Boat accident in Bhagalpur : पेट की मजबूरी, मजदूरों के लिए लाला बहियार जरूरी, आज भी नाव एक मात्र सहारा
Boat accident in Bhagalpur भागलपुर का दियारा इलाका। यहां अब भी लोगों को समुचित सुविधा नहीं है। 21वीं सदी में भी वहां जाने को नाव ही एकमात्र सहारा है। सैकड़ों मजदूर मजदूरी करने वहां की खेतों में रोज जाते हैं। क्षमता से अधिक सवार भी नाव पर चढ़ते हैं।
भागलपुर [कौशल किशोर मिश्र]। नवगछिया के गोपालपुर प्रखंड क्षेत्र का लाला बहियार इलाकाई मजदूरों के लिए कमाने के साधन में किसी बड़े कल-कारखाने से कम नहीं है। जहां गोपालपुर, इस्माईलपुर प्रखंड के दर्जनों गांवों से सैकड़ों की संख्या में मजदूर कमाने आते हैं। वहां तक पहुंचने का एक मात्र साधन नाव है। तिनटंगा करारी गंगा घाट से 12 शीट के लाला बहियार की दूरी सात किलोमीटर है। वहां पहुंचने के लिए नाव से ही जाया जा सकता। गंगा से फूटी उपधारा ही तिनटंगा करारी और लाला बहियार से होकर कभी गुजरती थी। अब गंगा नदी की मुख्य धारा ही बह रही है।
सोना उगलती है यहां की जमीन
लाला बहियार की उपजाऊ जमीन मकई, सरसो, परवल, करेला, भिंडी, मूली, बैंगन, कलाई, चना, मटर, कद्दू, तरबूज, खरबूज आदि पैदा करती है। यहां फसलें लहलहा उठती है। यह सब मेहनत करने वाले इलाकाई मजदूरों से संभव होता है। जहां पेट पालने की मजबूरी में रोज सैकड़ों की संख्या में मजदूर जाते हैं।
सक्षम ग्रामीण ही बना रखे हैं नाव, नहीं लेते मजदूरों से किराया
तिनटंगा करारी गंगा घाट से लाला बहियार तक जाने के लिए वर्षों से कुछ लोग क्षमता में नाव तैयार कर उसे चलाते हैं। बड़ी-बड़ी तैयार नावों में सवार होकर लाला बहियार तक पहुंचने के लिए किसी मजदूर से किराया नहीं लेते। मजदूरों ने ही उन्हें फसल कटने पर सलाना 50 किलोग्राम अनाज बतौर किराया तय कर रखे हैं। ना कोई झगड़ा, ना तनातनी। सबकुछ सामान्य तरीके से वर्षों से चला आ रहा है। लाला बहियार में तिनटंगा करारी और तिनटंगा के झल्लू दास टोला, भीम दास टोला, ज्ञानी दास टोला, सिमरिया वाले संपन्न किसानों की जमीन है। खेतों में फसल लगाने, फसल तैयार करने, खाद, बीज, रखवाली सबकुछ मजदूरों के हाथ होता है। काफी मजदूरों ने वहां बाकायदा बासा बना रखा है। जहां के मचान में भोजन बनाने के साधन रख छोड़े हैं। मजदूरी के दौरान देर होने पर वहां भी टिक जाते हैं। हादसे की शिकार नाव पर साइकिल, बाइक, खाद, बीज के साथ 90 की संख्या में लोग सवार थे। जिस घर से मजदूरी में मां जा रही थी वह अपने साथ बेटे-बेटी और बहू को भी ले जा रही थी। नजर के सामने रखने और काम में हाथ बंटाने की चिंता। भविष्य में उनके लिए भी मजदूरी का रास्ता बताने की मजबूरी भी। उनके भविष्य गढऩे की हैसियत उन बेचारे मजदूरों में कहा। सौ-दो सौ रुपये प्रतिदिन की दर से उन्हें मजदूरी मिलती। जिससे पूरे परिवार का पेट चलाना है। साग-सब्जी भी मजदूरी के दौरान घर के लिए खेतों से जुटा लेने की भी चिंता। इसी में उन मजदूरों का पूरा दिन खत्म हो जाता। सुबह उठते ही फिर काम में लग जाते। कांख में कचिया, खुरपी और हाथ में कलौआ की पोटली लिए मजदूर फिर काम में लग जाते। लाला बहियार में लहलहाती फसल उगाने के लिए इस्माईलपुर, तिनटंगा करारी, सैदपुर, मकनपुर, बड़ी मकनपुर समेत आसपास के दियारा से काफी संख्या में मजदूर रोज लाला बहियार जाते हैं।