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Self-employment: यहां परदेशी बाबू सड़कों पर दौड़ाने लगे ई-रिक्शा, दो महीने में बढ़ गई बिक्री

यातयात साधनों की बढ़ी मांग को देखते हुए प्रवासियों ने किसी तरह ई-रिक्शा खरीद लिया है। इसमें में ना लाइसेंस की जरूरत है ना पुलिस का कोई लफड़ा। ऐसे में कुछ भी आमदनी हो जाने पर परिवार चल रहा है। ई-रिक्शा चलाने सीखने में भी कोई टेंशन नहीं है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 08:06 PM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 08:06 PM (IST)
Self-employment:  यहां परदेशी बाबू सड़कों पर दौड़ाने लगे ई-रिक्शा, दो महीने में बढ़ गई बिक्री
बांका में रोड के किनारे खडी ई रिक्शा।

बांका [सोंटी सोनम]। लॉकडाउन में घर लौटे कामगार काम के जुगाड़ में है। ऐसे में परदेशी बाबू के लिए महानगरों का ई-रिक्शा बड़ा सहारा बना हुआ है। शहर के आसपास गांवों में लौटे से अधिक कामगार संकट की इस घड़ीमें ई रिक्शा खरीद चुके हैं। उनका ई रिक्शा गांव की सड़कों पर फरार्टा भरने लगा है। लौटे कामगारों ने बताया कि कोई काम नहीं देख, यातयात साधनों की बढ़ी मांग को देखते हुए किसी तरह ई-रिक्शा खरीद लिया है। इसमें में ना लाइसेंस की जरूरत है, ना पुलिस का कोई लफड़ा। ऐसे में कुछ भी आमदनी हो जाने पर परिवार चल रहा है। ई-रिक्शा चलाने सीखने में भी कोई टेंशन नहीं है। दो चार दिन में ही पैसेंजर को लेकर आमदनी शुरु हो जाती है।

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परिवार चलाने में आई दिक्कत तो खरीद लिया ई-रिक्शा

रैनियां गांव बासुदेव राउत चार-पांच सालों से परदेस में रहकर परिवार चलाते हैं। लॉकडाउन में वे जब घर आए तो उन्हें काम की ङ्क्षचता सताने लगे। कोरोना महामारी के दौरान लौटने में चार-पांच दिन का दर्द भरा सफर देख अब परदेस जाने की हिम्मत नहीं जुटी। फिर कुछ जमा पूंजी और उधार-पैंचा कर ई-रिक्शा खरीद लिया। जिससे अब हर दिन दो से पांच सौ रूपया आमदनी कर ले रहा है। शास्त्री चौक का सागर कुमार, जगतपुर का ङ्क्षपटू कुमार आदि ने बताया कि बांका में पिछले साल तक ई रिक्शा का चलन नहीं था। महानगर से लौटे लोगों ने ई रिक्शा का चलन देखा था। अब बैंक में किश्त पर भी राशि दे रहा है। तीन हजार रूपये महीने की किश्त पर उसने रिक्शा निकाला है। अभी परिवार चलाने लायक कमा ले रहे हैं। चांदन पुल शुरु होने पर आमदनी और बढ़ जाएगी।

कोई पूंजी तो कोई ऋण पर खरीद रहा रिक्शा

शंकरपुर, लश्करी, दुधारी आदि के ई रिक्शा चालकों ने बताया कि परिवार चलाने के लिए कोई तो रोजगार चाहिए। बांका में पहले इसका चलन नहीं था। परदेश से लौटे कई लोगों ने ई रिक्शा खरीद लिया है। चंदन कुमार, मनोज रविदास, शंकर यादव आदि ने बताया कि घर बैठने और मजदूरी से बेहतर है कि कुछ कमा कर खाएं। अभी कम पैसेंजर भी मिल रहा है तो मजदूरी से अधिक ही कमा ले रहे हैं।


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