मिलिए इस बुजुर्ग किसानों से... फसलों की कीट से रक्षा के लिए बनाई सुलभ और सस्ती कीटनाशक दवा
सुपौल जिले में कार्यरत स्वयंसेवी संस्था हेल्पेज इंडिया एवं अक्षयवट बुजुर्ग महासंघ के सहयोग एवं तकनीकी जानकारी से लाभान्वित होकर बसंतपुर प्रखंड के संस्कृत निर्मली एवं राघोपुर प्रखंड के अडऱाहा गांव के बुजुर्ग स्वयं सहायता समूह के किसानों ने यह कीटनाशक निर्माण शुरू किया है।
सुपौल [गौरीश मिश्रा]। रासायनिक कीटनाशक के बढ़ते दाम एवं इनके दुष्प्रभाव को देखते हुए किसानों ने विकल्प के रूप में खुद से देशी कीटनाशक का निर्माण शुरू कर दिया है। किसानों की यह अनूठी पहल धीरे- धीरे रंग ला रही है। किसान अब बहुतायत में फसलों के साथ-साथ फल एवं सब्जी की खेती में भी इस देशी कीटनाशक का उपयोग करने लगे हैं। सुपौल जिले में कार्यरत स्वयंसेवी संस्था हेल्पेज इंडिया एवं अक्षयवट बुजुर्ग महासंघ के सहयोग एवं तकनीकी जानकारी से लाभान्वित होकर बसंतपुर प्रखंड के संस्कृत निर्मली एवं राघोपुर प्रखंड के अडऱाहा गांव के बुजुर्ग स्वयं सहायता समूह के किसानों ने यह कीटनाशक निर्माण शुरू किया है। कम लागत में अधिक मात्रा में कीटनाशक का उपयोग एवं इनके फायदे देखकर आसपास के गांवों के किसान भी इस तरफ आकर्षित होने लगे हैं। देशी कीटनाशक के निर्माण में जुटे किसान कृष्णदेव मेहता, सकलदेव मेहता, लक्ष्मी चौपल, रमेश मेहता, महेशलाल मेहता, सुन्दर मेहता, अरुण मेहता आदि ने बताया कि अच्छी फसलों के लिए पहले तो वो खुद भी रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया। लेकिन जहरीली खेती के जनस्वास्थ्य पर प्रभाव और पर्यावरण के लिए बढ़ते दुष्परिणामों को जाना तो उनकी सोच ही बदल गई। पहले खुद रसायनमुक्त खेती और देसी कीटनाशकों से अच्छा लाभ पाया तो खुद से जैविक कीटनाशक तैयार करने लगे। इसके बाद वह अब दूसरे किसानों को भी रसायनमुक्त खेती का मंत्र दे रहे हैं। इस बारे में संस्था के परियोजना समन्वयक प्रभाष कुमार ने बताया कि सरकार के आत्म निर्भर भारत के सपने को साकार करने में बुजुर्ग किसानों की टोली पूरी तन्मयता से जुटी हुई है। देशी तरीके से सुलभ एवं सस्ता कीटनाशक तैयार कर यहां के किसान दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं।
कैसे तैयार करते हैं जैविक कीटनाशक
जैविक कीटनाशक तैयार करने के बारे में जानकारी देते हुए यहां के किसानों ने बताया कि इसके निर्माण की विधि सरल एवं सस्ता है। दो किलो लहसून, दो किलो हरी मिर्च, दो किलो खैनी पत्ता एवं दो किलो नीम के पत्ते को कूट कर इसे 20 लीटर गो मूत्र में करीब एक घंटे तक उबाला जाता है। जब यह करीब 12 लीटर के करीब हो जाता है तो इसे आंच पर से उतारकर दो दिन के लिए छोड़ दिया जाता है। दो दिन के बाद इसे छानकर फसल, फल या सब्जी में छिड़काव कर कर सकते हैं। किसानों ने बताया कि 12 लीटर तैयार कीटनाशक से डेढ़ फूट से ऊपर की फसलों में तीन से चार एकड़ तक में छिड़काव कर सकते हैं। वहीं डेढ़ फूट से छोटे फसल या सब्जी में चार से पांच एकड़ तक में छिड़काव कर सकते हैं। सबसे $खुशी की बात यह है कि देशी तरीके से तैयार इस कीटनाशक का कोई दुष्प्रभाव नहीं है।