Move to Jagran APP

Diwali 2021: ऐसे मनाएं सार्थक दीवाली, तभी होगी सुख-समृद्धि की बारिश, जानिए जमुई में क्या है तैयारी

दीपावली को लेकर लोग अभी से तैयारी में जुट गए हैं। बाजार में भी इसकी रौनक देखने को मिल रही है। लेकिन इस बार लोग पारंपरिक दीवाली मनाने की अपील कर रहे हैं। पारंपरिक तरीके से जलाएं जाने वाले मिट्टी का दीया आज दूर हो गया है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 05:00 PM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 05:00 PM (IST)
दीपावली को लेकर लोग अभी से तैयारी में जुट गए हैं।

संवाद सहयोगी जमुई। खुशियों को पर्व है दीपावली, बुराई पर अच्छाई की जीत है दीपावली। आइए इस साल प्रदूषण रूपी बुराई पर पर्यावरण हितकारी दीपावली मनाएं। थोड़ा प्रयास और संयम, आतिशबाजी से दूर रहते हुए पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प से भविष्य को स्वस्थ व स्वच्छ हवा का गिफ्ट दें। भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर नगरवासियों ने खुशी के अवसर पर दीप जलाकर अयोध्या को रोशन कर दिया था। तब से यह त्योहार दीपावली के रूप में मनाया जा रहा है, लेकिन समय के साथ इसका स्वरूप बदल गया।

loksabha election banner

पारंपरिक तरीके से जलाएं जाने वाले मिट्टी का दीया आज दूर हो गया है। इसके जगह बिजली से संचालित रंग-बिरंगे बल्ब व झालर ने ले ली है। महंगाई से बचने के जुगाड़ में केरोसीन से जलने वाले दीये का उपयोग बढ़ गया। केरोसीन का दीया प्रदूषण बढ़ाता है। आपको बचत करता लेकिन आपकी पीढ़ी को प्रदूषण से होने वाली बीमारी के खर्च की ओर धकेलता है। दीपावली की खुशी के पल में आतिशबाजी बदलते समय के साथ परंपरा का एक मुख्य हिस्सा बन गया है।

ये पटाखे सिर्फ वातावरण को प्रदूषित ही नहीं करते, बल्कि सेहत को भी नुकसान पहुंचाता है। कारोबारियों ने पटाखे के आकर्षण में हमें और आपको बांध लिया है जबकि पटाखे हम सबकी जेब हल्की करने के साथ ही सेहत और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। पटाखे की क्षणिक खुशी पीढ़ी को कष्ट की ओर धकेल रही है। दीपावली मनाने के साथ-साथ पर्यावरण का भी हर ख्याल जरूरी है। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण से मुक्ति के लिए हम सबको पारंपरिक दीपावली की ओर वापस लौटना आवश्यक है।

ग्रीन पटाखे का किया जा रहा प्रयोग

दीपावली के मौके पर आतिशबाजी के बढ़ते चलन के कारण पर्यावरण में फैल रहे प्रदूषण पर नियंत्रण को लेकर पटाखों एवं आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया था। कुछ समय बाद ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल की इजाजत दी गई। इनके जलने से कम प्रदूषण होता है। ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। आम पटाखों की तुलना में इसका आकार भी छोटा होता है। ग्रीन पटाखे कम प्रदूषण फैलाने वाले कच्चे माल से बने होते हैं। इनमें सॉल्ट या एंटीमॉनी, लिथियम, आर्सेनिक, लेड जैसे यौगिक नहीं होते हैं। इनमें कम खतरनाक केमिकल कंपाउंड इस्तेमाल किए जाते हैं। जिस कारण पर्यावरण में ग्रीन पटाखों से खतरनाक कणों का उत्सर्जन कम होता है।

कहते हैं लोग

दीपावली प्रकाश का पर्व है। इस मौके पर हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह हो। भारी मात्रा में आतिशबाजी कर हम वातावरण को प्रदूषित करते हैं। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। दीपावली के दिन केरोसिन के दीये से भी परहेज करनी चाहिए। हम घी या सरसों तेल के दीये प्रज्वलित कर पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में मदद कर सकते हैं।

प्रोफेसर आनंद कुमार ङ्क्षसह

दीपावली का पर्व हम सभी को पारंपरिक तरीके से मनाना चाहिए। दीपावली के अवसर पर बाजार में ऐसी चीजों की भरमार होती है जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है। सजावट के लिए प्लास्टिक व पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अन्य मैटेरियल से बनी चीजें बाजारों में खुलेआम बिक रही है। इनकी जगह इको फ्रेंडली मटेरियल जैसे पेपर क्रॉफ्ट, बांस आदि से बनी चीजों को प्रयोग करना चाहिए ताकि पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सके।

प्रोफेसर रेखा ङ्क्षसह

पारंपरिक तरीके से मिट्टी के दीये का प्रयोग करना चाहिए। इस दीये से सजावट बहुत की आकर्षक लगता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर बेहतर माना जाता है। मगर हम इसके स्थान पर पर्यावरण के लिए नुकसानदायक चीज का उपयोग कर रहे हैं। मिट्टी के दीये का प्रयोग करने से कारीगरों को भी रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध होते हैं।

प्रोफेसर गौरी शंकर पासवान


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.