ईद-उल-अजहा : त्याग और बलिदान का है यह त्योहार, दो रेकत नमाज पढ़कर करते हैं कुर्बानी
ईद-उल-अजहा के मुबारक मौके पर ही इस्लाम धर्म के मानने वाले हज जैसे फर्ज की अदायगी के लिए मक्का में जमा होते है। मुसलमान दो रेकत नमाज पढ़कर कुर्बानी करते हैं।
भागलपुर, जेएनएन। इस्लाम धर्म में दो ईदें हैं। एक ईद-उल-फितर और दूसरा ईद-उल-अजहा (बकरीद)। खानकाह पीर दमडिय़ा के नायब सज्जादानशीं सैयद शाह फखरे आलम हसन ने कहा कि ईद-उल-अजहा के मुबारक मौके पर ही इस्लाम धर्म के मानने वाले हज जैसे फर्ज की अदायगी के लिए मक्का में जमा होते है। ईद-उल-अजहा में पूरी दुनिया के मुसलमान दो रेकत नमाज पढ़कर कुर्बानी करते हैं।
यह कुर्बानी हजरत इब्राहीम द्वारा हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम की दी गई कुर्बानी की याद में ईमान वाले अल्लाह की राह में पेश करते है। कुर्बानी का मकसद त्याग और बलिदान का जज्बा पैदा करना है। अल्लाह के हुक्म के आगे गलत रास्तों को छोड़ कर नेकियों के रास्ते पर चलना है। साथ ही हर बुराई, नफरत और जुल्म के रास्ते को छोड़ कर अदल व इंसाफ के लिए त्याग व बलिदान के रास्ते पर चलना है। इस खुशी के मौके पर रिश्तेदारों, दोस्तों और गरीब व असहाय लोगों को जरूर शामिल करना चाहिए।
सैयद शाह फखरे आलम हसन ने कहा कि यह त्योहार आपसी सौंदर्य और भाईचारा का पैगाम भी अपने साथ लाया है। किसी भी देश और वहां की जनता की तरक्की के लिए जरूरी है कि पूरे समाज के लोगों के अंदर त्याग और बलिदान का पूरा जज्बा मौजूद रहे। खुशी के इस त्योहार में ख्याल रखना चाहिए कि आपके किसी भी काम से किसी दूसरे व्यक्ति को कोई तकलीफ ना पहुंचे। साथ ही कोरोना वायरस की महामारी को देखते हुए साफ सफाई पर विशेष ध्यान दें। लॉकडाउन में केंद्र व बिहार सरकार द्वारा दिए नियमों का पालन करना जरूरी है।