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Diwali 2021- मिठाई ही नहीं, मसाले-सब्जियां और तेल में भी की जाती है मिलावट, रहिए सावधान

Diwali 2021- मिलावट के खेल में बिगड़ रहा लोगों का स्वास्थ्य त्योहारी सीजन में बाजार भाव छूने लगता है आसमान। मिठाई ही नहीं सब्जियों मसाले और तेल में भी होती है जमकर कालाबाजारी। मिलावट का गर्म रहता है बाजार...

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 04:22 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 04:22 PM (IST)
तेल-घी और सब्जियों में भी होती है मिलावट, जानें कैसे...

जागरण संवाददाता, सुपौल : Diwali 2021- त्योहारी सीजन हो और बाजार भाव आसमान नहीं छूने लगे ऐसा नहीं हो सकता है। इस सीजन में मिलावट का खेल भी परवान पर होता है। रातों-रात धनवान बनने की ख्वाहिश में व्यापारी यह तक भूल जाते हैं कि इसका नुकसान उपभोक्ताओं को उठाना पड़ता है। दिवाली आते ही मिलावटी मेवे की मिठाई का बाजार गर्म हो जाता है। आम दिनों की अपेक्षा दीपावली के दिन मिठाई की बिक्री कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। दुकानदार बाहर से सिंथेटिक मेवे और पनीर लाकर उससे मिठाई बनाते हैं। इस कारण दीपावली में मिलावट की मिठास कहीं त्योहार के रंग को फीका न कर दे। लोगों में जागरूकता के अभाव कारण ऐसे मामले उपभोक्ता फोरम नहीं पहुंच पाते इसलिए मिलावट का खेल चलता रहता है जो लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है।

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दिवाली से छठ तक होती है मिठाई की जबरदस्त बिक्री

दीपावली में मिठाई की खपत अधिक होती है। लोग भगवान को नेवैद्य अर्पित करने के लिए तो मिठाई खरीदते ही हैं साथ ही घर आए लोगों का स्वागत भी मिठाई से करते हैं। व्यापारिक संस्थानों में स्टाफ के बीच बांटने के लिए भी थोक में मिठाई की खरीदारी की जाती है। उपहार के तौर पर भी मिठाई बांटी जाती है। नतीजा होता है कि मिठाई की जमकर बिक्री होती है। व्यापारियों की मानें तो जिले में दीपावली से छठ के बीच में मिठाई के एक करोड़ के आसपास का कारोबार होता है।

खोवा की मिठाईयों में होती है अधिक मिलावट

अधिकांश मिठाइयों को बनाने में खोवा का इस्तेमाल होता है। खासकर त्योहार के दिनों में जब बिक्री परवान पर होती है तो मिलावट की आशंका ज्यादा बढ़ जाती है। मेवे में सिंथेटिक दूध, मैदा, आलू और पाउडर मिलाया जाता है। कभी-कभार अरारोट और स्टार्च की भी मिलावट की जाती है। इसकी अधिकता सेहत को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। बावजूद इसके लोग ऐसी मिठाईयां खरीदने के लिए मजबूर होते हैं

बेसन की मिठाईयों को धोकर की जाती है बिक्री

बेसन की मिठाईयों की भी दिवाली में अधिक डिमांड रहती है। बेसन के लड्डू, मोती पाक आदि की अधिक खरीदारी होती है। बताया जाता है कि जब अधिक दिनों तक इसकी बिक्री नहीं होती है तो इसमें फफूंद उग आते हैं। इसके बाद इसे पानी से धोकर फिर से बिक्री के लिए सजा दी जाती है। ऐसी मिठाईयां लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

सिंथेटिक दूध का भी होता है इस्तेमाल

दूध में पानी की मिलावट तो आम है। इससे दूध की गुणवत्ता भले ही कम हो जाए पर इससे सेहत पर असर नहीं पड़ता है। मगर फायदे के लिए विक्रेता अब जान से भी खिलवाड़ करने लगे हैं। सिंथेटिक दूध की भी बिक्री की बात सामने आती रहती है। सिंथेटिक दूध तैयार करने में डिटर्जेंट पाउडर और रिफाइन आयल का भी इस्तेमाल होने लगा है। इस दूध के इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। जो दूध लोग सेहत को दुरुस्त करने के लिए पीते हैं वही स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है।

