इस पीड़ा का कब होगा अंत, दुख अनंत
सुपौल। कोसी नदी के कटाव से विस्थापित हुए परिवारों के दिन इस उम्मीद में कट रहे है कि उनके पुनर्वास की व्यवस्था होगा।
सुपौल। कोसी नदी के कटाव से विस्थापित हुए परिवारों के दिन इस उम्मीद में कट रहे हैं कि उनके पुनर्वास की व्यवस्था होगी। लेकिन इस अनंत दुख का कब अंत होगा इसका पता किसी को नहीं है। लंबे समय से विस्थापित लोग पुनर्वास की राह देख रहे हैं। इनकी उम्मीदों पर सरकार व जिला प्रशासन खरा नहीं उतर सका है। हर बार बाढ़ आने पर कटाव पीड़ित परिवारों की याद शासन को आती तो जरूर है, लेकिन इसके साथ ही इनकी पीड़ा को प्रशासनिक स्तर पर भुला दिया जाता है। ऐसे में वर्षों से विस्थापन की पीड़ा झेल रहे पीड़ित परिवारों के लोग इस उम्मीद में जी रहे हैं कि उन्हें सरकार इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने की दिशा में कार्य करेगी। हर वर्ष आई भीषण बाढ़ में सैकड़ों परिवार पूरी तरह से तबाह होते रहते हैं। त्रासदी का आलम यह रहता है कि सैकड़ों परिवारों के लोगों ने तटबंध किनारे व सरकारी जमीन पर अपना घर बनाया है। लोग तटबंध व नहर की पटरियों पर झोंपड़ी बनाकर गुजारा कर रहे हैं।
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सरकार ने की थी जमीन देने की घोषणा
सरकार बाढ़ आने के समय बाढ़ व कटाव पीड़ितों को रहने के लिए तीन-तीन डिसमिल जमीन उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। इस घोषणा को करीब 16 साल की लंबी अवधि बीतने के बाद भी कटाव पीड़ित तटबंध व नहर की पटरियों पर बसे हैं। उनकी सुधि लेने की जरुरत न तो सरकार ने समझी और ना ही जिला प्रशासन ने। नदी के कटाव के दंश से प्रति वर्ष सैकड़ों परिवार के लोग बेघर होते हैं। यह क्रिया प्रत्येक साल जारी रहती है।
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इस साल भी सैकड़ों घर नदी में समाए
इस साल भी कोसी नदी के कटाव के कारण परसामाधो, खखई, दुबियाही, चमेलवा, कुपहा गांव सहित दो दर्जन गांव के सैकड़ों परिवारों का ठिकाना नदी के गर्भ में समा गया। इन परिवारों के लोग बेघर होकर आज भी दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हैं। नदी के भीषण कटाव की जद में आने से प्रखंड के कई गांवों का अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। इन गांवों के कटाव पीड़ित सैकड़ों परिवारों के लोग आज भी थरबिटिया स्टेशन से पश्चिम तटबंध के किनारे अपना जीवन बसर कर रहे हैं।