कोसी के इन गांवों में सबके पास है अपना-अपना नाव, हर साल पांच महीने तक डूबा रहता है पूरा इलाका
कोसी के कई ऐसे गांव हैं जहां सभी के पास अपना-अपना नाव है। यहां पर साल में पांच महीना लोग बाढ़ का प्रकोप झेलते हैं। पूरा इलाका डूबा रहता है। गांव से निकलने के लिए नाव ही लोगों के लिए एक मात्र सहारा है।
संवाद सूत्र, अमदाबाद, कटिहार। संभावित बाढ़ एवं बरसात के मद्देनजर प्रखंड अंतर्गत विभिन्न गांव के लोग अपने नाव को दुरुस्त करने में जुट गए हैं। एक तरफ जहां पुराने नावों की मरम्मत करवाई जा रही है वहीं लोग नए नाव की खरीदारी भी कर रहे हैं।
गौरतलब हो कि अमदाबाद प्रखंड बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। ऐसे में यहां कमोबेश हर घर में एक नाव रखा जाता है। बताते चलें कि अमदाबाद प्रखंड गंगा एवं महानंदा नदी से घिरा हुआ है। प्रखंड के लोग प्रत्येक वर्ष बाढ़ की विभीषिका से जूझते हैं। प्रखंड में गंगा एवं महानंदा से उत्पन्न बाढ़ का प्रभाव करीब चार से पांच माह तक रहता है। इस दौरान आवागमन का सभी मुख्य मार्ग जलमग्न हो जाता है। बाढ़ के दौरान आवागमन को बहाल रखने के लिए प्रखंड के लोग छोटी बड़ी नौका का ही सहारा लेते हैं। नाव के जरिए ही लोग स्वास्थ्य केंद्र, प्रखंड मुख्यालय या फिर अमदाबाद बाजार आदि स्थानों तक आने के लिए मुख्य सड़क तक पहुंचते हैं।
टीन एवं लकड़ी के नाव का करते हैं प्रयोग:- बताते चलें कि प्रखंड के लोग बाढ़ के दौरान आवागमन बहाल रखने के लिए चदरे की छोटी-छोटी नाव का इस्तेमाल करते हैं। वहीं कई लोग लकड़ी के नाव का भी इस्तेमाल करते हैं। जहां टीन के नाव पर महज एक से दो लोग ही बैठते हैं वहीं लकड़ी का नाव विभिन्न आकार का होता है एवं इस पर पांच से 10 या इससे अधिक व्यक्ति भी सवार होते हैं।
बाजार में भी बनने लगा है टीन का नाव: टीन का छोटा नाव बाजारों में भी मिल जाता है। इसे लेकर स्थानीय कारीगर टीन के चदरे से नाव बनाते हैं। जिसे गांव के लोग खरीद कर ले जाते हैं। लोगों ने बताया कि पहले करीब 500 रु में नाव हो जाया करता था लेकिन बढ़ती महंगाई के साथ अब टीन का एक छोटा नाव बनाने में करीब 1500 रु पड़ जाता है।
क्या कहते हैं ग्रामीण:- झब्बू टोला के सैदुल् इस्लाम, भगवान टोला के अनिल सिंह, बालमुकुंद टोला के प्रमोद चौधरी, हरदेव टोला के पवन सिंह, अशोक चौधरी इत्यादि लोगों ने बताया कि बाढ़ के दौरान आवागमन में काफी परेशानी होती है। प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचने में भाड़े वाले नाव का इंतजार करना पड़ता है। जिससे प्रखंड मुख्यालय जाना हो या मरीजों को लेकर अस्पताल समय पर नहीं पहुंच पाते हैं। इस कारण अपनी नाव की व्यवस्था रखते हैं एवं बाढ़ के दौरान नाव से आवागमन करते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ का पानी निकल जाने पर टीन के नाव को साफ सुथरा कर घरों में टांग देते हैं। जबकि लकड़ी के नाव को अगल बगल जमी पानी में ही छोड़ दिया जाता है एवं पानी बढ़ने पर उसका इस्तेमाल किया जाता है। बहरहाल अमदाबाद प्रखंड में बरसात के शुरुआत से ही लोग अपने अपने नाव को दुरुस्त करने में जुट गए हैं।