Positive India: कोरोना से लड़ाई में बिहार के एक गांव का संदेश- कैलन मोदी जी एलान, सतर्क रहे हिंदुस्तान...
बिहार के कटिहार जिले के द्वाशय गांव में कोरोना का खौफ है तो कौतूहल भी। लॉकडाउन में घर बंद हैं। गलियों में इक्का-दुक्का लोग हैं। गांव अपनी भाषा में कोरोना से लड़ाई का मर्म समझा रहा।
कटिहार, प्रकाश वत्स। ''कैलन मोदी जी एलान, सतर्क रहे के हिंदुस्तान...।'' गांव की गलियों में मस्ती में गीत गाते जा रहे मुक्तिनाथ यादव। कोसी का वह अतीत जैसे फिर से जी उठा हो, जिसे प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने 'मैला आंचल' में पिरोया था।
त्रासदी के दौर में कायम कोसी की मिट्टी की जिंदादिली
त्रासदी तब भी थी, आज भी। लेकिन कोसी की मिट्टी की जिंदादिली देखते बनती है। यही तो है अपने देश की खासियत, जहां आम आदमी अपनी भाषा में वक्त की नजाकत को पढऩा जानता है। बिहार के कटिहार जिले के डंडखोरा प्रखंड का द्वाशय गांव। कोरोना का खौफ है तो कौतूहल भी। लॉकडाउन है, सो घरों के दरवाजे बंद या गलियों में इक्का-दुक्का लोग। इसी मिट्टी से कभी रेणु ने 'मैला आंचल' के पात्र चुने थे।
पहले भोग चुके हैजा की त्रासदी व बाढ़ की विभीषिका
आजादी से पहले की बात। हैजा की त्रासदी, बाढ़ की विभीषिका, गरीबी। पढऩे की कोशिश करें तो वे सारे पात्र और दृश्य जैसे आज फिर सामने हों। बिरंची से लेकर विश्वनाथ प्रसाद तक, जो कथा का नायक था। अभी के पंचायत प्रतिनिधि इसी रूप में। कभी पुलिस की गाड़ी आती है, कभी अफसर गुजर रहे। खिड़की से झांकते लोग साहस बटोरकर दलान तक आते हैं। इस बीच किसी की कड़क आवाज- तुम लोग समझते नहीं हो...। कदम फिर आंगन की ओर सरक जाते हैं।
अलमस्त गाते दिखे मुक्तिनाथ- कैलन मोदी जी एलान...
द्वाशय गांव में शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे कमंडल में दूध लिए मुक्तिनाथ पड़ोस की काकी के यहां जा रहे हैं। एकदम अलमस्त। गीत गाते हुए-कैलन मोदी जी एलान...। रेणु के मैला आंचल के पात्रों को याद करें, ढोलक पर ताल देता ढोलकिया-ढिक ढिक...। कैलन मोदी जी...ठीक वही दृश्य। गांव ने संदेश समझ लिया है। थोड़ी देर पहले पुलिस की गाड़ी गुजरी है।
एक-दूसरे से दूरी बनाकर चौपाल, बस कोरोना की ही चर्चा
जगनी देवी अपनी टुपिया (बकरी ) की रास थामे ओट से ही आवाज लगाती है। बगल से परवतिया, सुगनी आदि भी जमा हो जाती हैं। महिलाओं की चौपाल एक-दूसरे से दूरी बनाकर खड़ी है। पूरी तरह सजग। विषय कोरोना ही है। जगनी के कानों में मगरू की आवाज पड़ते ही वह भागती है। चौपाल खत्म।
करीब 90 साल के वयोवृद्ध नारायण दरवाजे के पास जमे हैं। शारीरिक दूरी बनाए कई युवक उन्हें घेरकर बैठे हैं। बूढ़ी आंखें बीते दौर में झांक रही हैं। युवक उत्सुकता से सुन रहे हैं कि किस तरह हैजा फैला था। ऐसा ही माहौल था। गांव के गांव खाली हो गए थे। सबने मिलकर मोर्चा लिया था। कोरोना को भी देख लेंगे। ठहाके लगते हैं। खैनी भी रगड़ी जा रही। गांव की मिट्टी कोरोना को भगाने के उपाय पर कुछ ऐसे ही मंथन कर रही है।
इस गांव ने समझ लिया है संक्रमण से बचाव का मर्म
इस गांव में बच्चे हों या बूढ़े, सभी ने इस बात को समझ लिया है कि एकदूसरे से उचित शारीरिक दूरी बनाकर रखना है, एकदूसरे की मदद करना है और खुद को व औरों को कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सजग करते चलना है।