रेशमी शहर की मुस्लिम महिलाओं ने खारिज किया तीन तलाक बिल, बोलीं सरकार का गलत निर्णय Bhagalpur News
लोकसभा के बाद राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास होने पर भागलपुर की मुस्लिम महिलाएं दुखी हैं। इन महिलाओं ने कहा कि सरकार ने गलत निर्णय लिया है।
भागलपुर [जेएनएन]। राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास होने से रेशमी शहर की मुस्लिम महिलाएं खुश नहीं है। इनका मानना है कि भाजपा सरकार जानबूझकर धर्म के साथ छेड़छाड़ कर रही है। यह वोट बैंक की ओछी राजनीतिक है। लोग सरकार की नीति को जान चुके हैं। तीन तालाक के मुद्दे पर सभी विपक्षी पार्टियों को आपसी मतभेद भुलाकर सरकार के इस निर्णय का विरोध करना चाहिए। शहर की कुछ प्रबुद्ध मुस्लिम महिलाओं के विचार इस प्रकार है।
डॉ. नाज बानो : बिल में संशोधन करना चाहिए। यह समाज के लिए ठीक नहीं है। एक समाज को खुश करने के लिए दूसरे समाज का अहित किया गया है। यह मुस्लिम समाज के लिए फायदेमंद नहीं है।
डॉ. शहला सुल्ताना : तीन तलाक बिल पर सरकार का गलत निर्णय है। तीन बार तालाक बोलने से नहीं होता, बल्कि तीन माह का समय दिया जाता है। आपसी तालमेल से तालाक हो तो दोनों की जिंदगी खुशहाल होगी।
अनवरी खातून : सरकार मुस्लिम औरतों की सुरक्षा के बजाय बिल पास कर गलत निर्णय लिया है। तलाक देने पर अगर जेल जाएंगे तो एक-दूसरे के बीच बदला लेने की भावना होगी। आपसी सुलह से जीवन संवारा जा सकता है।
फिरोजा यासमीन : बिल को मंजूर नहीं किया जाए, इससे महिलाओं का भविष्य अंधकार में होगा। कुरान पाक को मानते हैं। तीन तलाक का हक बनता है। इस्लाम में तीन धार्मिक कार्य में हस्तक्षेप नहंी कर बिल को वापस लें।
नजमा खातून : तीन तलाक बिल मुस्लिम समाज के कायदा कानून के विरुद्ध है। शरियत के फैसले को हम सभी मानते हैं। कोई भी मुसलमान सरकार के इस निर्णय को नहीं मानेगा। महिलाओं के हित में सरकार अपने निर्णय को वापस लें।
शाबिहा रानू : तालाक देने पर पुरुष को तीन साल के लिए जेल जाना पड़े, ऐसे कानून को सरकार वापस ले। इस्लाम धर्म का अनुपालन मुसलमान करता है। यह बिल पास कर धार्मिक नियमों की अनदेखी हुई है। इसकी इजाजत धर्म नहीं देती है।
खानकाह-ए-शहबाजिया के मौलाना फारूक आलम अशर्फी ने कहा कि सारे मुस्लमान इस्लाम के बनाए कानून पर चलते हैं न कि सरकार द्वारा बनाए कानून पर। किसी भी राजनीति पार्टी को यह हक नहीं है कि वह किसी के धर्म में दखल दे। लिहाजा मैं इस बिल का समर्थन नहीं करता।
कारी निजामुद्दीन का कहना है कि यह बिल आपस में नफरत की दीवार खड़ा करने की पहल है। जहां तीन तलाक़ का सवाल है तो इस्लाम में भी इसे मना किया गया है ।
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