कोसी क्षेत्र में पश्चिम बंगाल से मंगायी जाती है फूलों की टोकरी... और सजता है दूल्हों का सेहरा
सहरसा सहित कोसी इलाके में बंगाल के फूलों से सजती है गाडियां। यहां शादी के समय इसी फूलों का उपयोग होता है। सहरसा सहित आसपास के जिलों में इसका कारोबार काफी व्यापक है। इस मौसम में कई अन्य दुकानें भी लगाई जाती है।
सहरसा [राजन कुमार]। बंगाल के फूलों से कोसी क्षेत्र के दूल्हों का सेहरा सजता है। बंगाल के खेतों में उगे फूलों से ही कोसी इलाका में शादी-ब्याह के मौके पर वरमाला सहित सुहाग की सजायी जाती है। घरों को सजाने से लेकर विवाह मंडप तक बंगाल के फूलों की ही खुशबू छायी रहती है। पश्चिम बंगाल कोलकाता से ही बड़ी मात्रा में फूल कारोबारी सड़क मार्ग से फूल मंगाते है। इन्हीं फूलों से शहर में एक दर्जन फूलों की दुकानें चलती हैं। शहर के थाना चौक, गंगजला रोड, बंगाली बाजार में फूलों की दुकानें अधिक है। जो शादी ब्याह के मौके पर गाडियां सहित दूल्हों व दुल्हन का मंडप तैयार करते है। फूलों में गेंदा, रजनीगंधा, गुलाब, घोड़ालत्ती बंगाल से ही मंगवाई जाती है।
फूल कारोबारी कल्टू राय एवं पंकज बताते हैं कि शादी-ब्याह में तो अब फूलों के सजाए गाडी पर ही दूल्हा के जाने का चलन हो गया है। शादी के दिन सुबह से गाड़ियां लग जाती है और दिन भर सजने व सजाने का काम चलता रहता है। रजनीगंधा और गुलाब से वरमाला बनाया जाता है। एक-एक वरमाला की कीमत 800 रुपये से अधिक की होती है।
1500 रुपये से लेकर 5000 तक सजती है गाड़ियां
लग्न के मौके पर हर शादी - ब्याह में 1500 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक गाड़ियां सजती है। जिस ढंग से पैसा लिया जाता है उसी अनुरूप गाड़ी को सजाया जाता है। अधिक पैसे देने पर गुलाब फूल व रजनीगंधा से गाड़ियां सजती है। वहीं गाड़ी पर गुलदस्ता भी सजाया जाता है। एक गाड़ी सजाने पर कम से कम दो से तीन घंटा लग जाता है। फूल विक्रेता कल्टू राय कहते है कि फुूलों को रखने के लिए बड़ा- बड़ा फ्रिज रखना पड़ता है। बाहर में फूल गलने लगता है। कोलकाता से सड़क मार्ग से फूल पहले दालकोला आता है और वहां से पूर्णिया और पूर्णिया से सहरसा मंगाना पड़ता है। रेल मार्ग कोरोना काल में मार्च से ही नवंबर तक बंद था। इधर 2 दिसंबर से सहरसा से सियालदह के बीच हाटे बजारे एक्सप्रेस का परिचालन शुरू हो गया है।
कोसी क्षेत्र में है फूलों की खेती की संभावनाएं
कोसी इलाके में मुख्यत: तीन जिले सहरसा, सुपौल एवं मधेपुरा आते है। इन इलाकों में फूलों की खेती संभव है। गेंदा, गुलाब तो कोसी क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर भी हर घर में इसके फूल लगे हुए मिलते हैं। लेकिन इसे व्यापार के रूप में किसी भी किसानों ने उगाना शुरू नहीं किया है। अगर इसकी परम्परागत रूप से खेती की जाए तो फूलों के लिए बंगाल पर नहीं निर्भर रहना पड़ेगा। इससे इस क्षेत्र के किसानों को उसका बाजार भी मिलेगा और उत्पादन के बिकने की गारंटी रहेगी।
एक दिन में होता है लाखों का कारोबार
सहरसा में एक दिन के लग्न में फूलों का लाखों का कारोबार होता है। शहर में ही दर्जन भर दुकानें है। एक दुकान कम से कम 10 से 15 गाड़ी सजाती है। फूल कारोबारी कहते है कि एक लगन में उच्च वर्गीय परिवार से लाखों का काम मिल जाता है। वहीं मध्यम वर्ग से 20 से 25 हजार का कारोबार होता है। वहीं नीचे वर्ग से भी 3 हजार से 10 हजार रुपये तक का काम मिलता है।