- पान की खेती महंगी है। एक एकड़ में एक लाख के आसपास खर्च होता है। अगर मौसम ने धोखा दिया, तो पूंजी डूब जाती है। इसकी खेती पर अनुदान भी नहीं है। इसलिए किसान खेती छोड़ने को विवश हो रहे हैं। झंझरा के जगदीश चौरसिया भी कहते हैं- पान की खेती पर सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण किसान खेती छोड़ने को बाध्य हो रहे हैं। खैर, महेशखूंट में पान आढ़त चलाने वाले श्रवण चौरसिया कहते हैं- आज से पांच साल पहले कोसी के सुपौल, सहरसा और मधेपुरा जिले में प्रतिदिन दो लाख पान के पत्ते भेजते थे। अब 20 से 25 हजार पत्ते भेज रहे हैं। स्थिति स्पष्ट है। कोट 'उद्यान की फसल पर जिले में सिर्फ केला, पपीता और आम पर अनुदान है। पान की 90 प्रतिशत फसल बीते वर्ष ठंड-पाला के कारण बर्बाद हो गई थी। फसल क्षतिपूर्ति को लेकर रिपोर्ट पटना भेजी गई थी। लेकिन, किसानों को अब तक राशि नहीं मिली है।' - अशोक कुमार, जिला उद्यान पदाधिकारी, खगड़िया।