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सिंदूर खेलकर महिलाओं ने दी मा को विदाई

भागलपुर। इस बार भले ही कोरोना के कारण दुर्गा पूजा में भीड़ नहीं दिखी। दशहरा में न मेले का आयोज

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 07:55 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 07:55 AM (IST)
सिंदूर खेलकर महिलाओं ने दी मा को विदाई

भागलपुर। इस बार भले ही कोरोना के कारण दुर्गा पूजा में भीड़ नहीं दिखी। दशहरा में न मेले का आयोजन हुआ और न ही पंडाल का निर्माण हुआ। इसके बावजूद सोमवार को बंगाली समुदाय की महिलाओं ने परंपरा के अनुसार मा दुर्गे की विदाई के पहले सिंदूर होली खेली। नवरात्र के बाद बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया गया। नौ दिन तक दुर्गा पूजा के बाद सोमवार को बंगाली समाज द्वारा स्थापित प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया। विसर्जन पूजा के साथ ही बंगाली महिलाओं ने सिंदूर खेलकर विजयदशमी मनाई। शहर में कालीबाड़ी और दुर्गाबाड़ी सहित कई पूजा स्थल हैं जहा बंगला रीति-रिवाज से मा दुर्गा की पूजा होती है। यहा सिंदूर खेल के इस रस्म को देखने बड़ी संख्या में लोग जुटे थे। शहर में दुर्गा पूजा के दौरान कई जगहों पर बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं, लेकिन इस बार पंडाल का निर्माण नहीं हुआ न ही मेले का आयोजन। दुर्गाबाड़ी, कालीबाड़ी, महाशय ड्योढ़ी दुर्गा मंदिर का बेहद खास है। आज भी लोग यहा वही परंपरा और संस्कृति की झलक देखने आते हैं। दुर्गाबाड़ी से जुड़ी महिलाओं ने तो बकायदा एक रंग का बंगाली परिधान पहन रखा था। ऐसी मान्यता है कि मा दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं। जितने दिन तक मा मायके में रुकती हैं उसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि मा दुर्गा मायके से विदा होकर जब ससुराल जाती हैं, तो सिंदूर से उनकी माग भरी जाती है। साथ ही दुर्गा मा को पान और मिठाई भी खिलाई जाते हैं। हिंदू धर्म में सिंदूर का बहुत बड़ा महत्व होता है। सिंदूर को महिलाओं के सुहाग की निशानी कहते हैं। सिंदूर को मा दुर्गा के शादी शुदा होने का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवरात्रि पर सभी शादी शुदा महिलाए एक दूसरे पर सिंदूर लगाती है। नगर में कड़ी सुरक्षा के बीच सभी प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा। प्रतिमा विसर्जन से पहले पंडालों में नम आखों से देवी दुर्गा को विदाई दी गई। कहीं सिंदूर की होली खेली गई तो कहीं देवी बहनों का खोइंछा मिलन कराया जाएगा। जय माता दी के जयकारे से फिजा भक्तिमय हो गया। फूलों की वर्षा के बीच आस्था की सरिता में गोते लगा रहे भक्त मा के दर्शन कर उनके चरण स्पर्श को बेताब दिखे। पौराणिक परंपरा के अनुसार वैदिक मंत्रोच्चार के बीच खोइंछा की अदला-बदली की जाएगी। वहीं, कहलगांव, पीरपैंती, नवगछिया, बिहपुर, शाहकुंड और सन्हौला में भी मां दुर्गा को नम आंखों से विदाई दी गई।

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