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कोसी त्रासदी से निजात के लिए यहां पर छह दशकों से दशहरा में होता है नगर कीर्तन

कोसी की त्रासदी से बचने के लिए सहरसा में 65 वर्षों से नगर कीर्तन हो रहा है। नगर के बुद्धिजीवी जनप्रतिनिधि और संस्कृतिकर्मी इस नगर कीर्तन में अहले सुबह से ढोल हारमोनियम एवं अन्य वाद्ययंत्र लेकर कीर्तन करते हुए सभी दुर्गा मंदिरों की परिक्रमा करते हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 14 Oct 2020 07:29 PM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2020 07:29 PM (IST)
कोसी त्रासदी से निजात के लिए यहां पर छह दशकों से दशहरा में होता है नगर कीर्तन
दशहरा के मौके पर सहरसा जिला मुख्यालय में नगर भ्रमण कर कीर्तन करते लोग।

सहरसा [कुंदन कुमार]। कोसी के कोप से निजात पाने और आमलोगों की सुख- समृद्धि के लिहाज से की परंपरा जारी है। नगर के बुद्धिजीवी, जनप्रतिनिधि, और संस्कृतिकर्मी इस नगर कीर्तन में अहले सुबह से ढोल, हारमोनियम एवं अन्य वाद्ययंत्र लेकर कीर्तन करते हुए सभी दुर्गा मंदिरों की परिक्रमा करते हैं। दशहरा में दुर्गा मंदिरों में गूंजते हैं भगवान राम व कृष्ण के भजन। भारतीय संस्कृति व लोक परम्परा को समृद्ध करने के लिए नगर कीर्तन की परंपरा विगत 65 वर्षों से चली आ रही है।

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ढोलक की थाम पर ही सुनाई देने लगती है दशहरा की धूम

नगर कीर्तन के दौरान ढोलक की थाप पर ही दशहरा की धूम सुनाई देने लगती है। शहर के कायस्थ टोला से इस परंपरा की शुरूआत वर्ष 1952 में शुरू हुई। कालान्तर में कुलेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव, अश्विनी कुमार लाल दास, हलधर प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, मैइनी मरर, टीको दास, चिनोलाल शर्मा, नूनू लाल शर्मा आदि की मंडली ने दशहरा पूजा के अवसर पर नगर कीर्तन प्रारंभ किया। नगर कीर्तन में ढोल, मंजीरा, हारमोनियम, झाल, करताल, डपली लेकर टोली में शामिल लोग गाते-बजाते-नाचते लोग दशहरा की पहली पूजा से ही नगर भ्रमण कर दुर्गा मंदिर की परिक्रमा करते हैं। कायस्थ टोला से ही हर वर्ष नवरात्रा आते ही अहले सुबह चार बजे से ही एक जगह एकत्रित कर सब गाते बजाते निकल पड़ते हैं। नगर कीर्तन की परंपरा को दो दशक से अगुवाई कर रहे प्रो. गिरिधर कुमार श्रीवास्तव पुटीश कहते हैं कि कोसी का यह इलाका बाढ़ प्रभावित क्षेत्र रहा है। कोसी की खुशहाली व सुख समृद्धि के लिए आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना के लिए ही इस परंपरा की शुरूआत की गयी। कोसी नदी की त्रासदी से निजात पाने के लिए एवं सुख शांति हेतु बुजुर्गों ने इस प्रथा की नींव डाली जो आज अनवरत जारी है। वे कहते हैं कि दुर्गा पूजा के पहले दिन से ही विजयादशमी तक दर्जनों की संख्या में लोग समूह में शहर के हर दुर्गा मंदिर का भ्रमण कर भक्ति का आनंद उठाते हैं। इस वर्ष कोरोना महामारी से भी निजात पाने के लिए नगर कीर्तन के जरिए मां की अराधना की जाएगी।

नयी पीढ़ी के लोग भी कर रहे हैं नगर कीर्तन में शिरकत

दशकों पूर्व प्रारंभ नगर कीर्तन की कमान अभी नयी पीढ़ी ने संभाल रखी है। जिसमें गिरिधर कुमार श्रीवास्तव पुटीश, राजकुमार सिन्हा, लगन शर्मा, रामप्रवेश शर्मा, कपली शर्मा, राजेन्द्र शर्मा, बलराम, सिद्धांत श्रीवास्तव, प्रभात ङ्क्षसहा, चन्देश्वरी शर्मा, मदन शर्मा, कपिल देव, नन्देलाल, झोटी शर्मा, गोविन्द, भूपेन्द्र लाल दास शामिल है। नगर कीर्तन में पुरूषों के अलावा महिलाएं व बच्चे भी शामिल रहते हैं।

राम नाम महामंत्र का होता है कीर्तन

दहशरा के अवसर पर भ्रमण कर नगर कीर्तन में शामिल लोग राम नाम के महामंत्र का भजन गाते हैं। हरे राम, हरे राम, राम, राम, हरे-हरे... हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, हरे-हरे...राम नाम का कीर्तन का अछ्वुत संयोग दशहरा के मौके पर शहरवासियों को देखने का मौका मिलता है। सबसे बड़ी बात कि यह भजन शास्त्रीय राग भैरवी में निबद्ध रहता है। गिरिधर श्रीवास्तव पुटीश कहते हैं कि इस परम्परा में अब तीसरी पीढ़ी के लोग भी शामिल हो रहे हैं। कोशिश है कि भारतीय संस्कृति की यह परंपरा अक्षुण्ण रहे।


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