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बिहार में सफेद मोतियों का काला कारोबार, जानिए कैसे धोखा खा रहे ग्राहक

बिहार में सफेद मातियों का काला कारोबार हो रहा है। असली के नाम पर चीन के मोती बिक रहे हैं। ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी की जा रही है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sun, 13 May 2018 08:54 PM (IST)Updated: Mon, 14 May 2018 10:21 PM (IST)
बिहार में सफेद मोतियों का काला कारोबार, जानिए कैसे धोखा खा रहे ग्राहक
बिहार में सफेद मोतियों का काला कारोबार, जानिए कैसे धोखा खा रहे ग्राहक

भागलपुर [नवनीत मिश्र]। आपने अपनी उंगलियों में मोती पहन रखा है तो जरूरी नहीं कि वह असली हो। इसके पीछे की वजह यह है कि पूरे प्रदेश में सफेद मोतियों का काला कारोबार हो रहा है। ये मोती देखने में तो सफेद रंग के होते हैं, लेकिन इनकी चमक और सफेदी नकली होती है। यही कारण है कि कुछ दिनों के प्रयोग के साथ ही ये फीके और पीले पड़ जाते हैं।

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असली के नाम पर नकली मोती के कारोबार में कोसी सबसे आगे है। कोसी क्षेत्र के कई बड़े प्रतिष्ठानों में 100 रुपये से लेकर 500 रुपये तक मोती की ज्वेलरी हजारों रुपये में बेची जा रही है। इसके बावजूद न गुणवत्ता की जांच की कोई व्यवस्था है और न सर्टिफिकेट ही मिलता है। चेंबर के आंकड़ों के अनुसार हर महीने पूरे प्रदेश में 40 लाख से भी अधिक के मोतियों का कारोबार होता है। इसमें अवैध कारोबार को भी बढ़ावा मिल रहा है। बिहार ज्वेलर्स एसोसिएशन ने भी इस पर चिंता जताई है।

केंद्र सरकार ने जताई है चिंता

नकली मोती के बाजार पर वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने चिंता जताई थी। जयपुर में नकली मोतियों के कारोबार का पर्दाफाश हुआ था। उस समय में चीन से अवैध तरीके से मोती के सप्लाई का भंडाफोड़ हुआ था। जयपुर में भी मोतियों की सप्लाई कोलकाता के रास्ते होती है। पूर्णिया शहर भी इसका बड़ा अड्डा बनते जा रहा है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में 15 हजार करोड़ रुपये का मोतियों का सालाना कारोबार है।

पूरे देश में है चाइनीज और कल्चर्ड मोती की मांग 

पूर्णिया के बाजार में सबसे अधिक कल्चर्ड मोती बिक रहे हैं। कल्चर्ड मोती को मीठे पानी में उत्पन्न मोती भी कहते हैं। ओडिशा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में इसकी खेती होती है। इसे कृत्रिम तरीके से उत्पन्न किया जाता है। केमिकल और सूई की मदद से इसके आकार को भी बड़ा किया जाता है। इन मोतियों की मांग इतनी ज्यादा है कि पूरे भारत में इसकी सप्लाई कम पड़ जाती है। ऐसे में बड़ी संख्या में इन मोतियों को चीन से भी मंगवाया जाता है।

चीन से सप्लाई होने वाले मोतियों में प्लास्टिक के मोती भी शामिल होते हैं। इन मोतियों का निर्माण प्लास्टिक, शीशा और कई केमिकल के जरिये फैक्ट्री में किया जाता है। तकनीक के माध्यम से इसे असली मोतियों की तरह बना दिया जाता है, लेकिन इनकी लाइफ महज कुछ महीने की ही होती है।

असली मोती की खासियत

असली मोती के निर्माण में कई साल का समय लगता है। यह मुख्य तौर से समुद्र के खारे पानी में ही मिलता है। इसकी चमक तेज होती है। सफेदी भी पूरी। ये मोती पूरी तरह गोल नहीं होते हैं। गर्मी में भी हाथ में लेने पर आपको ठंडक महसूस होगी। इनकी कीमत का निर्धारण कैरेट के हिसाब से होता है। एक्सपर्ट की मानें तो मोतियों का कोई ब्रांड नहीं होता है। बलसारा, मल्लोरका या मजोरका मोती भी मनुष्य की ओर से बनाए गए नकली मोती के नाम हैं। इसे असली मोती के नाम पर बाजार में बेचा जाता है।

सोना-चांदी से लेकर मोतियों तक की खरीदारी में ग्राहकों को जागरूक होने की जरूरत है। सोने के बाजार में तो ग्राहक हॉलमार्क का सहारा ले सकते हैं, लेकिन मोतियों के कारोबार में सर्टिफिकेशन की कमी है। ऐसे में कई बार ग्राहक ठगे जाते हैं। मोती खरीदारी करने से पहले रिसर्च करें।

अनिल साह, कारोबारी 


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