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चुनाव से पहले नेताजी से पूछे जा रहे रोजगार के सवाल, सबको चाहिए इसका जवाब

सत्तारूढ़ दल के नेता स्टार्टअप योजना स्टैंडप योजना गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत रोजगार दिलाने का भरोसा दे रहे हैं। उनका दावा है कि गरीब कल्याण रोजगार अभियान से पूर्व बिहार कोसी और सीमांचल जिलों के 41.63 लाख प्रवासी जुड़ेंगे।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 06:14 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 06:14 PM (IST)
चुनाव से पहले नेताजी से पूछे जा रहे रोजगार के सवाल, सबको चाहिए इसका जवाब
भागलपुर का पॉलीटेक्निक कॉजेज, यहीं पर बनाया गया था प्रवास‍ियों के लिए सेंटर।

भागलपुर [संजय सिंह]। विकास के साथ-साथ विरोधी पाॢटयां बेरोजगारी को भी विधानसभा चुनाव का चुनावी मुद्दा बनाने में जुटी हैं। हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोसी, पूर्वी बिहार और सीमांचल इलाके में रेल व दूसरी अन्य परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया है। इससे विकास की उम्मीदें जगी हैं।

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सत्तारूढ़ दल के नेता स्टार्टअप योजना, स्टैंडप योजना, गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत रोजगार दिलाने का भरोसा दे रहे हैं। उनका दावा है कि गरीब कल्याण रोजगार अभियान से पूर्व बिहार, कोसी, और सीमांचल जिलों के 41.63 लाख प्रवासी जुड़ेंगे। रेलवे की ओर से पहले फेज में 125 दिनों का काम दिया जाएगा। 31 अक्टूबर तक काम दिया जाएगा। इसके बाद दूसरे फेज में भी इन्हेंं रोजगार दिए जाएंगे। इस फैसले से प्रवासियों को बड़ी राहत मिलेगी। उन्हेंं तत्काल अभी रोजगार के लिए वापस लौटना नहीं पड़ेगा। इन प्रवासियों को पारिश्रमिक के भुगतान के लिए रेलवे ने मोटे फंड भी स्वीकृत किए हैं।

जैसा हुनर वैसा काम: गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत प्रवासियों को रेलवे क्रॉसिंग, रेलवे स्टेशनों के लिए संपर्क मार्ग का निर्माण, मरम्मत, रेल पटरी मरम्मत, रेलवे ट्रैक के किनारे झाडिय़ों की छंटनी, रेलवे की जमीन पर पेड़-पौधे लगाने जैसे कार्यो में लगाया जाएगा। रेलवे का मानना है कि वापस लौटे अधिसंख्य प्रवासियों को रेलवे के कार्यो की विशेष जानकारी नहीं है, इस वजह से सुरक्षा और संरक्षा से जुड़े काम न देकर उन्हेंं उनकी रुचि के अनुरूप काम दिए जाएंगे।

कोसी और सीमांचल का इलाका भी हर साल प्राकृतिक आपदा की वजह से तंग-तबाह होता है। यहां रोजगार के अवसर भी कम हैं। परिणामस्वरूप यहां के लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। यहां रोजगार की दर 35-40 फीसद है। आॢथक सशक्तीकरण के इस दौर में विकास के साथ-साथ अब युवा वोटर अपने भविष्य और रोजगार की चिंता करने लगे हैं।

चुनाव में बेरोजगारी को मुद्दा बना रहा विपक्ष, सत्ता पक्ष दिला रहा रोजगार दिलाने का भरोसा, लॉकडाउन में लौटे प्रवासी भी जीत में निभाएंगे अहम किरदार

हर चुनाव में रोजगार का मुद्दा

लोकसभा चुनाव के दौरान भी यह मुद्दा पुरजोर तरीके से उठा था। सरकार की ओर से कटिहार के जूट उद्योग में जान लाने की कोशिश अब तक सफल नहीं हो सकी है। खगडिय़ा, बांका में फूड प्रोसिंग प्लांट का मामला भी अधर में है। कटिहार, जमुई, मधेपुरा, सुपौल, मुंगेर जैसे जिलों में चुनावी तैयारी में घूम रहे सत्ता पक्ष और विपक्ष नेताओं से अब रोजगार को लेकर सवाल-जवाब किए जाने लगे हैं।

बिहार के लोगों को रोजगार की जरूरत ज्यादा है। रोजगार के अवसर भी घटे हैं। सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि सभी लोगों को सरकारी स्तर रोजगार मुहैया कराया जाए। ऐसी स्थिति में स्व-रोजगार की संभावना पैदा करनी होगी। -प्रो. आरडी शर्मा, अर्थ शास्त्री।

पूर्वी बिहार, कोसी और सीमांचल में लॉकडाउन के दौरान लौटे प्रवासी

भागलपुर - 63962

कटिहार- 141944

अररिया- 100973

पूॢणया- 96948

बांका- 76693

खगडिय़ा- 70449

सुपौल- 64356

सहरसा- 63898

किशनगंज- 53793

मधेपुरा- 51449

जमुई- 33645

मुंगेर- 39645

लखीसराय- 23838


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