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फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी का संस्कृत प्रेम, बोले-जब लोग मुझे पंडित समझने लगे, जानिए Banka News

जाने-माने फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी इन दिनों बांका के बौंसी क्षेत्र में हैं। उन्‍होंने मंदार और संस्‍कृत के प्रति अपना कर्तव्‍य है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 02:21 PM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 02:21 PM (IST)
फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी का संस्कृत प्रेम, बोले-जब लोग मुझे पंडित समझने लगे, जानिए Banka News
फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी का संस्कृत प्रेम, बोले-जब लोग मुझे पंडित समझने लगे, जानिए Banka News

बांका [आशुतोष कुंदन]। फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी ने कहा कि मेरी मिट्टी ही मेरी पहचान है। सद्भाव और मानवता के संदेश का प्रचार करने के लिए प्राचीन ग्रंथ सामवेद का अनुवाद उर्दू और अंग्रेजी में कर रहे हैं। वे इन दिनों बौंसी आए हुए हैं।

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'काल चक्र' और 'फूल और कांटे' जैसी हिट फिल्मों के निर्देशक इकबाल दुर्रानी मंदार में बताया कि वे कभी अवार्ड की दौड़ में नहीं रहे। जब उनके प्रशंसकों ने इनके लिए प्रोत्साहित किया तो उन्होंने पद्मश्री के लिए आवेदन किया।

उन्‍होंने बताया कि एक बड़े बजट की सलाउद्दीन आयूवी नामक इंटरनेशनल फिल्म बनाई जा रही है है। उन्होंने बताया कि साठ के दशक में उनके दादा शेख महमूद मोकामा के सीसीएमई हाई स्कूल में संस्कृत पढ़ा करते थे। उस वक्त वहां जाने पर हर कोई उन्हें पंडित का पोता समझता था। उन्‍होंने कहा कि मेरे दादा और मुझे लोग पंडित कहा करते थे। आज उन्हीं की प्रेरणा से सामवेद का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद कर पा रहा हूं।

उन्होंने कहा कि आज धर्म के नाम पर लोग बेवजह लड़ते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हम दूसरे धर्म के बारे में नहीं जानते हैं। लोगों को दूसरे धर्म के बारे में भी जानकारी रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मंदार की प्रेरणा से ही उनका झुकाव धर्म और अध्यात्म की ओर हुआ है। इस अवसर पर उनके छोटे भाई वह फिल्म लेखक तनवीर दुर्रानी सहित अन्य लोग मौजूद थे।

फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी का पैतृक गांव बांका जिले के बौंसी बलुआतरी है। वे अक्सर यहां आते हैं। गांव में उनके परिवार के कई सदस्य रहते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे माटी से उन्हें बेहद लगाव है, इस कारण वे अक्सर यहां आते हैं। गांव का प्रेम ही उन्हें यहां खींचता है। उन्होंने कहा कि यहां आकर उन्हें सुकून मिलता है। शांति महसूस होती है। महानगर और मायनगरी की संस्कृति से तनाव होता है। और फ‍िर शांति प्राप्त करने गांव आते हैं। जहां परिवार के सदस्य, मित्र, संगे-संबंधी, पडोसी से मिलकर नई ऊर्जा प्राप्त करते हैं।  इकबाल दुर्रानी यहां जब भी आते हैं मंदार सहित अन्य पर्यटन स्थल जरूर जाते हैं। मंदार को उन्होंने अपना प्रेरणाश्रोत बनाया। उन्होंने कहा कि मंदार आकर वे फ‍िल्म में बनाएंगे। उन्होंने कहा कि विश्व में हमारे क्षेत्र की एक अलग ही सांस्कृतिक पहचान है, मंदार के कारण हमलोगों को बहुत प्रसिद्धि मिली है। भगवान मधुसूदन की नगरी बौंसी हमें आनंदित करती है। साथ ही यहां ऐसे दर्जनों ऐसे दर्शनीय जगह और व्यक्तित्व हैं, जो हमें प्रेरणा देती है। 

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