Assembly elections: कोसी पर केवल होती रही राजनीति, नहीं बन सका एक भी बार चुनावी मुद्दा
कभी बाढ़ से बचाव की राजनीति कभी बाढ़ के बाद राहत की राजनीति कभी कोसी पर सड़क तो कभी रेलपुल की राजनीति कभी बांध तो कभी विस्थापितों की राजनीति तो कभी हाई डैम व स्थाई निदान की राजनीति। उन्मुक्त बहती कोसी को तटबंधों के बीच कैद कर दिया गया।
सुपौल [भरत कुमार झा]। कोसी के इलाके में हमेशा से ही कोसी की ही राजनीति प्रभावी रही है। पार्टी कोई भी हो मौका कोई भी मुद्दा तो आखिरकार कोसी को ही बना दिया जाता है। कभी बाढ़ से बचाव की राजनीति, कभी बाढ़ के बाद राहत की राजनीति, कभी कोसी पर सड़क तो कभी रेलपुल की राजनीति, कभी बांध तो कभी विस्थापितों की राजनीति तो कभी हाई डैम व स्थाई निदान की राजनीति।
कोसी पर राजनीति की गाथा आजादी के बाद से ही प्रारंभ हो गई। उन्मुक्त बहती कोसी को तटबंधों के बीच कैद कर दिया गया। कोसी को बहाने के लिये जो रास्ते बनाये गये वहां भी राजनीति आ गई। कोसी बराज से कोपरिया तक के कई गांव इस राजनीति के शिकार हो गये। फिर पुनर्वास की राजनीति शुरु हो गई। तटबंध से संसद तक आवाज गूंजने लगी। संसद के कई टर्म बदल गये लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका। हर वर्ष बाढ़ और बचाव के नाम पर सरकारी राशि जगह लगती रही।
तटबंध बनने के बाद कोसी क्षेत्र के लोगों के लिये कोसी विकास प्राधिकार का गठन किया गया। उसमें भी हावी रही कोसी की राजनीति लेकिन कभी मुकाम नहीं पा सका कोसी विकास प्राधिकार। अंतत: गठबंधन की सरकार ने प्राधिकार को ही खत्म कर दिया। आजादी के समय से लेकर आज तक के राजनीतिज्ञ कोसी के लोगों को आश्वासन की घूंट पिलाते रहे और कोसी के लोग इतने संवेदनशील हैं कि आज भी इंतजार में हैं कि उनके दिन बहुरेंगे। जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति बांध निर्माण के वक्त सुपौल की धरती पर आये थे तो शायद ही कोसी का कोई गांव हो जहां के लोगों ने पहुंचकर श्रमदान नहीं दिया था इस आशा से कि अब उनकी ङ्क्षजदगी में नई खुशहाली आने वाली है। उनके सभा मंच को आज भी लोग सहेजे हैं और भरोसा में हैं कि कोसी की समस्याओं से मुक्ति के लिये कोई तो आयेगा..। अफसोस कि इतने के बावजूद कोसी पर मात्र राजनीति होती रही लेकिन आजतक कोसी कभी राजनीतिक मुद्दा नहीं बन सका।
पर्यावरण विद् तटबंध निर्माण से लेकर अब तक जितना खर्च किया गया उतनी लागत से सुंदर कोसी का निर्माण किया जा सकता था। अभियंता, प्रशासन व राजनीतिज्ञ के इर्द गिर्द घूमती कोसी इन लोगों के लिये भले ही सोने की चिडिय़ा बनी लेकिन कोसी की जनता आज भी वहीं की वहीं है।