Move to Jagran APP

बाढ़ लाती है मछली की सौगात, प्रतीक्षा करते हैं मछुआरे

यहां के मछुआरे बाढ़ आने की प्रतीक्षा करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Dec 2018 11:24 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 11:24 PM (IST)
बाढ़ लाती है मछली की सौगात, प्रतीक्षा करते हैं मछुआरे

खगड़िया(जेएनएन)। नदियों व नालों की अधिकता वाले खगड़िया जिले में बाढ़ अभिशाप ही नहीं वरदान भी सिद्ध हो रही है। यही सबब है कि यहां के मछुआरे बाढ़ आने की प्रतीक्षा करते हैं।

loksabha election banner

बाढ़ अपने साथ विभिन्न किस्मों की मछलिया भी लाती है। अत: उसके आते ही यहां की नदियां व नाले मछलियों से भर जाती हैं। मछुआरों को आय का मुख्य आधार मिलने लगते हैं। जिले में मुख्य रूप से कोसी और गंगा की बाढ़ में इनसे जुड़ी नदियों व नालों में मछलियां आती हैं। जिस वर्ष यहां बाढ़ नहीं आती है उस वर्ष यहां मछलियों की तादाद कम होती है। इससे रोजगार के अभाव में अधिकांश मछुआरों को रोजी-रोटी के लिए परदेस की राह पकड़नी पड़ती है। कल्चर फी¨सग से अधिक कैप्चर फि¨सग

खगड़िया में सात नदियां तथा 54 धाराएं व उपधाराएं हैं। इनके अलावा यहां 179 जलकर तथा तालाब हैं। इन सभी की बंदोबस्ती की जाती है। यहां मछली उत्पादन के मुख्य रूप से दो स्रोत हैं। पहला कल्चर फी¨सग और दूसरा कैप्चर फी¨सग(मछलियां जो बाढ़-बरसात में प्राकृतिक रूप से आती हैं)। जिले में मछली का कुल उत्पादन 25.39 हजार मीट्रिक टन है। इनमें एक बड़ा हिस्सा कैप्चर फी¨सग का है। तीन लाख मछुआरे करते हैं बाढ़ का इंतजार

जिले में मछुआरों की लगभग तीन लाख आबादी है। विभिन्न मत्स्यजीवी सहयोग समितियों के सदस्यों की संख्या 25000 है। परबत्ता प्रखंड मत्स्यजीवी सहयोग समिति के मंत्री प्रभुदयाल सहनी कहते हैं- बाढ़ में बड़ी संख्या में प्राकृतिक मछलियां आती हैं। यहां के अधिकांश जलकर बाढ़ पर ही आधारित हैं। दो किलोमीटर लंबा कज्जलवन जलकर में बहुतयात में मछली उत्पादन होता है। यह गंगा से जुड़ा बाढ़ आधारित जलकर है। इसी तरह माधवपुर डिगरिया नाला जलकर, भरसों-टप्पा-विशोनी जलकर, सौढ़-भरतखंड धार जलकर आदि भी बाढ़ पर आश्रित हैं। सरकार यदि यहां मछली पालन को बढ़ावा दे तो यहां इसका अच्छा उत्पादन हो सकता है। मछुआरों की माली हालत में सुधार आ सकता है। उन्हें बाढ़ के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा।

कोट

'खगड़िया में बाढ़ आने पर बड़ी मात्रा में प्राकृतिक मछलियां आती हैं। इस रूप में यहां के मछुआरों के लिए बाढ़ वरदान है।'

लाल बहादुर साथी, जिला मत्स्य पदाधिकारी, खगड़िया।

कोट

'गंगा और कोसी की बाढ़ से मछुआरों को फायदा होता है। अगर बाढ़ का पानी टिकता है, तो मछलियां रूक जाती हैं। मछुआरों की रोजी-रोटी आराम से चलती है।'

प्रभुदयाल सहनी, मंत्री, परबत्ता प्रखंड मत्स्यजीवी सहयोग समिति।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.