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महानंदा का ध्वस्त तटबंध एक बार फिर कटिहार में मचा सकती है तबाही, 11 लाख की आबादी हो सकती है प्रभावित

कटिहार में महानंदा का ध्वस्त तटबंध एक बार फिर तबाही मचा सकता है। बावजूद नदी से सिल्ट हटाने बागदोप की खुदाई या फिर बाढ़ का स्थाई समाधान करने की दिशा में विभागीय एवं जनप्रतिनिधि के स्तर पर पहल नहीं की गई है। इससे लोग सहमे हुए हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 04:32 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jun 2021 04:32 PM (IST)
महानंदा का ध्वस्त तटबंध एक बार फिर कटिहार में मचा सकती है तबाही, 11 लाख की आबादी हो सकती है प्रभावित
कटिहार में महानंदा का ध्वस्त तटबंध एक बार फिर तबाही मचा सकता है।

कटिहार [संजीव मिश्रा]। कदवा के शिवगंज में ध्वस्त तटबंध एक बार फिर तबाही का मंजर बन सकता है। तटबंध को बांधने के सवाल पर बांध के अंदर एवं बाहर बसे लोगों के बीच कोई समाधान नहीं निकल पाया है। वोट बैंक के कारण सांसद एवं विधायक भी इस मुद्दे पर खामोश ही रहते हैं। तटबंध के खुला रहने से प्रति वर्ष कदवा के अलावा कई प्रखंड बाढ़ से प्रभावित होते हैं। करोड़ों की पुल-पुलिया, सड़क, फसल, घर आदि बह जाता है।

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बावजूद नदी से सिल्ट हटाने, बागदोप की खुदाई या फिर बाढ़ का स्थाई समाधान करने की दिशा में विभागीय एवं जनप्रतिनिधि के स्तर पर पहल नहीं की गई है। ऐसे में एक बार पुन: मानसून के प्रवेश के साथ हीं संभावित बाढ़ को लेकर लोगों की धड़कने तेज हो गई हैं। पहली बार 1987 में आई विनाशकारी बाढ़ के समय कदवा में शिवगंज व कचौरा सहित कई जगहों पर बांध के अंदर बसे लोगों ने तटबंध को काट दिया था या स्वत: ध्वस्त हो गई थी। जिसके कारण चारों ओर जलप्रलय हीं नजर आ रहा था। सैकड़ों जानें गई थी।

बस्ती का बस्ती पानी के वेग में उजड़ गया था। पुल-पुलिया के साथ झौआ एवं गोरफर में रेलवे पुल बह गया था। पटरी उखड़ गईं थी। उसके बाद विभाग की ओर से तटबंध को बांधने एवं टूटने का सिलसिला चलता रहा। इसमें करोड़ों-अरबों खर्च भी होते रहे। लेकिन बाढ़ की समस्या जस की तस बनी हुई है। बीच के कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो 2017 से लगातार तटबंध के टूटने की वजह से लोग बाढ़ का प्रकोप झेलने को विवश हैं।

11 पंचायत की दो लाख आबादी प्रभावित

कदवा में तटबंध के अंदर लगभग 11 पंचायत में लगभग दो लाख की आबादी निवास करती है। बांध को बंधने की दशा में बाढ़ के समय तटबंध के अंदर लोग डूबने लगते हैं। इसी परिस्थिति में 2017 में बढिय़ा परती के पास सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने तटबंध को काट दिया था। जिसपर प्रशासन भी मूक दर्शक बनी रही थी। पुन: वहां तटबंध को बांधा गया तो 2018 में शिवगंज सहित तीन जगह तटबंध टूट गया। पुन: 2019 में टूटे तटबंध से निकलने वाली पानी ने भयानक तबाही मचाई। प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ के स्थायी समाधान की दिशा में ना तो विभागीय स्तर पर पहल हो रही है और ना हीं स्थानीय जनप्रतिनिधि ही इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। तटबंध के अंदर बसे लोग हमेशा से बांध बांधने का विरोध करते आ रहे हैं।

आधे दर्जन प्रखंड होता है प्रभावित:

महानंदा की बाढ़ से कदवा प्रखंड के अलावे डंडखोरा, आजमनगर, प्राणपुर, कटिहार, अमदाबाद सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। प्रतिवर्ष बाढ़ के पानी के वेग में बह जाने एवं डूबने से सैकड़ों जाने तो जाती ही है। बड़ी संख्या में लोगों का कच्चा-पक्का मकान ध्वस्त होने के साथ फसलों की व्यपक पैमाने पर बर्बादी होती है।

नदी में सिल्ट के जमा होने से पानी का फैलाव: महानंदा नदी में गाद के जमा होने की वजह से पानी मुख्य नदी से निकल कर बाहर फैलती है तथा तटबंध पर पानी का दवाब बढ़ता है। महानंदा के बागडोप में कई किलोमीटर में गाद जमा होने से यह नदी अपने मुख्य मार्ग में अविरल नहीं बह पा रही है। झौआ रेल पुल के नीचे से कंकर नदी से इसका बहाव होने लगा है। पुल की चौड़ाई कम होने से पानी का डिस्चार्ज कम होता है। जबकि बारसोई से होकर बहने वाली महानंदा की मुख्य धारा शांत रहती है। लेकिन इन वर्षों में ना तो बागडोप की खुदाई हुई और ना हीं नदी में जमे सिल्ट को साफ करने की दिशा में विभागीय पहल हुई। सरकार का भी ध्यान बांध की मरम्मत पर अधिक रहा। 1987 में तटबंध के टूटने के बाद जोर-शोर से बागदोप की खुदाई का मामला उठा था। तत्कालिक कदवा विधायक उस्मान गनी ने विधानसभा में बागडोप की खुदाई का मामला भी उठाया था। लेकिन आज तक इस दिशा में कुछ नहीं हो पाया है।

कहते हैँ विधायक :

स्थानीय विधायक डा शकील अहमद खान ने बताया कि उन्होंने बाढ़ की पीड़ा को लगातार काफी नजदीक से देखा है। नदी में जमे गाद की सफाई से हीं बाढ़ का समाधान हो सकता है। बीच नदी में गाद जमा है। बागडोप की भी खुदाई होनी चाहिए। बाढ़ का स्थायी समाधान जरूरी है।  


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