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'राष्ट्र की समृद्घि के साथ जनहित से जुड़े हों चुनावी मुद्दे'

पहले प्रधानमंत्री का चुनाव पार्टी के चुने हुए नेता करते थे लेकिन अब चुनाव के पहले ही उनके नाम की घोषणा कर दी जाती है। अब मुद्दों पर नहीं बल्कि व्यक्तित्व पर चुनाव लड़ा जा रहा है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 10:58 AM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 10:50 AM (IST)
'राष्ट्र की समृद्घि के साथ जनहित से जुड़े हों चुनावी मुद्दे'
'राष्ट्र की समृद्घि के साथ जनहित से जुड़े हों चुनावी मुद्दे'

भागलपुर [जेएनएन]। लोकसभा चुनाव में राष्ट्र की समृद्धि के साथ जनहित से जुड़े मुद्दे होने चाहिए। लेकिन अवसरवादिता और दलों की आंतरिक गुटबंदी के कारण अब मुद्दे गौण होते जा रहे हैं। उक्त बातें दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित बौद्धिक बैठक में 'क्या होने चाहिए आम चुनाव के मुद्दे' विषय पर टीएनबी कॉलेज राजनीति विभाग के प्राध्यापक डॉ. मनोज कुमार ने कहीं।

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उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का आधार स्तंभ 'चुनाव' है और इसके प्रमुख फैक्टर राजनीतिक दल होते हैं। ये राजनीतिक दल संवैधानिक तरीके से सत्ता प्राप्त करें इस पर सरकार की मिशनरी निर्वाचन आयोग, न्यायपालिका, सामान्य प्रशासन और पुलिस की अहम भूमिका में होती है।

पहले प्रधानमंत्री का चुनाव पार्टी के चुने हुए नेता करते थे लेकिन अब चुनाव के पहले ही उनके नाम की घोषणा कर दी जाती है। अब मुद्दों पर नहीं बल्कि व्यक्तित्व पर चुनाव लड़ा जा रहा है। जिसकी वजह से दलों की आंतरिक गुटबंदी सरकार की सेहत को प्रभावित करती है। चुनाव के पूर्व भी गठबंधन वाले दल राष्ट्र और जनता के हित में कॉमन एजेंडा तैयार नहीं कर पाते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने जो गठबंधन वाली सरकार कॉमन एजेंडा के साथ चलाई यह एक अपवाद और उनके करिश्माई व्यक्तित्व का कमाल था। वर्तमान समय में विचारधाराओं का अभाव, व्यक्तित्व पंत, जन उदासीनता और दल-बदल की नीति चुनाव की बड़ी चुनौती बनती जा रही है। जबकि आम चुनाव के मुद्दे विचारधारा, विकास और प्रतिबद्धता होनी चाहिए।

प्रो. कुमार ने कहा कि विचारधारा से राजनीतिक दलों की पहचान बनती है। विकास से तात्पर्य शिक्षा, रोजगार और सशक्तीकरण से है। इन सब की प्रतिबद्धता ही राष्ट्र को समृद्धि प्रदान करेगी और जनहित के मसले का समाधान होगा।

इतना कुछ के बाद भी अब जनता जागरूक हुई है। सरकार का ध्यान विकास की ओर गया है। राजनीतिक शुद्धिकरण के लिए कठोर कानून भी बनाए जा रहे हैं। राजनीतिक दल भी अब इस बात की चिंतन में लगे हैं कि जाति-धर्म और धोखाधड़ी से चुनाव लड़कर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती है। मतदाता भी अब गुमराह होने से परहेज करने लगे हैं। जैसे-जैसे मतदाताओं की नजरें बदलेंगी राजनीतिक दलों की मंशा के साथ-साथ देश के नजारे भी बदल जाएंगे। बैठक में उन्होंने आजादी के पूर्व और बाद में हुए चुनाव की भी विस्तार से चर्चा की।

इससे पूर्व जागरण के संपादकीय प्रभारी संयम कुमार ने बौद्धिक बैठक में आए डॉ. कुमार का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। उन्होंने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि भारतीय राजनीति अब आरोप-प्रत्यारोप पर आधारित हो गई है। चुनाव में राजनीतिक दल मुद्दों से भटक गए हैं। उनका मूल मकसद जनता को गुमराह कर सत्ता हासिल करना रह गया है। लेकिन आने वाले दिनों में विकास को बिना मुद्दा बनाए चुनाव जितना मुश्किल होगा।


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