कान्हा की बांसुरी, कान्हा की तान ...अनूठा है बिहार के एक गांव में अल्पसंख्यकों का बांसुरी प्रेम
बिहार के जमुई के एक गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के सौ से अधिक लोग बांसुरी बनाने के काम से जुड़े हैं। उनकी बनाई बांसुरी की आवाज विदेश तक गूंजती है।
जमुई [विधु शेखर]। भगवान महावीर की जन्मस्थली से चार किलोमीटर दूर मुबारकपुर गांव में कान्हा की बंशी कान्हा की ही तान छेड़ रही है। गांव के मु. खुर्शीद अक्सर कृष्ण को याद कर जब कजरी धुन छेड़ते हैं तो आसपास के लोग मंत्रमुग्ध हो वहां खिंचे चले आते हैं। खुर्शीद बताते हैं कि कृष्ण के बांसुरी बजाने पर आसपास के पशु-पक्षी तक खिंचे चले आते थे। जब वह बांसुरी बजाते हैं, तो आसपास के लोग मुग्ध हो जाते हैं। हमारी रोजी-रोटी बांसुरी से ही जुड़ी है। इस कारण उनके और उनके गांव के बांसुरी बनाने वाले कारीगरों के मन में कृष्ण के प्रति आस्था है, कृष्ण उनके उपास्य है। ये मानते हैं कि बंशी भी कृष्ण की है और तान भी कृष्ण की।
कान्हा की बंशी, कान्हा की तान... अनूठा है मुबारकपुर (जमुई ) के अल्पसंख्यकों का बांसुरी प्रेम@JagranNews @SrBachchan pic.twitter.com/UF6P54fqdj
— Dilip Kumar Shukla (@dilip79bgp) June 4, 2020
गांव में 100 के करीब अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बसे हैं और सभी बांसुरी बनाने के काम से जुड़े हैं। इनकी बनाई बांसुरी विदेश तक भेजी जाती है। गांव के बुजुर्ग शफीक मियां और महमूद मियां बताते हैं कि तीन पीढिय़ों पूर्व उनके पुरखों ने बांसुरी बनाने का काम शुरू किया था। एक दिन में गांव में करीब 50 बांसुरी का निर्माण किया जाता है। भगवान महावीर की जन्मस्थली आने वाले जैन समुदाय के लोग इनसे बांसुरी खरीदकर विदेश भेजते हैं। विदेश में एक बांसुरी की तीन से पांच हजार रुपये कीमत मिलती है। दो वर्ष पूर्व विदेश में एक बांसुरी 10 हजार रुपये में भी बिकी थी। मुंबई से पहुंचे जैन समुदाय के लोग ऑर्डर देकर बांसुरी का निर्माण यहां करवाते हैं। देश में पांच से 1500 रुपये तक एक बांसुरी की कीमत मिलती है।
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इनकी बनाई बांसुरी आगरा, वृंदावन, मथुरा, मुंबई, गुजरात, कोलकाता के अलावा विदेश में मॉरीशस, मलेशिया, अफ्रीका, अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसे देशों में जाती है। मु. खुर्शीद व मु. बेलाल बताते हैं कि पिछले दो साल से इनकी बांसुरी विदेश नहीं जा पा रही है। इस कारण आमदनी पर असर पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान आर्थिक स्थिति और चरमरा गई। असम के बेहतरीन बांस से ये लोग बांसुरी बनाते हैं। यह बांस छह फीट लंबा होता है। बांसुरी बनाने के लिए डेढ़ से दो इंच की मोटाई का बांस चाहिए। कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण ये लोग सीधे असम से बांस नहीं मंगवा सकते हैं। इस कारण ये पश्चिम बंगाल के बेलियाहट्टा से असम का बांस मंगवाते हैं।