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Corona effect : 'घोसलों में' कैद हैं बगडेर के 'पंछी'

लोग कोरोना के खौफ से शारीरिक दूरी का पालन कर रहे हैं। कोरोना के खौफ से अनजान पंछी अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए सुबह में उड़ जाते हैं और शाम में खाना लेकर लौट आते हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 01 Apr 2020 09:52 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2020 09:52 AM (IST)
Corona effect : 'घोसलों में' कैद हैं बगडेर के 'पंछी'
Corona effect : 'घोसलों में' कैद हैं बगडेर के 'पंछी'

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। सबौर प्रखंड का बगडेर बगीचा। 2016 में बिहार में आई विनाशकारी बाढ़ में यह मशहूर हुआ था। तब यहां चारों तरफ पानी ही पानी पसरा हुआ था। यहां रहने वाले लोग बाढ़ के पानी के बीच आम के पुराने पेड़ों पर मचान बनाकर रह रहे थे।

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एक बार फिर यहां दरख्त की शाखाओं पर दो तरह के घोसले बन गए हैं। एक में पंछी रह रहे हैं और दूसरे में स्थानीय लोग। लोग कोरोना के खौफ से शारीरिक दूरी का पालन कर रहे हैं। कोरोना के खौफ से अनजान पंछी अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए सुबह में उड़ जाते हैं और शाम में खाना लेकर लौट आते हैं। इधर, लोग अपने घोसलों में ही कैद हो गए हैं। दूर सूनी सड़कों तक उनकी नजरें जाती हैं और वापस आ जाती है। आसमान से आती तीखी धूप और पेड़ों की छांव के बीच वे कभी मचान पर, कभी अपनी झोपडिय़ों के छप्पर पर तो कभी जमीन पर उतरकर समय काट रहे हैं। बगीचे में 40 से अधिक परिवार इसी तरह रहते हैं। हर परिवार की झोपड़ी इसी बगीचे में है। बुजुर्ग सुरेश मंडल बताते हैं कि हर पेड़ पर उनलोगों ने पहले से ही मचान बनाकर रखा है। यह बाढ़ के दिनों में खुद और सामान के बचाव के लिए है। अभी इन मचानों को अगली बाढ़ के मद्देनजर मजबूत किया था। फिलहाल यह शारीरिक दूरी बनाए रखने में काम आ रहा है। यहां पर रहने वाले अधिकतर लोग खेतिहर मजदूर हैं। अभी लॉकडाउन के कारण फसलों की कटाई भी नहीं के बराबर हो रही है। जिनकी झोपडिय़ां पेड़ के साथ टिकी हैं, वहां के दो-चार लोग छप्पर पर भी दूरी बनाकर सोए-बैठे दिखे। अपनी मचान पर बैठे राजू मंडल कहते हैं, लॉकडाउन के दौरान रोजी-रोटी पर आफत आ गई है। अभी तो खाने के लिए घरों में पहले वाला अनाज है। 21 दिन का रसद हमारे पास अभी है, लेकिन आगे...!

यहीं यहां मचान से नीचे उतरकर अपनी झोपड़ी की ओर जा रहे सोनू मंडल कहते हैं, सड़कों पर गाडिय़ां चलती दिखती थीं तो लगता था कि जिंदगी चल रही है। अब लगता है कि सबकुछ ठहर सा गया है। कहीं जा नहीं सकते। समय नहीं कट रहा। सोनू की बातों से उनकी हताशा सामने आ रही है। तब बुजुर्ग मनोज मंडल उसे डांटने और समझाने वाले भाव में कहते हैं- जान है तो जहान है। आगे अनाज-पानी का भी दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि फसलों की कटाई शुरू हो गई है।


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