गिर नस्ल की गायों से बहुरेंगे पशुपालकों के दिन, जानें... इसकी खासियत
जिले के पशुपालकों को गौ पालन के लिए सरकार विशेष अनुदान देगी। बिहार कृषि विश्वविद्यालय पशुपालकों को गौ पालन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हाल में गिर नस्ल के गायों के पालन का प्रचलन बढा है। इस गाय में अनेक खासियत हैं।
भागलपुर [ललन तिवारी]। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के अंतर्गत काम करने वाले कृषि विज्ञान केंद्र ने देसी गायों को पालने की कवायद शुरू की है। केंद्र किसानों को इन गायों को पालने के लिए प्रेरित करेगा। बिहार में पहली बार किसी सरकारी संस्थान में गिर गाय लाई गई है। विटामिन ए-टू की इसके दूध में बहुलता होती है और इस कारण इनका दूध महंगा बिकता है। इस नस्ल की गायें बीमार कम पड़ती हैं।
गिर नस्ल की गायों की खासियत : कृषि विज्ञान केंद्र, सबौर के इंचार्ज डॉ. विनोद कुमार कहते हैं कि गिर नस्ल की गायें गुजरात के गिर जंगलों में पाई जाती है। इनकी कद-काठी मजबूत होती है। देसी नस्ल की गायों में ये अधिक दूध देती हैं। इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। ये गर्म स्थानों और विपरीत परिस्थितियों में भी रह सकती हैं और 10 से 15 किलो दूध आसानी से देती हैं। समयानुसार ये गर्भधारण करती हैं। इन खासियतों के कारण इसे कम खर्च में आसानी से पाला जा सकता है। दूध काफी गुणवत्तापूर्ण होता है। इनका मूत्र भी औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
गोपालकों को मिलेगा विशेष अनुदान : कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार कहते हैं कि सूबे में 86 गौशालाएं है। 29 गोशालाओं में पांच-पांच देसी नस्ल की गायें दी गई हैं। इनमें देसी नस्ल की गायों को रखने की अनिवार्यता है। किसान भी गिर या कोई भी देसी नस्ल की गाय पाल सकते हैं। सरकार इसके लिए विशेष अनुदान का प्रावधान करने जा रही है।
कम बीमार कम पडऩे वाली गिर गाय के पालन की जानकारी किसानों को प्रायोगिक स्तर पर दी जाएगी। केवीके में गिर गाय लाई गई है। इसके दूध उत्पादन, गुणवत्ता और पालन करने के सभी पहलुओं पर अध्ययन किया जाएगा। इसके पालन से किसानों को ज्यादा लाभ मिलेगा। - डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति, बीएयू, सबौर