भांड़ में ड्यूटी, पहले लूडो
इन दिनों पुलिस विभाग में ऑनलाइन लूडो का काफी क्रेज है। पुलिस ड्यूटी से ज्यादा लूडो खेलने पर ध्यान दे रही है।
भागलपुर [बलराम मिश्र]। इन दिनों पुलिस विभाग में ऑनलाइन लूडो का काफी क्रेज है। पुलिस वालों में लूडो की दीवानगी इस कदर है कि वे अपनी ड्यूटी तक नहीं निभा रहे हैं। कुछ चौक चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस की ड्यूटी लगी हुई है। लूडो का क्रेज ऐसा कि क्या अफसर और क्या सिपाही। सभी एक साथ लूडो में लगे रहते हैं। यही नहीं लूडो खेलते समय सड़क से कोई अफसर भी गुजर जाए तो उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगती। उनकी पोस्ट पर अफसर यदि चेकिंग के लिए आ जाए तब ही नींद टूटती है। ऐसे में कहीं कोई आपराधिक घटना को अंजाम देकर भाग जाए तो पुलिस चाहकर भी उसे पकड़ने के लिए समय पर नाका नहीं लगा सकेगी। लूडो खेलने वाले कुछ पुलिस वाले बीच-बीच में सुस्ताने के लिए बाइक और चार पहिया वाहनों की चेकिंग शुरू कर देते हैं। ताकि कुछ जुर्माना वसूलकर अपने अफसरों को ड्यूटी दिखाई जा सके। माया की गिरफ्त में डॉक्टर
शहर में सेक्स रैकेट चलाने वाला सरगना बबलू साह के मायाजाल में अच्छे-अच्छे लोग फंसे हैं। जेल में बंद होने के बाद भी यह सरगना अपना बाजार बनाए रखता था। इस कारण बाहर निकलते ही धंधे में सक्रिय होने में उसे देर नहीं लगती थी। जेल में ही वह अपने धंधे की जमीन तैयार कर लेता था। कुछ माह पहले जोगसर थाना पुलिस ने सरगना को सेक्स रैकेट मामले में जेल भेजा था। वहां जाकर भी उसने अपने कई ग्राहक बना लिए। जेल से निकलते ही तुरंत धंधा शुरू कर दिया। जेल में ही बबलू की माया में एक डॉक्टर साहब फंस गए। डॉक्टर ने अपने मनोरंजन के लिए बबलू से कुछ नंबर भी लिए। बबलू ने गिरफ्तार होने के बाद उस डॉक्टर की पोल-पट्टी खोल दी है। उसने कई और नाम भी बताए हैं। इनमें कई सफेदपोश हैं। पुलिस भी ऐसे लोगों के नाम सुनकर आश्चर्य जता रही है। चुपके से विदाई की चर्चा
शहर में एक इंस्पेक्टर का विदाई समारोह इनदिनों चर्चा में है। कुछ दिन पहले ही वे सेवानिवृत्त हुए। उनका कार्यालय शहर के एक थाना परिसर में चलता है। जहां दो-दो डीएसपी के कार्यालय हैं। इंस्पेक्टर के कार्य क्षेत्र में पड़ने वाले थानेदारों ने विदाई समारोह का आयोजन किया। आयोजन भी ऐसे किया मानों इंस्पेक्टर ने कोई अपराध किया हो। चुपके-चुपके विदाई की तैयारी की और आनन-फानन में इंस्पेक्टर को विदा कर दिया। आयोजन करने वाले थानेदार पूर्व में शहर में थानेदारी कर चुके हैं। इसके बावजूद उन्होंने विदाई समारोह में 10 गज की दूरी पर मौजूद अफसरों को न्योता नहीं दिया, मानों उनका विभाग ही अलग हो। इस कारण विदाई समारोह को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं होने लगीं। शहर में पुलिस वाले भी विदाई के बारे में अक्सर बात करते दिख जाते हैं कि एक ही परिसर में होने के बाद भी आयोजनकर्ताओं ने कई अफसरों को नजरअंदाज कर दिया। खाकी वर्दी लगने लगी भारी
यह भले ही माना जाता हो कि खाकी वर्दी में गर्मी होती है। इसे पाने के लिए लोग सौ जतन करते हैं, लेकिन मिल जाने के बाद यह भारी लगने लगती है। ऐसा इसलिए कि ड्यूटी के समय भी कई पुलिसकर्मी इसे पहनना नहीं चाहते। इस लेकर उनके वरीय अधिकारी भी परेशान रहते हैं। कहीं कोई बड़ी आपराधिक वारदात भी हो जाए तो थानेदार सादी वर्दी में ही पहुंच जाते हैं। इनकी देखादेखी थाने के नीचे के अफसरों को भी खाकी वर्दी रास नहीं आती है। वे भी ज्यादातर समय सादे लिबास में ही रहते हैं। वरीय अधिकारियों के सामने भी ये लोग इसी तरह चले जाते हैं, जो पुलिस अनुशासन के खिलाफ है। इससे बड़ी विधि व्यवस्था की स्थिति में पब्लिक आम लोगों और पुलिस के बीच अंतर नहीं कर पाती है। जिससे कई तरह की परेशानी हो जाती है। अनुशासन को लेकर वे बिल्कुल लापरवाह बने हुए हैं।