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निर्जला एकादशी 2021: समस्त तीर्थों से श्रेष्ठ एक व्रत, द्वापर युग से जुड़ी है पौराणिक मान्यता

निर्जला एकादशी 2021 प्रचलित पौराणिक मान्यता के अनुसार निर्जला एकादशी का संबंध द्वापर युग से है। इस व्रत का विशेष महत्व श्रीव्यास जी ने भीम को बताया गया। पढ़ें पूरी पौराणिक कथा और व्रत रखने का विधि विधान...

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 11:07 AM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 01:47 PM (IST)
निर्जला एकादशी 2021: समस्त तीर्थों से श्रेष्ठ एक व्रत, द्वापर युग से जुड़ी है पौराणिक मान्यता
21 जून 2021 निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु की पूजा करेंगे।

संवाद सहयोगी, भागलपुर। श्रद्धालु 21 जून 2021, सोमवार को निर्जला एकादशी का व्रत कर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करेंगे। वैसे वर्ष में 24 एकादशी आती है। लेकिन निर्जला एकादशी सभी में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि निर्जला एकादशी के दिन बिना जल के व्रत करने से जीवन की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इसके पीछे द्वापर युग की एक पौराणिक मान्यता जुड़ी हुई है।

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ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। श्री हरि विष्‍णु अच्छी सेहत और सुखद जीवन का वरदान देते हैं। पापों का नाश होता है और मन शुद्ध होता है। इस एकादशी को त्याग और तपस्या की सबसे बड़ी एकादशी कहा जाता है।

ऐसे करें व्रत

निर्जला एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान कर सूर्य देवता को जल अर्पित कर पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु की पूजा करें। इन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। रात में जागरण करके भगवान विष्णु की उपासना के साथ जल और जल के पात्र का दान करना विशेष शुभकारी होता है। घड़ा, वॉटर प्यूरीफायर दान किया जा सकता है। इसके अलावा, लोगों को जल पिलाने का भी विधान बताया गया है।

निर्जला एकादशी के बारे में पौराणिक मान्यता

इस एकादशी के भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक दंत कथा के अनुसार इस व्रत का संबंध द्वापर युग से है। दरअसल, जब भीमसेन से उनकी माता कुंती, द्रोपदी, भ्राता युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव एकादशी व्रत रखने के लिए करने के लिए कहने लगे, तो वे व्यासजी के पास जा पहुंचे। उन्होंने गुरुदेव से कहा, 'हे पितामह! मैं भगवान की पूजा शक्ति से, दान से और तप से कर सकता हूं लेकिन बगैर भोजन के नहीं रह सकता।'

इसपर व्यास जी ने कहा कि हे भीमसेन! प्रति मास की दोनों एकादशियों को अन्न नहीं खाना चाहिए।

व्यास जी के जवाब पर भीम ने पुनः कहा कि महाराज मैं आपको बता चुका हूं कि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि मुझे भोजन किए बिना नहीं रहने दे सकता। भोजन करने मात्र से ही वो शांत रहती है। इसलिए बिना अन्न के तो मैं कदापि नहीं रह सकता। उन्होंने व्यास जी कहा कि आप मुझे रास्ता दिखाएं, ऐसा व्रत बताएं जो वर्ष में एक बार ही करना पड़े और मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी ने भीम के सवाल पर जवाब देते हुए कहा, 'हे पुत्र! ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं, जिनसे बिना धन के, थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।'

गुरुदेव के वचन सुनकर भीम नरक में जाने के नाम से कांप उठे और फिर व्यासजी से कहने लगे कि मैं मास में दो व्रत नहीं कर सकता, हां वर्ष में एक व्रत करने की कोशिश करूंगा। अतः गुरुदेव ऐसा मार्ग बताइए जिससे एक दिन में व्रत करने से मेरी मुक्ति हो जाए। भीम की चिंता देख व्यासजी ने बताया कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। हे भीम! आप उस एकादशी के दिन व्रत रखो। निर्जला एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है।

व्यास जी ने बताया कि इस व्रत के दिन आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के समान हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। व्यास जी ने आगे कहा कि यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है।

समस्त तीर्थों से श्रेष्ठ

व्यासजी ने कहा, 'हे भीमसेन! निर्जला एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से श्रेष्ठ बताया गया है। केवल एक दिन मनुष्य यदि निर्जल रहे, तो उसके सभी पाप धुल जाते हैं। निर्जला व्रत करने वाले को मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते, मृत्यु के समय भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। यही कारण है कि इस व्रत को करना चाहिए।

व्यास जी ने बताया कि निर्जला व्रत यत्न के साथ करना चाहिए। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' मंत्र का उच्चारण व्रत वाले दिन करना चाहिए और दान के स्वरूप गौ दान करना श्रेष्ठ माना जाता है। व्यास जी की बताए मार्ग को प्रशस्त करते हुए भीम ने निर्जला एकादशी का व्रत रखा।


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