Bihar Assembly Election Results 2020 : पूर्व बिहार, कोसी और सीमांचल में भी नोटा का रहा बोलबाला, जानिए... कहां से कितने मिले वोट
Bihar Assembly Election Results 2020 इतने वोटों से तो चार विधायक बन जाते। पूर्व बिहार कोसी और सीमांचल में भी नोटा का रहा बोलबाला। 62 सीटों पर 187375 वोटरों को कोई उम्मीदवार नहीं आया पसंद। लोगों ने इस बार भी नोटा का प्रयोग काफी किया है।
भागलपुर {शंकर दयाल मिश्रा}। Bihar Assembly Election Results 2020 : पूर्व बिहार, कोसी और सीमांचल में भी नोटा का बोलबाला रहा। यहां की कुल 62 विधानसभा सीटों पर नोटा को जितने वोट मिले उतने में चार विधायक बन जाते।
पूर्व बिहार के जमुई जिले में चार, लखीसराय में दो, मुंगेर में तीन, खगडिय़ा में चार, बांका में पांच और भागलपुर में सात सीटें हैं। इन 25 सीटों पर नोटा को 71,162 वोट मिले। कोसी के सहरसा जिले में चार, मधेपुरा में चार और सुपौल में पांच सीटें हैं। इन 13 सीटों पर 39,314 वोटरों को नोटा को पसंद किया। आंकड़ों के लिहाज से इस इलाके में पूर्व बिहार की अपेक्षा नोटा को अधिक वोट पड़े। सीमांचल के पूर्णिया जिले में सात, कटिहार में सात, अररिया में छह और किशनगंज में चार सीटें हैं। इन 24 सीटों पर 76,899 वोटरों ने नोटा बटन दबाया। यह संख्या पूर्व बिहार और कोसी के मुकाबले अधिक है। उक्त आंकड़ों के आधार पर पूर्व बिहार, कोसी और सीमांचल में 1,87,375 वोटरों को चुनाव मैदान में उतरा कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आया।
उक्त सीटों पर नजर डालें तो सबसे कम वोट पाकर जीतने वाले उम्मीदवार रहे सुमित सिंह। वे जमुई जिले के चकाई से निर्दलीय उम्मीदवार थे। उन्होंने महज 45,548 वोट लाकर जीत दर्ज की है। इस हिसाब से कह सकते हैं कि नोटा को जितने वोट मिले उतने में चार विधायक चुने जा सकते थे। हालांकि इन 62 सीटों में आधे दर्जन ऐसे भी विधायक बने जिन्होंने एक लाख से ऊपर मतदाताओं का विश्वास हासिल किया। इसमें सर्वाधिक वोट पाने वाले कहलगांव से भाजपा के पवन यादव रहे। उन्हें 1,15,538 वोट मिले। इस अधिकतम के हिसाब से भी देखें तो करीब डेढ़ विधायक तो नोटा को मिले वोट से चुने ही जाते।
समझदार और युवा मतदाताओं की असंतुष्टि की अभिव्यक्ति है नोटा
राजनीतिक समीक्षक व पूर्व पत्रकार नितेश कुमार कहते हैं कि नोटा को उपयोग समझदार लोग और युवा ही करते हैं। ये व्यवस्थागत प्रक्रिया से क्षुब्ध होते हैं। जब उन्हें उनकी कसौटी पर खरा उतरने वाला उम्मीदवार नहीं दिखता तो नोटा का बटन दबा देते हैं। कह सकते हैं कि नोटा समझदार और युवा मतदाताओं की असंतुष्टि की अभिव्यक्ति है। अगर इनकी इच्छा सही दिशा में ले जाया जाता तो संभव था कि चुनाव का परिणाम कुछ और होता। इस चुनाव परिणाम ने साफ कर दिया है कि बिहार का युवा वर्ग महत्वाकांक्षी है। यही वजह रही कि तेजस्वी की सभाओं में युवाओं की भीड़ उमड़ती रही। बाद के दौर में जब बाबूसाहब वाला बयान तो कुछ मोहभंग हुआ। उसकी भी अभिव्यक्ति नोटा में दिखाई रही है।
सूबे में 7,06,252 वोट नोटा को
नितेश कहते हैं कि पूरे बिहार में 7,06,252 वोट नोटा को पड़े। सूबे में 30 सीट ऐसी रहीं जहां प्रत्याशियों के जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा को मिले हैं। इसमें से 20 से 22 सीट ऐसे हैं जहां पर महागठबंधन के प्रत्याशियों को नोटा की वजह से हार का मुंह देखना पड़ा। शेष सीट पर एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा। उदाहरण के तौर पर सहरसा जिले की महिषि को ले लीजिए। यहां कोसी के सम्मानित कहे जाने वाले पूर्व विधायक अब्दुल गफूर के निधन के बाद उनके पुत्र को टिकट नहीं देकर एक ऐसे पूर्व बीडीओ को टिकट दिया गया जिनका दूर-दूर तक राजद से वास्ता नहीं था। पूर्व विधायक के पुत्र लोजपा से मैदान में आ गए। लिहाजा द्वंद्व में फंसे राजद के युवा व समझदार वोटरों ने नोटा का उपयोग जमकर किया। यहां नोटा को 3008 वोट मिले और जीत का अंतर 1630 वोट ही रहा। अलौली और भागलपुर में तो जीत के अंतर से नोटा पांच-दस वोट ही कम रहा। अलौली में नोटा को 2767 वोट पड़े और जीत का अंतर 2773 वोट रहा। भागलपुर में 1103 वोट नोटा को पड़े और जीत का अंतर 1113 वोट रहा।
यहां के अंतर से अधिक रहा नोटा
विस क्षेत्र,जीत का अंतर,नोटा
चकाई,581,6521
झाझा,1678,6278
अमरपुर,3134,3534
बेलहर,2473,3430
धोरैया,2687,3231
मुंगेर,1244,3076
परबत्ता,991,1923
प्राणपुर,2972,3168
रानीगंज,2304,5577
त्रिवेणीगंज,3031,3546