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जंग-ए-आजादी की दास्तान : अंग्रेज लाठियां बरसाते रहे पर अमर बाबू ने निगल ली क्रांतिकारियों की पर्ची Bhagalpur News

अमर बाबू क्रांतिकारी सियाराम सिंह दयानंद झा बनारसी सिंह केदार नाथ झा लोक नाथ शर्मा महावीर मंडल छेदी तांती व बलदेव मंडल ग्रुप के सबसे छोटे सिपाही थे।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 13 Aug 2019 05:16 PM (IST)Updated: Thu, 15 Aug 2019 02:39 PM (IST)
जंग-ए-आजादी की दास्तान : अंग्रेज लाठियां बरसाते रहे पर अमर बाबू ने निगल ली क्रांतिकारियों की पर्ची Bhagalpur News
जंग-ए-आजादी की दास्तान : अंग्रेज लाठियां बरसाते रहे पर अमर बाबू ने निगल ली क्रांतिकारियों की पर्ची Bhagalpur News

भागलपुर [संजय]। सन 1939। उस समय, आजादी के दीवानों के कदम स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने के लिए लगातार बढ़ रहे थे। उनके हौसलों को तोडऩे के लिए गोरी हुकूमत ने कई क्रांतिकारियों को सलाखों के पीछे धकेला। उन्हें कई तरह की यातनाएं दी। लेकिन, कदम पीछे नहीं हटे। सीने में आजादी की तड़प पाले सेनानियों ने इसे हंसते-हंसते झेल लिया और खुद के साथ दूसरों को भी जागरुक कर आजादी की मशाल तब तक जलाते रहे जब तक देश आजाद नहीं हो गया। उसी समय नाथनगर के नसरतखानी निवासी पन्द्रह वर्षीय बालक अमरनाथ झा भी आजादी की जंग में कूद गए।

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अमर बाबू क्रांतिकारी सियाराम सिंह, दयानंद झा, बनारसी सिंह, केदार नाथ झा, लोक नाथ शर्मा, महावीर मंडल, छेदी तांती व बलदेव मंडल ग्र्रुप के सबसे छोटे सिपाही थे। उनके जिम्मे क्रांतिकारियों के पास संदेश पहुंचना और उनके खाने की व्यवस्था करना का काम था। एक दिन उन्हें घंटाघर के पास एक सहयोगी को बड़ी वारदात को अंजाम देने की योजना के बारे में सूचना देने के लिए भेजा गया। वे जैसे ही भागलपुर विश्वविद्यालय के गेट के पास पहुंचे, अंग्र्रेज सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया। सिपाहियों के पकड़ते ही उन्होंने उस पर्ची को निगल लिया, जिस पर सभी क्रांतिकारियों के नाम लिखे थे। इसके बाद वे भागने लगे। सिपाहियों ने खदेड़ कर उन पर जमकर लाठियां बरसाईं। लाठियों की बौछार से जब वे बेसुध हो गए तो सिपाहियों ने उन्हें इलाज के लिए घंटाघर स्थित अस्पताल में भर्ती करा दिया। लाठियों के निशान उनके शरीर और पैर पर आज भी हैं। घायल होने की सूचना पर क्रांतिकारी दल के कुछ सदस्य चोरी-छिपे अस्पताल पहुंचे और भाग जाने को कहा। अमर बाबू घायलावस्था में ही अस्पताल से फरार हो गए। गोरी हुकूमत ने इनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। पांच वर्ष तक यह फरार रहे।

बस, एक ही धुन थी किसी तरह अंग्रेजों को भगाना है

95 वर्ष के हो चुके अमरनाथ झा बताते हैं, फरारी के दौरान मेरे पिता को गहरा सदमा लगा। उन्होंने बेटे के गम में 196 बीघा जमीन औने-पौने दाम में बेच दी। पिता को लगा था कि अब बेटा ही नहीं तो जमीन का क्या होगा। आंदोलन की वजह से पिता काफी नाराज रहते थे। कई दिनों तक घर में खाने को नहीं मिलता था। मां रोती रहती थी। वह चाहती थी कि हम पढ़ाई लिखाई करें। आंदोलन की राह छोड़ दे। मां को समझाना पड़ता था कि जिन लोगों के लड़के अंग्र्रेजों से लड़ाई लड़ रहे हैं वे भी किसी मां के बेटे हैं। मां तो समझ जाती, लेकिन पिता समझने को तैयार नहीं थे। पर, हमने कभी परवाह नहीं की। बस एक ही धुन थी किसी तरह अंग्र्रेजों को भगाना है। बड़े भाई केदारनाथ झा भी आंदोलनकारियों में शामिल थे। इसलिए उनका समर्थन बराबर मिलता रहता था।

नसरतखानी और बिहपुर में होता था क्रांतिकारियों का ठिकाना

अमर बाबू ने बताया कि जब आंदोलन चल रहा था, उस समय इधर-उधर जाने का कोई साधन नहीं था। पैदल ही जाना पड़ता था। कभी-कभी तो किसी बग्घी में पीछे लटक कर चले जाते थे। क्योंकि आंदोलन के लिए घर से रुपये तो नहीं मिलते थे। भूखे पेट इधर-उधर भटकते थे। अंग्र्रेजों के हाथ भी नहीं आना था और आंदोलन को भी चलाना था। वह बहुत ही संकट का दौर था। वारदात करके हमेशा क्रांतिकारियों का दल नसरतखानी में आता था। यहां गांव के लोगों से रोटी, दाल और भुना हुआ मक्का मांग कर लाते थे। ताकि उन्हें भोजन कराया जा सके। इसके बाद गंगा नदी पार कर दल बिहपुर चला जाता था। एक बार तो अचानक पुलिस टीम गांव में पहुंच गई और बलदेव मंडल के घर छापेमारी की। वहां से हथियार बरामद हुआ। इसके बाद अंग्र्रेज सिपाहियों ने इस इलाके में अपना कैंप बना दिया। लेकिन रात में ही हम लोगों ने कैंप पर हमला बोल दिया और पुलिस को भागने पर मजबूर कर दिया। उसके बाद कभी पुलिस का कैंप नहीं बना।

रोजी-रोटी के लिए गांव में कराते थे पूजा-पाठ

अमर बाबू कहते हैं, पढ़ाई के समय तो आंदोलन में कूद गए। जब देश आजाद हो गया तो फिर रोजी-रोटी का जुगाड़ करना पड़ा। ब्राह्मïण कुल में जन्म होने के कारण गांव में पूजा पाठ कराने लगे। हालांकि संस्कृत नहीं आती थी सो हिन्दी में पूजा कराते थे। बाद में अन्य पूजा पाठ कराने वाले ब्राह्मïणों के साथ हो लिए। उनके साथ रहते-रहते बहुत कुछ सीख गए। फिर हमारी पूछ होने लगी। उसी से जीवन चलने लगा। पर, वर्तमान में बहुत कुछ बदल गया है।


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