संदेह के घेरे में देसी घी

लोग बताते हैं कि बाजार में मिठाई की दुकानों पर शुद्ध देसी से बनी मिठाईयों के बोर्ड लगे होते हैं और इसकी मूल्य तालिका भी टंगी होती है। एक तो देसी घी में रिफाइन की मिलावट आम है। इसके अलावा देसी घी में आलू और अरारोट भी मिलाया जाने लगा है। कहा जाता है कि देसी घी से बनी मिठाईयों के नाम पर रिफाइन से मिठाई तैयार कर ऊपर से देसी घी का छींटा मार दिया जाता है जिससे मिठाई से देसी घी की खुशबू उठती रहती है। ऐसा कर व्यापारी उपभोक्ताओं से देसी घी वाली मिठाई का दाम वसूलते हैं और उनकी जेब ढीली होती है।

चिकित्सकों की मानें तो...

शहर के जाने-माने फिजीशियन डा. शांतिभूषण कहते हैं कि मिलावट में किन चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है परेशानियां उस पर निर्भर है। लेकिन मिलावटी सामान खाने से गैस्ट्रो एंथ्राइटिस, पेप्टिक अल्सर, लीवर की बीमारी होना सामान्य बात है जो अमूमन हो ही जाना है। मिलावट में अगर सिंथेटिक सामग्रियों का प्रयोग किया गया है तो कैंसर तक का खतरा होता है।

रंगकर बेची जाती है सब्जियां

अधिकांश हरी सब्जियां बाजारों में रंगी जाती है और तब जाकर लोगों के किचेन तक पहुंचती है। सब्जी बाजार की ही स्थिति देखे तो सब्जी को तरो-ताजा दिखाने के लिए रंगों का प्रयोग कर उसे ताजा दिखाया जाता है। खासकर हरी सब्जियां तो धड़ल्ले से रंग कर बेची जाती है। ऐसी सब्जियां मजबूरन लोगों को खरीद कर घर ले जानी पड़ती है। इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। तेल में मिलावट, मसाले में मिलावट तो जैसे बाजारों में आम हो चली है।

मसाले में भी चलता है यह खेल

किराने मंडी की स्थिति पर गौर करें तो तेल से लेकर अन्य खाद्य पदार्थो में मिलावट का खेल धड़ल्ले से चलता है। खासकर मसाले आइटम में तो मिलावट ही मिलावट है। पीसे हुए मसाले में तो मिलावट बेहिसाब है। इसका नतीजा होता है कि हल्दी रंग नहीं पकड़ती है तो मिर्ची अपना तीखापन नहीं दिखा पाती। धनियां और जीरा में सूखी घास की मिलावट की जाती है।

उपभोक्ता नहीं हैं जागरूक

एक ओर टीवी चैनल व समाचार पत्रों के माध्यम से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए प्रचार-प्रसार किया जाता है तो दूसरी ओर उपभोक्ता दिवस मनाकर भी लोगों को इस दिशा में जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। बावजूद उपभोक्ता जागरूक नहीं हो रहे। उपभोक्ताओं की हकमारी तो हो ही रही है साथ ही स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ हो रहा है।

नहीं होती जांच

न तो कभी आपूर्ति विभाग इस ओर झांकने की जहमत उठाता है और न ही स्वास्थ्य व फूड विभाग को इससे कोई लेना-देना रहता है। नतीजा है कि उपभोक्ताओं की जेब ही नहीं कट रही बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी हो रहा। ऐसा सुनने तक को नहीं मिलता है कि कभी किसी किराने की दुकान पर आपूर्ति विभाग ने या फिर स्वीट कार्नर पर स्वास्थ्य व फूड विभाग ने छापेमारी की हो। लोग इन्हीं मिलावटी खेल के बीच दिनचर्या गुजार रहे हैं।


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