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छठ व्रत से होती है मनोवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य

लोक आस्था का महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ आरंभ हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 03:53 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 04:00 PM (IST)
छठ व्रत से होती है मनोवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य
छठ व्रत से होती है मनोवांछित फलों की प्राप्ति : आचार्य

भागलपुर (जेएनएन)। लोक आस्था का महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ आरंभ हो गया है। यह पर्व भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। खासकर बिहार में यह पर्व घर-घर मनाया जाता है। हमारे वैदिक संस्कृति में मान्यता है कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्त्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्युषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। संध्याकाल में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युषा एवं प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण उषा को अ‌र्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है। छठ पर्व का महात्मय बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि पुराणों के कथानुसार भगवान राम लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्त कर जब अयोध्या लौटे तो श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात रामराज्य की परिकल्पना को ध्यान में रखकर भगवान राम व सीता ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को ही उपासना रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की तथा सप्तमी को यह उपासना पूर्ण हुई। पवित्र सरयू नदी के तट पर राम व सीता के इस कठोर अनुष्ठान से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। तभी से छठ पर्व अधिक लोकप्रिय हो गया। आचार्य ने बताया कि एक अन्य पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी एवं सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। भगवान सूर्य की आराधना करते हुए विश्वामित्र के मुख से अनायास ही वेदमाता प्रकट हुई थी। यह पवित्र मंत्र भगवान सूर्य के पूजन का ही परिणाम था। तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को समस्त भारत में छठ महापर्व के रुप में मनाया जाने लगा। इस महापर्व से भक्तों-उपासकों को समस्त प्रकार के मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

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छठ पर्व की परम्परा में छिपा है गहरा विज्ञान

छठ पर्व की परम्परा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है। छठ पर्व का वैज्ञानिक रहस्य एवं महत्व बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। उसके संभावित कुप्रभाओं से मानव की यथासंभव रक्षा करने की शक्ति इस परम्परा में है। पर्वपालन से सूर्य (तारा), प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिल सकता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैंगनी किरण भी चन्द्रमा और पृथ्वी पर आती है। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर आता है तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैंगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने आक्सीजन तत्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया के माध्यम से सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर उसका केवल नगण्य भाग ही पहुंचता है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्य पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप से हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य के जीवन को अत्यधिक लाभ होता है।


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