अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस : गंगा की वजह से समृद्ध है यहां की जैव विविधिता समृद्ध
पृथ्वी पर मौजूद जीवों की विविधता ही जैव विविधता कहलाती है। एक कोशिकीय जीव से बहुकोशिकीय तक पादप जंतु और मनुष्य सभी मिलकर जैव विविधता का निर्माण करते हैं।
भागलपुर [नवनीत मिश्र]। गंगा नदी की वजह से भागलपुर की जैव विविधता अब भी काफी समृद्ध है। जलस्रोत रहने के कारण ग्लोबल वार्मिंग का यहा कम असर पड़ा है। ज्यादा गहरी और पानी शुद्ध होने की वजह से डॉल्फिन और सौ प्रजातियों की मछलियां यहां पाई जाती है। छह से सात प्रजातियों के कछुए हैं। दियारा इलाके में उदबिलाव, जंगली सूअर, नील गाय सहित कई अन्य जानवर रह रहे हैं। पक्षियों की 200 प्रजातियां यहां निवास करती है। इनके कलरव से नदी किनारे का दृश्य मनोरम बना रहता है।
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सुनील कुमार चौधरी का कहना है कि भागलपुर में जलवायु परिवर्तन का असर नहीं दिख रहा है। यहां का पर्यावरण पशु-पक्षियों और अन्य प्राणियों के लिए अनुकूल है। फरवरी अपने देश लौट जाने वाले पक्षी मौसम अनुकूल रहने की वजह से इस बार यहीं रह गए हैं।
प्रो. चौधरी के अनुसार अभी तत्काल खतरा सीवेज से है। नाला के माध्यम से मल और गंदा जल गंगा में प्रवाहित हो रहा है। साथ ही नदी किनारे के खेतों में रासायनिक और उर्वरक का बेतहाशा उपयोग हो रहा है। इसके अवशेष किसी न किसी माध्यम से नदी में जा रहा है। इसका प्रभाव आने वाले समय में जलीय जीवों पर पड़ेगा।
खेती पर भी इसका असर
बिहार कृषि विश्वविद्यालय की विज्ञानी डॉ. स्वर्णा राय चौधरी कहती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जलवायु एवं मौसम में अप्रत्याशित बदलाव हो रहा है। वर्षा अनियमित हो गई है। सुखाड़ और असमय आंधी पानी से कई फसलों की खेती प्रभावित हो रही है। पेड़-पौधों की कई प्रजातियों पर भी इसका असर पड़ रहा है। पिछले 15 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में तकरीबन 1.8 सेल्सियस वृद्धि हुई है। अगर ऐसा ही रहा तो कई प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।
जिले में 33 फीसद वन क्षेत्र होना चाहिए, लेकिन यहां दस फीसद से कम है। वाहनों की बेतहाशा वृद्धि और खेतों में अंधाधुन उर्वरक का प्रयोग किए जाने के कारण जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ गया है। - प्रो. शरतचंद्र मंडल, पूर्व विभागाध्यक्ष भूगोल विभाग तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय
ये है जैव विविधता
पृथ्वी पर मौजूद जीवों की विविधता ही जैव विविधता कहलाती है। एक कोशिकीय जीव से बहुकोशिकीय तक, पादप, जंतु और मनुष्य सभी मिलकर जैव विविधता का निर्माण करते हैं।