घर में तैयार मिष्ठान्न से ही होती है मां दुर्गा की पूजा, जानिए... किस मंदिर की है यह विशेषता
महाशय ड्योढ़ी स्थित धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के दुर्गा मंदिर में देवी की पूजा-अर्चना व जयकारे से माहौल भक्तिमय हो उठा है। महाष्टमी के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं ने खोइंचा भरी।
भागलपुर [विकास पाण्डेय]। चंपानगर के महाशय ड्योढ़ी स्थित धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के दुर्गा मंदिर में देवी की पूजा-अर्चना व जयकारे से माहौल भक्तिमय हो उठा है। बुधवार को महाष्टमी पूजा के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं ने खोइंचा भरी। निंशा पूजा में लाल पुष्प, लाल वस्त्र व रक्त चंदन आदि के साथ तांबे के बर्तन पर यंत्र की रचना की गई तथा विधि-विधान से पूजा की गई। महाष्टमी अनुष्ठान के दौरान कई साधु, संतो व तांत्रिकों ने भी यहां धुनी रमाई। यहां मां भगवती को सदियों से पुरोहित के घर में तैयार किए गए मिष्ठान्न व पकवान से ही भोग लगाए जा रहे हैं। यह परंपरा आज भी लागू है। यहां पश्चिम बंगाल से ढाक बजाने वाले बुलवाए गए हैं।
गुरुवार नवमी को ढाक की थाप के बीच देवी की भव्य पूजा-अर्चना होगी। आज दोपहर 2.32 बजे तक नवमी काल रहेगा। यह जानकारी देते हुए इस दुर्गा मंदिर के सेवायत अरधेंदु घोष व पुरोहित मणिमोहन बनर्जी उर्फ मंटू बाबा ने बताया कि दशमी को सबेरे से मां दुर्गा की पूजा, पुष्पांजलि सहित कई कार्यक्रम होंगे। इनमें ध्युत क्रीड़ा, दही थप्पा, अष्टधातु की मां भगवती को पालकी पर बाजे-गाजे के साथ मंदिर से ठाकुरबाड़ी पहुंचाने, मंदिर में जल रहे चिराग को सेवायत के घर पहुंचाने, नव पत्रिका का विसर्जन व विदाई से पूर्व महिलाओं द्वारा मां की गलसेदी आदि कार्यक्रम शामिल हैं। राज परिवार के लोग सदा विजय प्राप्त करते रहें तथा वे व समाज के लोग धन-धान्य से संपन्न रहें इस उद्देश्य से दशमी के दिन देवी विसर्जन के पूर्व सेवायत व पुरोहित प्रतीकात्मक द्युत क्रीड़ा खेली जाती है। इसमें सेवायत दांव पर रखे सोने की अंगूठी जीतने में सफल रहते हैं। हारने वाले मुख्य पुरोहित को भी 501 रुपये का दक्षिणा प्रदान किया जाता है। शुक्रवार को यह रस्म भी यहां होगा।
उसके बाद मंदिर परिसर में हाथ में हल्दी मिश्रित दही लगाकर उसे पीछे ले जाकर दीवार पर थप्पा लगाने की रस्म पूरी की जाएगी। परिवार व समाज की सुख-समृद्धि के लिए यह विधान किया जाता है। पुरोहित ने बताया कि दशमी को देवी की प्रतिमा के विसर्जन से पहले बाजे-गाजे के साथ नदी तट पर ले जाकर नव पत्रिकों का विसर्जन किया जाता है। उसके बाद स्थानीय श्रद्धालु मां दुर्गा व भगवान शिव की प्रतिमा को कंधे पर उठाकर गंगा तट पर पहुंचाते हैं।
सेवायत पलटन घोष ने बताया कि कई सौ वर्षों से गंगा तट पर मां दुर्गा व भगवान शिव को अलग-अलग नाव पर बिठाकर सात फेरे लगाए जाते हैं। उसके बाद सूर्य अस्त होने से पूर्व ही नदी में उन्हें विसर्जित किए जाने की परंपरा है। इसे देखने के लिए नदी तट पर लोगों की अपार भीड़ जुटती है। उन्होंने बताया कि इस बार दशमी का शुभ मुहूर्त शाम 4.31 बजे तक है। पुरोहित ने बताया देवी विसर्जन के बाद सारे लोग मंदिर पहुंचते हैं। वहां मुख्य कलश से श्रद्धालुओं की सुख-शांति के लिए शांति जल छिड़का जाता है। उनके बीच नव पत्रिका के पास रखी हल्दी व जयंती वितरित किए जाते हैं।