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सोशल साइट्स व्यंग्य : कोरोना किस खेत की मूली, उसको हम चढ़ाएंगे शूली

इन दिनों सोशल मीडिया पर कोरोना और जनता कर्फ्यू के संदेश आम हो गए हैं। कोई जनता कर्फ्यू पर कविता पोस्ट कर रहा है तो कोई कोरोना से बचने के उपाय गिना रहा है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 22 Mar 2020 01:05 PM (IST)Updated: Sun, 22 Mar 2020 01:05 PM (IST)
सोशल साइट्स व्यंग्य  : कोरोना किस खेत की मूली, उसको हम चढ़ाएंगे शूली
सोशल साइट्स व्यंग्य : कोरोना किस खेत की मूली, उसको हम चढ़ाएंगे शूली

भागलपुर [दिनकर]। अद्भुत! राष्ट्रों की सीमाएं टूट गईं। युद्ध के नगाड़े थम गये, आतंकी बंदूकें खामोश हैं; अमीर-गरीब का भेद मिट गया। क्लब, स्टेडियम, पब, मॉल, होटल, बाजार के ऊपर अस्पताल की महत्ता स्थापित हो गई। अर्थशास्त्र के ऊपर चिकित्साशास्त्र स्थापित हो गया। एक सुई, एक थर्मामीटर; गन, मिसाइल टैंक से अधिक महत्वपूर्ण हो गया। मंदिर बंद, चर्च बंद, दरगाह बंद, मस्जिद बंद! हृदय में विराजमान प्रभु को पूजा जा रहा है। धर्म पर अध्यात्म स्थापित हो गया। भीड़ में खोया आदमी, परिवार में लौट आया। सिर्फ एक वायरस...हां, प्रकृति को मनुष्य की प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त करनी है।

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इन दिनों सोशल मीडिया पर इस तरह के संदेश आम हो गए हैं। कोई जनता कर्फ्यू पर कविता पोस्ट कर रहा है तो कोई कोरोना से बचने के उपाय गिना रहा है। सोशल मीडिया पर अभी सिर्फ कोरोना वायरस ही छाया हुआ है। जनता कफ्र्यू पर प्रफुल्ल चंद्र कुमार 'बागी' की कविता पढि़ए- रोचक, प्रेरक तथा वैज्ञानिक। शोधक, साधक अरु आधुनिक।। बैठे भारत माता गोदी। फिर न क्यों हों, ऐसे मोदी।। नहीं चाहिए उनको नोबेल। वह तो उससे सूपर लेवल ।। घंटी, थाली, ताली, शंख। जीवाणु, विषाणु मारक निश्शंक।। जनता कफ्र्यू उनका न्यू भ्यू। कुछ तो प्रश्न उठायेंगे यूं।। जनता होगी जब एकाकार। हर दुश्मन को देंगे मार।। कोरोना किस खेत की मूली। उसे चढ़ायेंगे हम शूली ।।

एक सज्जन ने एक पुरानी फिल्म का गाना पोस्ट किया है। शीर्षक दिया है-कोरोना से बचाव, ओल्ड इज गोल्ड। गाने के बोल हैं- पास नहीं आइए, हाथ न लगाइए...अजी देखिए नजारा दूर-दूर से, कीजिए इशारा दूर-दूर से...। एक ठेठ बिहारी स्टाइल का सार्वजनिक अपील पढि़ए- थेथरई न करें। घर में चुपेचाप बैठिये। थेथर लोग के लिए सरकार अलग से टास्क फोर्स गठित कर देगी तब ले लोटा बउआते रहिएगा। ...बाकी अपडेट करते रहेंगे। बने रहिए। एक सज्जन ने कोरोना वायरस के भय को कुछ इस प्रकार बयां किया- समय-समय की बात है, पहले जब कोई बोलता था कि मेरा बेटा विदेश से आया है तो पूरा मोहल्ला देखने आ जाता था। अब कोई ऐसा बोल दे तो पूरा मोहल्ला खाली हो जाता है।

...और अंत में कुछ गुदगुदाने वाले प्रसंग पढि़ए- कोरोना वायरस के आक्रमण के बाद सैनिटाइजर मानो गंगाजल बन गया है। थोड़ा सा हाथ में सैनिटाइजर लिया और सब पवित्र...।

एक व्यंग्य पर गौर फरमाइए- अबतक ससुरा नकली सामान बेचता आया है लेकिन वायरस ही असली भेजा है।


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