आपराधिक मामलों से पांच गुणा अधिक सहरसा में सड़क हादसे में लोगों की जाती है जान, जाने क्या है इसका कारण
सहरसा जिले में आपराधिक मामले से अधिक सड़क दुर्घटना में लोगों की जान जाती है। बीते तीन वर्ष की सड़क दुर्घटनाओं पर नजर डाले तो इस दौरान 443 लोगों की इहलीला समाप्त हो चुकी है। इसके अतिरिक्त 127 लोग दुर्घटना में दिव्यांग बन जीवन से संघर्ष कर रहे हैं।
सहरसा, जेएनएन। कोहरे की धुंध छानी शुरू हो गई है। रास्ता साफ नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में वाहन सवारों के लिए जरा सी लापरवाही उनके लिए काल बन सकती है। हर वर्ष कोहरा कई लोगों की जान ले लेता है। सड़क दुर्घटना की बात करें तो आपराधिक मामलों से करीब पांच गुणा अधिक मौतें सड़क हादसे में हर साल हो रही है। पिछले तीन वर्षों में 443 लोगों की जान सड़क हादसे में हो गई। लेकिन, वाहनों के रफ्तार पर ब्रेक नहीं लग पाया है। अगर आपराधिक घटना में मौत के आंकड़े की बात करें तो तीन वर्ष में यह संख्या 83 के करीब है।
कोहरे में बढ़ जाता है हादसा
सर्दी के मौसम में कोहरे के कारण सड़क हादसों की संख्या 40 फीसद बढ़ जाती है। सबसे अधिक खतरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर होता है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों के संपर्क मार्गों पर भी खतरे की आशंका कम नहीं रहती है। रास्ता साफ नजर नहीं आने के बावजूद लोग वाहन तेज रफ्तार में चलाते हैं। कुछ लोग तो पीली लाइट एवं इंडीकेटर का भी उपयोग नहीं करते है। ऐसे चालकों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखी जा सकती है। इसलिए जब घना कोहरा पडऩे लगे तो सावधानी बेहद आवश्यक है। सुरक्षित ड्राइविग से सड़क हादसों में काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है। हालांकि इसे लेकर परिवहन विभाग ने जागरुकता अभियान चलाकर लोगों जागरूक करने का प्रयास किया है। लेकिन हादसे में कमी नहीं आ रही है।
दुख से उबर नहीं पाया परिवार
सहरसा-सुपौल मार्ग पर गत दिन सुपौल के युवक नीतेश भारद्वाज की मौत सड़क किनारे लगे रोलर से टकराने के कारण हो गई। मृतक टावर निर्माण कंपनी में नौकरी करता था। करीब आठ साल पहले उसकी शादी हुई थी और उसके दो बच्चे थे। मौत के बाद पत्नी पर मानों तो दुख का पहाड़ टूट गया। उसके दो बच्चे और अपनी ङ्क्षजदगी को काटना मुश्किल हो गया। पत्नी अबतक दुख से उबर नहीं पाई है।
चार लाख मिलता है मुआवजा
सड़क दुर्घटना में मौत पर चार लाख तक के मुआवजे का प्रावधान है। लेकिन इसमें एक शर्त है कि अगर दुर्घटना में एक की मौत होती है और एक जख्मी होता है तभी यह राशि दी जाएगी। जिस कारण कई लोगों को मुआवजा भी नहीं मिल पाता है। सरकारी स्तर पर इलाज की बात करें तो गंभीर रूप से जख्मी को रेफर करने की परिपाटी अस्तपालों में आज भी कायम है। अस्पताल में न तो आइसीयू की व्यवस्था है और न ही इलाज का उचित प्रबंध है। जिस कारण दुर्घटना में गरीबों के जख्मी होने पर इलाज नहीं ही हो पाता है।
एक नजर में सड़क दुर्घटना
वर्ष- सड़क दुर्घटना में मौत
वर्ष 2018- 149
2019- 164
2020- 130