राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती : चार बार बापू आए थे भागलपुर, पांच रुपये में दिया था ऑटोग्राफ
Birth anniversary of Mahatma Gandhi राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कई यादें भागलपुर से जुड़ी हैं। वे यहां चार बार आ चुके हैं। बापू का 56 वां जन्मदिन भागलपुर में मना था। इस दौरान उन्होंने स्वराज का महत्व बताया था। कई लोगों को वे व्यक्तिगत रूप से जानते थे।
भागलपुर [नवनीत मिश्र]। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी चार बार भागलपुर आए थे। उन्होंने 56वां जन्मदिन यहीं सादगी के साथ मनाया था। इतिहास के प्राध्यापक डॉ. रविशंकर कुमार चौधरी ने बताया कि गांधीजी 15 अक्टूबर, 1917 को पहली बार छात्र सम्मेलन में भाग लेने यहां आए थे। सम्मेलन में डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी उपस्थित थे।
पगड़ी, मोटा खादी का कुर्ता, खादी की धोती और पैर में कठियावाड़ी जूते पहने जब वे पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ी थी। सम्मेलन कांग्रेस नेता दीप नारायण सिंह की जमीन पर आयोजित किया गया था, जहां अब लाजपत पार्क है। बापू ने मातृभाषा के अधिकाधिक इस्तेमाल पर बल दिया था। उन्होंने कहा था कि मातृभाषा का अपमान, भारत माता का अपमान है। बापू दूसरी बार 11 दिसंबर, 1920 को भागलपुर आए थे। उनके साथ कांग्रेस के बड़े नेता शौकत अली थी थे। शाम को जैसे ही उनकी ट्रेन भागलपुर पहुंची, हजारों लोगों ने बाबू दीप नारायण सिंह की अगुआई में उनका भव्य स्वागत किया था। उनकी यह यात्रा थर्ड क्लास डिब्बे में सामान्य यात्रियों के साथ हुई थी। स्टेशन से उन्हें और शौकत अली को गाजे-बाजे साथ दीप बाबू के आवास तक ले जाया गया। दूसरे दिन उनकी सभा टील्हा कोठी में हुई थी। तीसरी बार गांधीजी एक और दो अक्टूबर, 1925 को भागलपुर में रहे थे। कमलेश्वरी सहाय के आग्रह पर उनका 56वां जन्मदिन शिव भवन में सादगी से मनाया गया था।
गांधी जी ने उपस्थित महिलाओं से पर्दा प्रथा का त्याग, चरखा चलाने और खादी वस्त्र पहनने, विदेशी वस्त्र का बहिष्कार और बालिकाओं को शिक्षित बनाने पर विशेष जोर दिया था। उनके कहने पर महिलाओं ने घूंघट का त्याग कर दिया। मौके की बड़ी घटना विदेशी वस्त्रों की होली थी। उन्होंने बिहार प्रांतीय अग्रवाल सभा को भी संबोधित किया, जिसकी अध्यक्षता सेठ जमना लाल बजाज ने की थी। गांधीजी ने विदेशी वस्त्रों का व्यापार नहीं करने और असहयोग आंदोलन मे भाग लेने की अपील की थी। जाने-माने इतिहासकार केके दत्त की पुस्तक 'गांधीजी इन बिहार' में बताया गया है कि गांधी जी की अंतिम भागलपुर यात्रा दो अप्रैल, 1935 को हुई थी। बिहार में आए भूकंप को देखने वे सहरसा से बिहपुर होते हुए भागलपुर पहुंचे थे। सभा में बहुत से लोग ऑटोग्राफ लेना चाहते थे। गांधीजी ने पांच-पांच रुपये लेकर ऑटोग्राफ दिए थे। इसमें भागलपुर की महिलाओं ने दो-दो गहने और आम लोगों ने काफी धन देकर सहयोग किया था।