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बाढ़ का आफ्टर इफेक्‍ट: सब्जियों में लगी आग, रोटी पर भी आफत

बिहार में बाढ़ का असर यह है कि जरूरी वस्‍तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं। लोगों को काम नहीं मिल रहा है। रसोई में हिंग से लेकर हल्‍दी तक गायब हो चुकी है। लोग भात-नमक खाने को विवश हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 24 Aug 2017 08:58 PM (IST)Updated: Thu, 24 Aug 2017 10:26 PM (IST)
बाढ़ का आफ्टर इफेक्‍ट: सब्जियों में लगी आग, रोटी पर भी आफत
बाढ़ का आफ्टर इफेक्‍ट: सब्जियों में लगी आग, रोटी पर भी आफत

भागलपुर [समीर सिंह]। बिहार में बाढ़ का असर यह है कि सीमांचल विपत्तियों से जूझ रहा है। महंगाई की मार सबसे अधिक भयावह, कष्टप्रद और घातक सिद्ध हो रही है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की बात छोड़ दें, आम आदमी का जीवन-यापन मुश्किल हो गया है। कीमत दिन दूनी रात चौगुनी सुरसा की भांति मुंह बाए है। आम उपयोग की वस्तुओं के भाव आसमान छू रहे हैं। जन सामान्य का जीवन निर्वाह कठिन हो गया है।

पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार जिले में बाढ़ ने जीवन के सपने को पानी-पानी कर दिया, तो अब इसके बाद बाजार में बढ़ती महंगाई, तो आम आवाम का जीना ही दूभर कर दिया है। हरी-सब्जियों से लेकर बुनियादी जरूरतों की कीमत आसमान छू रही हैं। लोगों की थाली से पहले तो हरी सब्जियां फिर दाल आदि भी गायब होने लगी हैं। लोग नमक-भात खाने को मजबूर हैं।

अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड के शिक्षक कुंदन कुमार ठाकुर, ललित मिश्रा, संतोष साह, अखिलेश कुमार रजक, मनोज पूर्वे, पवन कुमार मंडल, पवन पावक आदि बताते हैं कि पांच सौ रुपये की नोट शाम में हाट लेकर जाता हूं, तो झोला भी पूरी तरह से नहीं भरता। वहीं, पॉकेट जवाब देने लगता है। गरीबों की मजदूरी तो छिन गई। इस महंगाई ने तो उनके लिए दो जून की रोटी पर भी आफत ला दिया है।

नरपतगंज प्रखंड के डॉ. जनार्दन यादव, राजकिशोर यादव, महिला शिक्षक अर्चना कुमारी, मनोज यादव, अमरेंद्र यादव, रमेश यादव आदि बताते हैं कि तीन दिनों से पान की खोज करता हूं लेकिन पान बाजार से गायब है। अगर कहीं मिल भी जाता है, तो इतना महंगा कि पूछिए मत।

परिवहन की व्यवस्था बाढ़ के कारण पूरी तरह चौपट होने से खगडिय़ा, सिलीगुड़ी, कोलकाता से आने वाला पान बाजार में मिलना मुश्किल हो गया है। फतेहपुर हाट के पान दुकानदार बबलू सिंह, मो. हजरत, शंभू मेहता, विरेंद्र मेहता, अनिल पासवान बताते हैं कि पान की किल्लत से दुकानदारी पूरी तरह चौपट हो गई है। भोजन पानी पर भी आफत है। सरकार बाढ़ पीडि़तों की मदद करती है लेकिन हमलोगों की दुकानदारी पूरी तरह चौपट हो गई, इसे कौन देखेगा।

सब्जी विक्रेता उमेश यादव बताते हैं कि हरी सब्जियों की कीमत में आग लग गई है। पहले तो जीएसटी का भूत फिर यह बाढ़ हम लोगों के जीवन का पानी ही छीन लिया है। फारबिसगंज के फल विक्रेता घनश्याम दास कहते हैं कि बुनियादी चीजों का टोटा हो गया है। सुनीता देवी, रेखा देवी, सोनी कुमारी, शोभा देवी बताती हैं कि हींग से हल्दी तक का दाम आसमान छूने लगा है।

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बाढ़ का प्रकोप तो आठ दस दिनों तक रहा लेकिन प्रभाव तो महीनों दिखेगा। ग्रामीण बताते हैं कि ऐसी स्थिति लंबे समय तक बनी रही, तो जीना ही मुश्किल हो जाएगा। कुछ दिनों से जीएसटी की मार से अलग जनमानस बेहाल है। उस पर बाढ़, तिस पर महंगाई, जाने भगवान कैसे यह जीवन चलेगा...।

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