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कभी गांव में बच्चों को दिया जाता था भिक्षाटन का प्रशिक्षण, आज थाम रहे स्कूल बैग

कभी कटिहार के गांव में बच्चों को भिक्षाटन का प्रशिक्षण दिया जाता था। लकिन अब 50 से अधिक भिखारियों के बच्चे स्कूल की दहलीज तक पहुंच चुके हैं। कई हैदराबाद व पश्चिम में पढ़ाई कर रहे हैं। लोग शिक्षा के प्रति जागरूक भी हुए हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 05:02 PM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 05:02 PM (IST)
कभी गांव में बच्चों को दिया जाता था भिक्षाटन का प्रशिक्षण, आज थाम रहे स्कूल बैग
कटिहार जिले के डंडखोरा प्रखंड अन्तर्गत द्वाशय पंचायत के भिखारी भाट टोला के बच्चों को पढ़ाते दर्जी मु. इरसाद

कटिहार [प्रदीप गुप्ता]। कटिहार जिले के डंडखोरा प्रखंड के भिखारी भाट टोला के बच्चे भी अब स्कूल जाने लगे हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों की तादाद अभी कम है, लेकिन साल दर साल यह कतार लंबी हो रही है। अब यहां के अभिभावकों को भी बच्चों के हाथों में कटोरे की बजाय स्कूल बैग भाने लगा है। फलत: वे नन्हें बच्चों को भीख मांगने के धंधे से हटाकर उन्हें स्कूल भेजने लगे हैं। इससे गांव के मुन्ना व मुनियों के चेहरे पर भी नई मुस्कान दिख रही है।

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जिला मुख्यालय से तकरीबन 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दो सौ परिवार वाले इस गांव की पहचान पेशेवर भिक्षुकों के गांव के रूप में थी। घरों में बच्चों को भिक्षाटन का प्रशिक्षण दिए जाने के कारण कई वर्षों तक यह गांव सूर्खियों में रहा था। यह भिक्षुकों के एक बड़े नेटवर्क का केंद्र भी बन गया था।

इरशाद ने थामी मशाल, रोशन होने लगा गांव

गांव में इस बदलाव की पटकथा टेलर मास्टर मो. इरशाद ने लिखी है। आठवीं पास इरशाद पूर्व में अन्य ग्रामीणों की तरह खुद भी पेशेवर भिक्षुक थे। मगर यह उनकी अंतर आत्मा को नागवार गुजर रही थी। उन्होंने ग्रामीणों के विरोध के बाजवूद सिलाई कटाई का प्रशिक्षण लिया और  टेलर मास्टर का कार्य शुरू किया। उन्होंने अपने तीनों बच्चों से भी भिक्षाटन कराने की बजाय उन्हें स्कूल में दाखिल कराया। अन्य अभिभावकों को इसके लिए प्रेरित करने की मुहिम भी उन्होंने शुरू की। आज इस गांव के 50 से अधिक बच्चे स्कूल की दहलीज तक पहुंच चुके हैं। कई बच्चे हैदराबाद व पश्चिम बंगाल के मालदा स्थित मदरसा में पढ़ रहे हैं।

महिलाएं भी निभा रहीं अहम भूमिका

पंचायत की  पूर्व प्रमुख पूनम देवी व समाज सेवी श्रवण सन्यासी कहते हैं कि इस बदलाव को अब रफ्तार मिलने लगी है। यहां की महिलाएं जग चुकी है। गांव की बबीना देवी, ज्योति देवी, सनोज व अजीरा कहती हैं कि उन्हें भी बच्चों को स्कूल जाते देख कर अच्छा लगता है। अब वे बच्चों से कभी भिक्षाटन नहीं कराएंगी। मो. अशफाक व मो. हफीज कहते हैं कि अब वे लोग जग चुके हैं। गांव में स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र हैं। सरकारी योजनाओं का भी उन लोगों को लाभ मिल रहा है। अब वे लोग बच्चों को नई ङ्क्षजदगी देना चाह रहे हैं।


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