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बाढ़ के दर्द पर परदेश में लग रहा मरहम

बाढ़ हर साल जिले के आधा दर्जन प्रखंडों का भूगोल बदल देता है तथा सैकड़ों लोगों की तकदीर पलट देती है। ¨जदगी भर की कमाई बाढ़ पल में डूबो कर चली जाती है। बायसी अनुमंडल के आधा दर्जन गांव का आज नामोनिशान तक नहीं है तो दर्जन से अधिक गांवों का अस्तित्व खतरे में है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Apr 2018 01:31 PM (IST)Updated: Wed, 25 Apr 2018 02:07 PM (IST)
बाढ़ के दर्द पर परदेश में लग रहा मरहम
बाढ़ के दर्द पर परदेश में लग रहा मरहम

पूर्णिया [राजीव कुमार]। बाढ़ हर साल जिले के आधा दर्जन प्रखंडों का भूगोल बदल देता है तथा सैकड़ों लोगों की तकदीर पलट देती है। ¨जदगी भर की कमाई बाढ़ पल में डूबो कर चली जाती है। बायसी अनुमंडल के आधा दर्जन गांव का आज नामोनिशान तक नहीं है तो दर्जन से अधिक गांवों का अस्तित्व खतरे में है। बायसी के चकला चंद्रगांव के तीन सौ से अधिक परिवार बाढ़ से विस्थापित हो कर सड़क किनारे दिन काट रहे हैं तो उससे अधिक परदेश में रोजी की तलाश कर रहे हैं। बाढ़ के विस्थापितों का असली सहारा परदेश ही बन रहा है। यहां के सरकार और प्रशासन की उदासीनता के कारण बाढ विस्थापित दूसरे प्रांतों में जाकर अपना पेट पालते हैं।

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बायसी प्रखंड में चकला, चंद्रगांव, मड़वा, चोपड़ा आदि जैसे आधा दर्जन से अधिक गांव थे जिसका अस्तित्व आज नहीं के बराबर है। मड़वा गांव का तो नामोनिशान तक नहीं है। सौ एकड़ से अधिक जमीन परमान नदी की भेट चढ चुका है तो सैकड़ों घर, स्कूल, सार्वजनिक स्थल पानी में डूब चुके हैं। चकला व मड़वा में ऐतिहासिक मस्जिद थी जो बाढ़ की भेंट चढ़ चुकी हैं। उक्त गांवों के 2000 से अधिक बाढ़ पीड़ित आज भी दिल्ली, पंजाब, लुधियाना में रोजगार कर अपने और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। चकला के सइदुल, मो रउफ, अब्दुल गफ्फार, मो सब्बीर जैसे दर्जनों लोग हैं जो आज परदेश में संघर्ष कर रहे हैं। जबकि बाढ के बाद सहायता के नाम पर मोटी रकम बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में आती है ¨कतु वह असली पीड़ितों तक पहुंच नहीं पाती है। प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता के कारण सरकारी योजनाएं भी बाढ़ पीडितों के मददगार नहीं बन पाते। ऐसे में उनके दर्द पर परदेश में ही मरहम लग पाता है।

बायसी अनुमंडल के अमौर, बैसा, बायसी के अलावा रूपौली एवं धमदाहा प्रखंड के कई गांव बाढ से प्रभावित होते हैं। बायसी में परमान, कनकई एवं महानंदा नदी से हर साल बाढ़ आती है। बायसी के ताराबाड़ी, लौटियाबाड़ी आदि गांव के करीब सौ परिवार को हर वर्ष विस्थापन का दंश झेलना पड़ता है। बाढ में हर साल यहां के किसानों की उपजाउ जमीन नदी में विलीन हो जाती है। किसानों के बांस झाड़, फलदार पौधे नदी में हर साल विलीन होते हैं। प्रखंड के चोपड़ा पंचायत के चन्द्रगांव कनकई नदी कटान से प्रभावित होता है। इस गांव की आधी आबादी नदी कटान को लेकर विस्थापित हो चुका है। यहां की कई दशक पूर्व बनी मस्जिद कटकर नदी में समा चुकी है। नदी कटान से प्रभावित सौ से अधिक परिवार आज भी सिमलबाड़ी-चरैया आरईओ सड़क की जमीन पर घर बनाकर रह रहे है। कटान को रोकने के लिए यहां कटान निरोधक काम कुछ दूर किया गया जो नदी में विलीन हो गया है। खपड़ा पंचायत के डेंगा टोली, खपड़ा पूरब टोला, नियामतपुर हर साल परमान नदी कटान से प्रभावित होता है। हर साल यहां के दर्जन भर लोगों को विस्थान का दंश झेलना होता है। इस पंचायत के खपड़ा मध्य विद्यालय, प्राथमिक विद्यालय, मथुरापुर विद्यालय बाढ़ के कारण तीन माह पढ़ाई अवरूद्ध रहा करता है। मीनापुर पंचायत के चहट गांव में इन दिनों नदी कटान तेज है। गांव के लोग खुद अपने ही हाथ से अपना आसियाना उजाड़ने में लगे हुए है। यहां की आधी से अधिक आबादी कटान के कारण विस्थापित हो चुकी हैं। बनगामा पंचायत के मड़वा गांव में हर साल नदी कटान के कारण लोग प्रभावित रहा करते है।

एक तरफ नदियो की विपुल जलराशी क्षेत्र को आबाद करती है वहीं दूसरी ओर बाढ़ के रुप हर साल जान और माल के भारी नुकसान का भी वाहक बनती है। प्रत्येक साल बाढ़ आते ही इस इलाके के दर्जनों स्कूल बंद हो जाते हैं। रोजगार धंधा चौपट हो जाता है। खेती बर्बाद हो जाती है फलस्वरूप लोगों के समक्ष आवास और रोटी बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। ऐसे में हर साल सैकड़ों लोग रोजगार के लिए दूसरे प्रांतों में पलायन को विवश हैं।


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