Mission 2019 : किस सीट से किसकी कुर्बानी
भागलपुर सीट पूर्व बिहार, कोसी-सीमाचल और संताल परगना की राजनीति का गेट वे ऑफ इंट्री माना जाता है। इस सीट के महत्व को देखते हुए 2014 में हार के बावजूद भाजपा शायद ही इसे छोडे।
भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल बनने लगा है। अभी प्रारंभिक चरण के अटकलों का दौर जारी है। यह दोनों गठबंधनों में सहयोगी पार्टियों के बीच सीटों की घोषणा तक चलेगा। फिलहाल बात भागलपुर की। महागठबंधन से राजद तय है। इसमें कहीं कोई किंतु-परंतु नहीं दिखता। पर एनडीए में दावे-प्रतिदावों का बाजार गर्म हो रहा है। भागलपुर सीट को लेकर भाजपा के अपने दावे हैं तो जदयू ने लिखत-पढ़त में इस सीट पर दावेदारी ठोक रखी है। भाजपा के दावेदारों में अभी शाहनवाज सबसे बड़े नाम हैं।
जदयू में जिताऊ उम्मीदवार की तलाश पूरी नहीं हुई है। कई नामों पर गुणा-भाग चल रहा है, पर अभी का गणित के मुताबिक जिताऊ उम्मीदवार के तौर पर कहकशा परवीन से अधिक अंक किसी को प्राप्त नहीं हो रहा है। सबसे रोचक नजारा फिलहाल भाजपा में है। छोटे-बड़े कई दावेदार कतार में हैं। यहा तक कि वार्ड का चुनाव हार चुके एक नेताजी खुद को सासद के रूप में सोशल मीडिया पर प्रोजोक्ट करते दिखे थे। यानी दिखावे के तौर पर सभी एक-दूसरे के साथ हैं, पर अंदर ही अंदर हर कोई एक-दूसरे की पैर खींच रहा है। अब 25 जनवरी को हुए भाजपा के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं और शक्ति केंद्र प्रभारियों के सम्मेलन पर नजर डालें। यहा बात बड़े दावेदारों की।
मंच पर भाजपा के सबसे बड़े दावेदार के रूप में यहा से डेढ़ दफे सासद रह चुके केंद्रीय नेता शाहनवाज हुसैन मजबूती से थे तो एक अन्य दावेदार भाजपा उपाध्यक्ष सम्राट चौधरी भी थे। बाका से दावेदार के रूप में पुतुल देवी थीं। हालाकि सम्राट चौधरी खगडिय़ा सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। वे इसके लिए अड़े हुए हैं। पर यह सीट लोजपा को जानी लगभग तय है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व ने सीट और प्रत्याशी शेयरिंग के मद्देनजर लोजपा से चुनाव लडऩे को लेकर उनका मन टटोला। पर सम्राट ने लोजपा में जाने मना कर दिया है। खगडिया नहीं मिलने की स्थिति में उन्होंने भागलपुर को अपनी दूसरी पसंद बताई है।
इधर शाहनवाज के लिए उनके कार्यकर्ता-समर्थक पूरी तैयारी कर रहे हैं। खुद शाहनवाज और उनके समर्थक कहीं से कोई परेशानी नहीं देख रहे हैं। वे चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। यह शाहनवाज की क्षेत्र में जमीनी गतिविधियों और उनके सोशल साइटस की गतिविधियों को देखकर भी कहा जा सकता है। पर बात यहा खत्म नहीं होती। जाहिर है कि भाजपा में सीट बंटवारे को लेकर भारी झमेला फंसने वाला है। सूबे में इस बार पार्टी के हिस्से में है मात्र 17 सीट और 2014 में 22 पार्टी ने जीती थी। इस हिसाब से पाच सीट पर एडजेस्टमेंट का चक्कर पहले से ही है। हालाकि बेगूसराय में भोला बाबू के निधन, पटना साहिब से शत्रुघन सिन्हा और दरभंगा से कीर्ति आजाद का पत्ता कटना तय है। यानी अभी भी दो सीटिंग सासदों का टिकट काटना ही है। तो बडा सवाल है कि हारी हुई सीट के लिए पार्टी अपने किस सीटिंग सासद की कुर्बानी देगी।
हालाकि भागलपुर सीट पूर्व बिहार, कोसी-सीमाचल और संताल परगना की राजनीति का गेट वे ऑफ इंट्री माना जाता है। इस सीट के महत्व को देखते हुए 2014 में हार के बावजूद भाजपा शायद ही इसे छोडे। संभवत: इसलिए भाजपाई और शाहनवाज और उनके समर्थक चुनावी तैयारी में जुटे नजर आते हैं। शाहनवाज पार्टी के मुस्लिम चेहरा हैं। अगर पार्टी उन्हें इग्नोर करती है तो सबका साथ-सबका विकास के नारे पर ही सवाल उठ जाएगा। अभी एक दिन पहले जमालपुर-हावड़ा सुपर एक्सप्रेस में एक एसी बॉगी जुड़ा। शाहनवाज ने इसका क्रेडिट लेते हुए मंत्री से मिलते तस्वीर और बयान जारी किया। यानी वे भागलपुर के लिए ही लगे हुए हैं। दूसरी ओर सम्राट चौधरी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय के करीबी हैं और पार्टी उन्हें कुशवाहा फेस के रूप में बिहार में प्रोजेक्ट कर रही है। तो पार्टी उन्हें कहा एडजेस्ट करेगी। क्या एक और हारी हुई सीट खगडिया के लिए अडेगी या सबका साथ सबका विकास बनाम जात-जमात पर भागलपुर को तौलेगी।
इन दोनों का झ्मेला दूर हुआ तो बांका सीट के लिए तैयार बैठीं पुतुल देवी को एडजेस्ट कैसे किया जाएगा। पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल यह कि इस इलाके की सारी सीटें हारी हुई हैं। हालाकि एक चर्चा है कि पुतुल देवी की पुत्री और अर्जुन पुरस्कार विजेता श्रेयशी सिंह को जदयू में लाया जा रहा है। ऐसे में बाका से श्रेयशी के लिए जदयू में जगह बन गया तो यह भी पुतुल देवी का एडजेस्टमेंट ही माना जाएगा। हालाकि बाका सीट के लिए कटोरिया विधायक व पूर्व सासद गिरिधारी यादव जदयू की पहली हैं! कुल मिलाकर अटकलबाजियों के बाजार में भी अभी बड़ा कन्फ्यूजन है। ऐसे में किस सीट से किसकी कुर्बानी होगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा।