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Bihar Assembly Elections 2020 : हाथ हो या तीर, पूर्णिया में सबके हैं पुराने वीर

Bihar Assembly Elections 2020 पूर्णिया जिले सात विधानसभा क्षेत्रों में अधिकतर पर 15-20 सालों से एक ही दल और प्रतिनिधि का कब्जा बरकरार है। बिहार को पूर्णिया ने एक मुख्यमंत्री और तीन विधानसभा स्पीकर दिए हैं। मुख्यमंत्री थे भोला पासवान शास्त्री। कई मंत्री भी बने।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 12:51 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 12:51 PM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020 : हाथ हो या तीर, पूर्णिया में सबके हैं पुराने वीर
सात विधानसभा वाले इस जिले में अब तक हुए चुनावों पर नजर डालें।

पूर्णिया [मनोज कुमार]। Bihar Assembly Elections 2020 : जिस तरह पूर्णिया की धरा हरा-भरा है, यहां के लोगों का मन भी उतना ही साफ और सीधा है। यहां के लोग जिसपर भरोसा करते हैं दिल खोलकर करते हैं और अगर रास नहीं आए तो मुड़कर भी नहीं देखते।

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जिले सात विधानसभा क्षेत्रों में अधिकतर पर 15-20 सालों से एक ही दल और प्रतिनिधि का कब्जा बरकरार है। पूर्णिया सदर विस क्षेत्र 20 साल से लगातार भाजपा के कब्जे में है। इसी तरह रूपौली 20 साल से जदयू, धमदाहा 15 साल से जदयू, बनमनखी 20 साल से भाजपा, कसबा 15 साल से कांग्रेस और अमौर 2010 को छोड़ 15 साल से कांग्रेस के कब्जे में है।

बिहार को पूर्णिया ने एक मुख्यमंत्री और तीन विधानसभा स्पीकर दिए हैं। मुख्यमंत्री थे भोला पासवान शास्त्री। यहां के कई राजनेताओं ने बिहार सरकार में मंत्री पद को सुशोभित किया। वर्तमान सरकार में भी पूर्णिया से दो मंत्री हैं। एक बार फिर बिहार में नई सरकार गठन के लिए विधानसभा चुनाव दस्तक दे चुका है, ऐसे में यहां का राजनीतिक तापमान बढ़ गया है। सात विधानसभा वाले इस जिले में अब तक हुए चुनावों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट है कि जनता ने जिसे चाहा है तो वर्षों तक अपना प्रतिनिधि बना कर रखा है।

पूर्णिया सदर क्षेत्र की बात करें तो आजादी के बाद यहां कांग्रेस का लगातार तीन दशक तक कब्जा रहा। उसके बाद यहां सीपीएम के अजीत सरकार ने लाल झंडा गाड़ा। वे लगातार तीन टर्म तक वहां से चुनाव जीतते रहे और उनकी हत्या बाद ही यह सीट खाली हुई। बाद में उनकी पत्नी माधवी सरकार विधायक चुनीं गई। 15 वर्षों के बाद वहां वर्ष 2000 में सीपीएम को परास्त कर भाजपा के राजकिशोर केशरी चुनाव जीते। इसके बाद अपनी हत्या तक वे तीन बार लगातार विधायक बने। आज भी यह सीट भाजपा के कब्जे में है। राजकिशोर केशरी की हतया बाद उनकी पत्नी और वर्तमान में विजय खेमका यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

यही हाल रूपौली विधानसभा क्षेत्र का है। यह भी सीपीआई का गढ़ था लेकिन 1995 में सीपीआई सपा से हारी। जिसके बाद 2000 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बीमा भारती ने चुनाव जीता तथा तब से वे आज तक वहां का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इस बीच वे 2005 में राजद में गई लेकिन 2010 से वे लगातार जदयू में हैं और अभी बिहार सरकार में मंत्री हैं। धमदाहा की भी लेशी ङ्क्षसह 2000 में समता से चुनाव जीती। उसके बाद 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में भी जीत दर्ज की लेकिन अक्टूबर में हार गई। परंतु 2010 से अब तक वे जदयू से विधायक हैं। बनमनखी (सु.) क्षेत्र पर पिछले 15 साल से भाजपा के कृष्ण कुमार ऋषि का कब्जा है। वे बिहार सरकार में मंत्री भी हैं। वे इस चुनाव में चौथी बार अपनी किस्मत आजमाने उतरेंगे। कसबा का प्रतिनिधित्व भी पिछले 15 साल से कांग्रेस के अफाक आलम के हाथ है। वे भी इस चुनाव में चौथी जीत हासिल करने उतरेंगे। अमौर विस क्षेत्र में कांग्रेस के अब्दुल जलाल मस्तान विधायक हैं। 2010 का चुनाव छोड़ दें तो वे 2000 से विधायक बनते रहे हैं। 2010 में वहां भाजपा के सबा जफर ने चुनाव जीता था। सिर्फ एक विस क्षेत्र बायसी में राजद का कब्जा है। आंकड़े बताते हैं कि जिले के अधिकांश विधानसभा सीट चाहे निशान कमल हो या हाथ या फिर तीर लेकिन सबके हैं पुराने वीर।


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