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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती : लोग भूल गए बापू का चरखा, 1992 में स्थापित चरखा केंद्र हुआ ध्वस्त

Birth anniversary of Mahatma Gandhi सुपौल में चरखा केंद्र की स्थापना 1992 में हुई थी। इसके बाद गांव की महिलाओं को चरखा चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। काफी संख्या में महिलाएं इस काम से जुड़ गईं। उन्हें अच्छी-खासी आमदनी भी होने लगी।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Fri, 02 Oct 2020 01:42 PM (IST)Updated: Fri, 02 Oct 2020 01:42 PM (IST)
यहां महिलाएं चरखा चलाकर तैयार करती थीं सूत।

सुपौल, जेएनएन। कभी पिलवाहा पंचायत के लक्ष्मीनियां पश्चिम वार्ड नंबर आठ में चरखा केंद्र हुआ करता था। 1992 में स्थापित चरखा केंद्र 2008 में कोसी की बाढ़ में ध्वस्त हो गया। यहां गांव की महिलाएं धागा तैयार करती थीं। इससे उन्हें आमदनी भी होती थी। बाढ़ ने केंद्र को तहस-नहस कर दिया। उसके बाद से किसी ने इसकी सुध नहीं ली और लोग बापू के चरखे को भूल गए।

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इसके संस्थापकों में से एक रघुवीर दास बताते हैं कि केंद्र की स्थापना 1992 में हुई थी। इसके बाद गांव की महिलाओं को चरखा चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। काफी संख्या में महिलाएं इस काम से जुड़ गईं। उन्हें अच्छी-खासी आमदनी भी होने लगी। बेकार समय गंवाने वाली महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिल गया। यहां तैयार धागे बाहर भेजे जाते थे। इनसे खादी के कपड़े तैयार होते थे। इससे ना सिर्फ महिलाओं को रोजगार मिलता था, बल्कि खादी के वस्त्र के रूप में बाजार को स्वदेशी उत्पाद प्राप्त होता था। 2008 की कुसहा त्रासदी ने इस चरखा केंद्र को भी ध्वस्त कर दिया। कुछ चरखे बह गए तो कुछ पानी में सड़ गए। बाढ़ खत्म होने के बाद इसे पुनस्र्थापित करने का प्रयास किया गया, लेकिन अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया। आज बापू के उजड़े सपने को व्यवस्थित करने वाला कोई नहीं है।


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