चंदेल राजवंश के साहित्य प्रेम की झलक गिद्धौर राजमहल में
गिद्धौर राज रियासत का ऐतिहासिक राजमहल जो लगभग 672 वर्षों के पुरानी इतिहास को संजोये हुए आज एक मूक गवाह बना हुआ है।
जमुई, जएनएन। बिहार का चंदेल राजवंश अपनी परंपरा विश्रुत साहित्य कला प्रेम के लिए सदा से विख्यात रहा है। चंदेल शासकों के राजतत्व काल में महाराजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह का राजत्वकाल एक सत्ता के रूप में देदीप्यमान रहा है। यहां राजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह का जन्म 1860 में हुआ था। इनके पिता शिव प्रसाद सिंह थे। अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने 1886 में गिद्धौर राज्य की बागडोर संभाली। अपनी विलक्षण प्रतिभा उत्कृष्ट लोक भावना और असाधरण कर्मशीलता के कारण सहज में ही उन्हें उस युग के प्रथम श्रेणी के व्यक्तियों में प्रतिष्ठित किया गया। रावणेश्वर प्रसाद सिंह, बंगाल विधान परिषद के क्रम से 1893, 1896 एवं 1902 में तीन बार सदस्य बनाए गए। बंगाल बिहार के शासनकाल में उनका बराबरी का हाथ रहा था। वे बंगाल टीनेंसी एक्ट सुधार कमेटी के भी सदस्य थे। तत्कालीन सरकार ने उन्हें महाराजा बहादुर की पदवी से अलंकृत किया था। तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड एलगिन ने 1902 में उन्हें केसीआइई की उपाधि दी थी। अपने राज्य काल मे उन्होंने बंगाल से लेकर बिहार तक सड़कों का सुधार, अस्पताल का निर्माण, विद्युत प्रंबध तथा मिंटो टावर और विश्राम भवन के अलावा उन्होंने अत्यंत रमणीय तड़ाग तथा उसके तट पर एक खूबसूरत मूल्यवान त्रिपुर सुंदरी मंदिर का निर्माण कराया था।
672 वर्ष पुराना है गिद्धौर राज रियासत का इतिहास
कभी गिद्धौर राज महल की रोशनी से रोशन हुआ करता था यह इलाका। गिद्धौर राज रियासत का ऐतिहासिक राजमहल जो लगभग 672 वर्षों के पुरानी इतिहास को संजोये हुए आज एक मूक गवाह बना हुआ है। कालंजर से गिद्धौर आकर चंदेल राजा द्वारा स्थापित किया गया इस राज्य की अजीब दास्तां है। इस इतिहास को जानने के लिए सर्वप्रथम पुराने पृष्टभूमि को जानना आवश्यक है। राजा भोज बर्मनदेव का राज्य पश्चिम में कालंजर तक फैला हुआ था। अजयगढ़ के आसपास उसकी सत्ता बड़ी दृढ़ थी। पूर्व में चंदेल राज्य की सीमा मिर्जापुर की पहाडिय़ों तक विस्तृत थी।
गिद्धौर राज रियासत के अंतिम राजा थे स्व. प्रताप सिंह
1937 तक चंदेल राजाओं का शासनकाल गिद्धौर राज रियासत पर स्थापित रहा। चंदेल वंशज के अंतिम राजा स्व. प्रताप सिंह हुए लेकिन 1938 में राजकुमार प्रताप सिंह के अल्पीयस होने के कारण गिद्धौर राज कोर्ट ऑफ वाडर्स के अधीन हो गया लेकिन जब प्रजातंत्र के प्रवाह में भारतवर्ष आवागमन करने लगा तब महाराजा प्रताप सिंह ने जनसेवा द्वारा व शासन और सेवा के अपने वंश के विश्रुत गौरव को प्रकाशित करने का कार्य किया। उन्होंने बांका लोक सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी कई बार किया था लेकिन चंदेल वंशज के अंतिम राजा प्रताप सिंह के निधन के कारण गिद्धौर राज्य का यह ऐतिहासिक राजमहल बिल्कुल सुनसान है जो खामोशी से अपने स्वर्णिम काल की यादें ताजा कर रहा है।