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मखाना का फसल चक्र बदलने पर चल रहा शोध, किसानों के खेतों में प्रदर्शन की तैयारी

मखाना की बोआई होने से यह पूरी तरह भूजल पर निर्भर हो जाता है। भूजल का दोहन जलवायु परिवर्तन के लिहाज से सही नहीं है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 11:11 PM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 11:11 PM (IST)
मखाना का फसल चक्र बदलने पर चल रहा शोध, किसानों के खेतों में प्रदर्शन की तैयारी
मखाना का फसल चक्र बदलने पर चल रहा शोध, किसानों के खेतों में प्रदर्शन की तैयारी

किशनगंज [अमितेष]। मखाना की खेती में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को लेकर विज्ञानी चेत गए हैं। जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग को ध्यान में रखकर मखाना का फसल चक्र बदलने पर शोध किया जा रहा है। विज्ञानियों का मानना है कि वर्तमान में मखाना की बोआई मार्च में और हार्वेस्टिंग जुलाई में की जा रही है। मार्च में बारिश का समय नहीं होने से यह पूर्ण रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। देश-दुनिया में लगातार बढ़ रहे जलसंकट के लिहाज से भविष्य के लिए यह सही नहीं है।

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प्रयोग शुरू भी कर दिए गए

इस कारण फसल चक्र बदलकर बरसात के मौसम जुलाई में बोआई व नवंबर-दिसंबर में हार्वेस्टिंग कराने के लिए मखाना के नए प्रभेद विकसित करने को लेकर शोध किया जा रहा है। शोध में कुछ हद तक सफलता मिल चुकी है। प्रयोग शुरू भी कर दिए गए हैं। नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसर्च के प्रधान विज्ञानी डॉ. सतीश कुमार यादव इसका निरीक्षण कर चुके हैं।

भूजल के दोहन के बजाय वर्षा जल का होगा सदुपयोग : मखाना पर शोध कर रहे भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज के मखाना वैज्ञानिक सह प्रधान अन्वेषक डॉ. अनिल कुमार बताते हैं कि मार्च में मखाना की बोआई होने से यह पूरी तरह भूजल पर निर्भर हो जाता है। भूजल का दोहन जलवायु परिवर्तन के लिहाज से सही नहीं है। इसलिए जुलाई में वर्षा जल की उपलब्धता को ध्यान में रखकर शोध किया जा रहा है। विभिन्न राज्यों से मंगाए गए 241 जर्म प्लाज्म को एक-एक महीने के अंतराल पर भिन्न-भिन्न जगहों पर लगाकर उसकी उत्पादकता का अध्ययन किया गया।

जलवायु परिवर्तन को लेकर मखाना का फसल चक्र बदलने पर चल रहे शोध में एक हद तक सफलता मिल चुकी है। जल्द ही किसानों के खेतों में इसका प्रदर्शन किया जाएगा। किसानों को भी इससे लाभ होगा। - डॉ. आरके सोहाने, निदेशक प्रसार शिक्षा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर


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