सृजन घोटाला: को-ऑपरेटिव बैंक ने ठोका 1.16 अरब का दावा, अवैध निकासी का मामला
सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक ने सृजन घोटाला में 50 करोड़ की अवैध निकासी पर राशि वसूली के लिए ब्याज सहित 1.16 अरब का दावा किया है। दावा बैंक ऑफ बड़ौदा और इंडियन बैंक से किया गया है।
भागलपुर [जेएनएन]। सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक ने सृजन घोटाला में हुई 50 करोड़ की अवैध निकासी पर राशि वसूली के लिए ब्याज सहित 1.16 अरब का दावा किया है। यह दावा बैंक ऑफ बड़ौदा और इंडियन बैंक प्रबंधन से किया गया है। को-ऑपरेटिव बैंक के इस दावे पर आमसभा की सहमति मिल गई है। हाल ही में हुई बैंक की 33वीं वार्षिक आमसभा ने इसका अनुमोदन किया है। सृजन घोटाले के बाद बैंक की पहली आमसभा गत दिनों हुई थी।
बैंक के प्रबंध निदेशक अनिल कुमार गुप्ता ने बताया कि राशि की वसूली के लिए मनी सूट दायर करने की कार्रवाई की जाएगी। मनी सूट दायर करने के पूर्व बैंक विधि परामर्श ले रहा है। प्रबंध निदेशक ने कहा कि को-ऑपरेटिव बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की नीति और नियमावली से गाइड होता है। इसलिए आरबीआइ से भी आगे की कार्रवाई के लिए मार्गदर्शन मांगा गया है। सहकारिता विभाग को भी इस संबंध में पत्र लिखा गया है।
आखिर क्या है सृजन घोटाला
दरअसल 2017 के अगस्त के पहले सप्ताह में भागलपुुर के तत्कालीन डीएम आदेश तितरमारे ने अपने हस्ताक्षर से एक चेक बैंक को भेजा। लेकिन, बैंक ने यह कहकर चेक को वापस कर दिया कि खाते में पर्याप्त पैसे नहीं हैं. यह चेक सरकारी ख़ाते का था. इसके बाद तो डीएम हैरान हो गए। खाते में पैसा होने की बात कही जा रही थी। जांच के लिए कमेटी बनी. इंडियन बैंक और बैंक ऑफ़ बड़ौदा स्थित सरकारी ख़ातों में पैसे नहीं होने की बात सामने आयी। इसके बाद बड़े गोलमाल की आशंका डीएम को हुई।
सरकारी पैसे जा रहे थे एनजीओ के खाते में
इसके बाद मामला राज्य सरकार के पास पहुंचा। इस तरह से घोटाले की परतें खुलनी शुरु हुईं और यह 'सृजन घोटाला' के रूप में सबके सामने आया। जांच में यह बात आयी कि कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय ख़ातों में न जाकर या वहां से निकालकर 'सृजन महिला विकास सहयोग समिति' नाम के एनजीओ के ख़ातों में ट्रांसफ़र कर दी जाती थी. समिति के लगभग आधा दर्जन खाते थे।
अब सीबीआई कर रही है जांच
यह मामला सामने आने के बाद त्वरित कार्रवाई करते हुए नौ अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश पर बिहार पुलिस के आर्थिक अपराध इकाई का विशेष जांच दल भागलपुर पहुंचा. इसका नेतृत्व आईजी रैंक के पुलिस अफ़सर जेएस गंगवार कर रहे थे। टीम को तीन दिनों तक यही समझने में लग गया कि सरकारी ख़ाते के पैसे एनजीओ के ख़ाते में कैसे जा रहे थे। घोटाला करोड़ों में जाने के बाद सियासत तेज हुई और फिर मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। तब से सीबीआई इसकी जांच कर रही है।
सृजन घोटाले में बीपीएससी के पूर्व सचिव सहित सात को जमानत नहीं
1700 करोड़ रुपये के सृजन घोटाले में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश अजय कुमार श्रीवास्तव ने बिहार लोक सेवा आयोग के पूर्व सचिव तथा भागलपुर जिला परिषद के तत्कालीन विकास आयुक्त प्रभात कुमार सिन्हा सहित छह आरोपितों के अग्रिम जमानत के आवेदनों पर बहस सुनने के बाद अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया।
अदालत ने इसी मामले में भागलपुर में इंडियन बैंक के तत्कालीन क्लर्क रामकृष्ण झा का भी नियमित जमानत का आवेदन खारिज कर दिया। झा जेल में हैं। सिन्हा के अलावा जिनके अग्रिम जमानत आवेदन खारिज किए गए, उनमें भागलपुर में इंडियन बैंक के तत्कालीन सहायक मैनेजर प्रवीण कुमार और सुब्रत दास, भागलपुर में ही बैंक ऑफ बड़ौदा के तत्कालीन ब्रांच मैनेजर नवीन कुमार साहा और तत्कालीन वरीय प्रबंधक अमरेंद्र प्रसाद साहू तथा बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य शाखा के तत्कालीन क्लर्क संत कुमार सिन्हा हैं। ये सभी छह आरोपित पकड़े जाने के डर से फरार हैं। सीबीआइ इनके खिलाफ 16 फरवरी 2018 को ही आरोपपत्र दायर कर चुकी है।
जानकारी के अनुसार सृजन घोटाला उजागर होने के बाद भागलपुर कोतवाली पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ 12 अगस्त 2017 को प्राथमिकी दर्ज की थी। जांच एजेंसी ने मामले में 13 आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। आरोपितों ने आपस में साठगांठ कर तथा सृजन के पदाधिकारियों की मिलीभगत से 2009 से 2017 के बीच कई बार मुख्यमंत्री ग्रामोदय योजना एवं बिहार सरकार की अन्य योजनाओं के करीब 31.73 करोड़ रुपये विभाग के खाते से सृजन महिला विकास सहयोग समिति के खाते में स्थानांतरित करवाए और रुपये निकालकर आपस में बांट लिए। रुपये खाते में स्थानांतरित करने के लिए चेकों पर फर्जी हस्ताक्षर किए गए।