उत्तिष्टत जाग्रत : स्वामी विवेकानंद का भागलपुर से रहा है बेहद लगाव, भारत भ्रमण के दौरान यहां आए और दिए ये मंत्र
स्वामी विवेकानंद का भागलपुर से बेहद लगाव रहा है। वे भारत भ्रमण के दौरान यहां पहुंचे थे। सात दिवसीय प्रवास में उन्होंने लोगों को गरीबों की सेवा करने का मंत्र दिया।
भागलपुर [नवनीत मिश्रा]। अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा (1893) में भाग लेने से पहले स्वामी विवेकानंद ने पूरे भारत का भ्रमण किया था। इस यात्रा का पहला पड़ाव भागलपुर ही था। यहां वे सप्ताह भर रुके थे। तब हनुमानघाट पर ध्यान और चिंतन की गंगा भी बही थी। स्वामी जी जब तक भागलपुर में रहे, शाम में इस मनोरम तट पर आते रहे। विवेकानंद केंद्र द्वारा प्रकाशित पुस्तक वांड्रिंग मोंक में स्वामी जी की भागलपुर यात्रा का उल्लेख है।
स्वामी विवेकानंद अगस्त 1890 में गुरु भाई स्वामी अखंडानंद के साथ भागलपुर आए थे। उनकी पहली मुलाकात नित्यानंद सिंह से हुई थी। बरारी के मनमथराज चौधरी के घर गए थे। भागलपुर में लगभग सात दिनों तक रहे। मनमथ बाबू के घर पर आध्यात्मिक चर्चा भी होती थी। वे भजन-कीर्तन भाग लेते थे। शाम के समय गंगा के तट पर चिंतन-ध्यान करने जाया करते थे। रात में मनमथ बाबू के घर पर भजन संध्या में हिस्सा लेते थे। वे खुद भजन करते थे। भागलपुर के बाद वे वाराणसी गए थे। इसके तीन वर्ष बाद अमेरिका में विश्व धर्म महासभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जहां दिया भाषण इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।
जहां ध्यान लगाते थे वहां वहीं बनी है वेदी
विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के बिहार और झारखंड के प्रांत संपर्क प्रमुख डॉ विजय कुमार वर्मा बताते हैं कि गंगा तट पर स्वामी जी जहां ध्यान लगाते थे, आज वहां विवेकानंद के नाम से वेदी बनी हुई है। यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित है। हर साल 12 जनवरी को जयंती और चार जुलाई को पुण्यतिथि मनाने के लिए लोग यहां आते हैं।
वेदी तक जाना आसान नहीं
जयंती और पुण्यतिथि को छोड़ अन्य दिनों में स्वामी जी की वेदी पर जाना आसान नहीं है। इसका रास्ता वाटर वर्क्स परिसर से होकर गुजरता है, जो अति सुरक्षित क्षेत्र है। वाटर वर्क्स के गेट पर ताला लगा रहता है। इस कारण वह पवित्र भूमि वीरान और उपेक्षित है। किसी संगठन या जनप्रतिनिधि ने रास्ते के लिए कोई आवाज नहीं उठाई है।
स्कूल खोलने की जताई थी इच्छा
डॉ विजय कुमार वर्मा ने बताया कि स्वामी अखंडानंद ने भागलपुर में गरीबों और पिछड़ों के लिए स्कूल खोलने की इच्छा जताई थी। उनका मानना था कि गरीब और पिछड़ों के लिए एक अलग स्कूल आवश्यक है, जहां बच्चे संस्कारवान बन सकें।