Mahatma Gandhi Death Anniversary: बापू की यादें लिए 74 सालों से श्राद्ध दिवस मना रहा कटिहार का कुर्सेला, पढ़ें 1934 का ऐतिहासिक किस्सा
Mahatma Gandhi Death Anniversary - बिहार के कटिहार में एक जगह है कुर्सेला। कुर्सेला वो स्थान जो उन 13 संगम स्थलों में शामिल जहां बापू का अस्थि भस्म प्रवाहित किया गया था। अपने गर्भ में बापू की यादें लिए कुर्सेला हर रोज उनके भजनों को गाता दोहराता है।
नीरज कुमाार, कटिहार: जिले के कुर्सेला से महात्मा गांधी की यादें जुड़ी हुई हैं। गांधी जी ने कुर्सेला से पूर्णिया जिले के टीकापट्टी तक की पदयात्रा भी की थी। कुर्सेला का गंगा कोसी संगम तट देश के उन 13 संगम स्थल में शामिल है। जहां महात्मा गांधी का अस्थि भस्म प्रवाहित किया गया था। कुर्सेला में गांधी घर की भी स्थापना भी की गई। यहां से महात्मा गांधी का विशेष जुड़ाव होने के कारण प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली गांधी दर्शन समिति ने कुर्सेला गांधी घर को गांधी व्याख्यान केंद्र के रूप में विकसित किए जाने का निर्णय लिया था। इसको लेकर गांधी घर समिति को कुछ राशि का आवंटन सुंदरीकरण के लिए आवंटित किया गया था।
महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार में भाग लेने स्वतंत्रता सेनानी बैद्यनाथ चौधरी के नेतृत्व में स्थानीय स्वतंत्रता सेनानी दिल्ली गए थे। अंतिम संस्कार के बाद देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पीतल के कलश में अस्थि भस्म कुर्सेला संगम तट पर प्रवाहित करने को लेकर बैद्यनाथ चौधरी को सौंपा था। गांधी जी के अंतिम संस्कार से लौटने के बाद बैद्यनाथ चौधरी के नेतृत्व में अस्थि भस्म को संगम तट पर प्रवाहित किया गया था। वर्ष 12 फरवरी 1948 से ही हर साल गांधी जी का श्राद्ध दिवस मनाने की कुर्सेला में परंपरा रही है।
श्राद्ध दिवस पर गांधी के भजन की प्रस्तुति के साथ ही गरीब व असहाय लोगों को भोजन कराया जाता है। हलांकि कोरोना संक्रमण के कारण पिछले दो वर्षों से वृहत रूप से आयोजन नहीं करते हुए भजन कीर्तन कर सांकेतिक तौर पर श्राद्ध दिवस मनाया जा रहा है। कुर्सेला गांधी घर में 1934 के भूकंप तथा गांधी जी से जुड़ी चित्रों की प्रदर्शनी दीर्धा भी लगाई गई है। गांधी घर में प्रत्येक दिन संध्या समय बापू के प्रिय भजन वैषण्व जन तो तेने कहिए.... गाया जाता है।
10 अप्रैल 1934 को पहुंचे थे कुर्सेला
महात्मा गांधी 10 अप्रैल 1934 को टीकापट्टी से कुर्सेला पहुंचे थे। उन्होंने कुर्सेला तक पदयात्रा भी की थी। स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ बैठक कर आजादी की लड़ाई को धारदार बनाने की रणनीति तैयार की थी। 1934 में ही भूकंप के बाद असम के धुबरी जाने के क्रम में महात्मा गांधी कुछ देर के लिए कुर्सेला में रूके थे। स्थानीय छात्रों के आग्रह पर उन्होंने एक सभा को भी संबोधित किया था। इसके पूर्व भी 1925 में गांधी जी के कटिहार आने की बात कही जाती है।